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बिहार के भागलपुर में कहलगांव की सड़क. सड़कों की शब्दावली में कहें तो राष्ट्रीय राजमार्ग (एनएच) 80. इस सड़क के पास दर्जा तो राष्ट्रीय राजमार्ग का है लेकिन बदहाली ऐसी, मानो गांव की कोई पगडंडी हो. घोघा के समीप के रहने वाले किशोर कुमार की उम्र करीब 25 साल हो गई है लेकिन उन्होंने कहलगांव को भागलपुर से जोड़ने वाली इस सड़क को कभी अच्छी हालत में नहीं देखा है.
किशोर कुमार बताते हैं कि जब से होश संभाला है तब से सड़क में गड्ढे के अलावा कुछ नहीं देखा. साल में एक बार पैच वर्क होता है लेकिन महीने-दो महीने में उसका फिर से पता नहीं चलता. अगले साल फिर वही कहानी. कहलगांव से नौ बार के विधायक, राज्य सरकार में मंत्री और बिहार विधानसभा के स्पीकर रह चुके सदानंद सिंह का कहना है कि 80 के दशक में इस सड़क से वे 25 से 30 मिनट में भागलपुर पहुंच जाते थे लेकिन आज आपको 30 किलोमीटर की दूरी तय करने में भी कम से कम तीन घंटे लगेंगे.
भागलपुर के पत्रकार गौतम सरकार का कहना है कि पिछले 25 साल से सड़क की मरम्मत के नाम पर केवल लूट हो रही है. गौरतलब है कि एनएच 80 बिहार के मुंगेर, भागलपुर, कहलगांव होते हुए झारखंड के साहेबगंज से लेकर बंगाल के फरक्का तक है लेकिन ये कहानी भागलपुर से कहलगांव तक की है. हालांकि, उसके आगे झारखंड और बंगाल में भी ये रास्ता खस्ता हालत में ही है.
यह मार्ग पहले स्टेट हाइवे था. इसे साल 2001 में नेशनल हाइवे का दर्जा दिया गया था. तब से अब तक केंद्र और राज्य में कई सरकारें बदलीं लेकिन इस सड़क की तकदीर नहीं बदली. कहलगांव में सीओ के पद पर रहे रिटायर्ड राधामोहन सिंह तंज करते हुए कहते हैं कि इस इलाके के लोगों की सहनशीलता की दाद दी जानी चाहिए कि तीन दशक से सड़क की दुर्दशा के बावजूद लोगों में सरकार के प्रति कोई आक्रोश नहीं है. उन्होंने सड़क की खस्ता हालत के लिए जनप्रतिनिधियों को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा कि इनके परिवार के लोगों को ही मरम्मत का ठेका मिल रहा है.
राधामोहन सिंह ने कहा कि ये सड़क अगर सरकार एक बार में ही ठीक से बना दे तो फिर हर साल मरम्मत के नाम पर हो रही लूट का क्या होगा जो अधिकारी और ठेकेदार मिलकर कर रहे हैं. सड़कें खराब होती हैं और फिर बनती हैं लेकिन एनएच 80 कभी बना ही नहीं. कभी मरम्मत हुई तो इस रोड पर इतनी ओवर लोडेड गाड़ियां चलती हैं कि रोड की सहनशीलता जवाब दे देती है. सड़क की क्षमता 20 टन की है तो उस पर 40 टन लोड कर गाड़ियां चल रही हैं. जाम लगना इस सड़क का नियम सा है वहीं सड़क खराब होने के कारण ओवरलोड वाहन भी बीच सड़क पर खराब होते हैं और उसके बाद जाम का झाम.
झारखंड से स्टोन चिप्स की बिहार और अन्य राज्यों में सप्लाई इसी एनएच से होती है. कहलगांव के एनटीपीसी से ऐश यानी राख की ढुलाई का मार्ग भी यही है. एनएच 80 गंगा के किनारे-किनारे बनाया गया है. ओवरलोड वाहनों की वजह से सड़क जगह-जगह धंस जाती है और वो उतना बड़ा गड्ढा बन जाता है जिसकी कल्पना नहीं की जा सकती है. इस इलाके में गंगा पर प्रॉपर तटबंध नहीं होने के कारण लगभग हर साल बाढ़ का पानी एनएच पर आ जाता है. इसकी वजह से इसकी हालत दिन प्रतिदिन खराब होती जा रही है.
कई मायनों में महत्वपूर्ण है सड़क
ये सड़क कई मामलों में काफी महत्वपूर्ण है. इसी सड़क से लोग प्राचीन धरोहर विक्रमशिला विश्वविद्यालय देखने जाते हैं. यहां एनटीपीसी है और सबसे बड़ी बात सामरिक दृष्टि से भी ये काफी महत्वपूर्ण स्थान रखता है. इस सड़क का उल्लेख फाह्यान ने भी किया है. बुद्ध काल में इसी सड़क से लामा जाते थे. मुगलकाल में भी इसकी चर्चा मिलती है. इतनी पुरानी सड़क की अस्सी के दशक तक हालत ठीक थी और उसके बाद विकास की आंधी में भी सड़क की हालत और खस्ता हो जाए तो क्या कहेंगे. ये सरकार की उदासीनता नहीं तो क्या है.
राज्य सरकार ने केंद्र को ठहराया जिम्मेदार
राज्य सरकार कहती है कि ये एनएच है इसलिए इसके पुनर्निर्माण और देखरेख की जिम्मेदारी केंद्र सरकार की है. राज्य सरकार कहती है कि इस राजमार्ग का पुनर्निर्माण केंद्र को कराना है. लेकिन यह मसला भी उठता है कि नेशनल हाइवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया (एनएचएआई) ने इस राजमार्ग को कभी सही ढंग गोद लिया ही नहीं.
पिछले साल चुनाव के पहले केंद्रीय राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने मुंगेर से भागलपुर, कहलगांव के बीच एक नई फोर लेन सड़क के निर्माण की घोषणा की थी. उनके ऐलान के मुताबिक तीन महीने में काम शुरू होना था लेकिन अभी तक इस मार्ग के लिए भूमि का अधिग्रहण भी नहीं हुआ है.