
कितने चेहरे लगे हैं चेहरों पर
क्या हक़ीक़त है और सियासत क्या
---सागर ख़य्यामी
बिहार की मौजूदा सियासत पर ये शेर मुफीद बैठता है. सियासत हर समय अपने रंग-ढंग बदलती रहती है. नीतीश कुमार ने एक बार फिर अपने सियासी दोस्त बदले हैं. उन्होंने NDA का साथ छोड़ दिया है और महागठबंधन के साथ आ गए हैं. नीतीश ने 2013 में NDA का साथ छोड़ा और आरजेडी के साथ आ गए. तर्क दिया कि प्रधानमंत्री के चेहरे के तौर पर मोदी उन्हें पसंद नहीं हैं. नीतीश का तर्क था कि वे सांप्रदायिकता के खिलाफ हैं और भाजपा को उन्होंने सांप्रदायिक पार्टी बताया.
अब बारी आई 2015 में बिहार में विधानसभा चुनाव की. यहां नीतीश ने सियासत के अपने पुराने सहयोगी लालू प्रसाद यादव और कांग्रेस के साथ मिलकर महागठबंधन की सरकार बनाई. NDA से अलग होकर चुनाव लड़ने पर महागठबंधन को फायदा मिला और बिहार की राजनीति में बदलाव आया. नीतीश कुमार महागठबंधन के नेता बने और एक बार फिर बिहार के मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ली.
साल 2017 में पलट गए नीतीश कुमार
चुनाव जीतने के बाद सब कुछ ठीक ही चल रहा था कि साल 2017 में महागठबंधन में दरार पड़ गई और नीतीश कुमार ने प्रदेश के सीएम पद से इस्तीफा दे दिया. उस दौरान आरजेडी के साथ मिलकर सरकार चलाने पर नीतीश पर भ्रष्टाचारी का साथ देने के आरोप लगे और उन्होंने बीजेपी और सहयोगी पार्टियों की मदद से एक बार फिर सरकार बनाई और बिहार के सीएम बने. हालांकि 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में जेडीयू को कम सीटें मिलीं बावजूद बीजेपी ने उन्हें सीएम बनाया. लेकिन 2022 में नीतीश कुमार एक बार फिर महागठबंधन के साथ आ गए हैं. नीतीश कुमार के बारे में कहा जाता है कि जब सांप्रदायिकता बढ़ती है तो वह आरजेडी और महागठबंधन के साथ चले आते हैं, और जब भ्रष्टाचार बढ़ता है तो बीजेपी के साथ हो जाते हैं.
नीतीश की व्यक्तिगत छवि ईमानदार
नीतीश कुमार की व्यक्तिगत छवि ईमानदार नेता की रही है. वह एक ईमानदार सीएम के तौर पर जाने जाते रहे हैं. 2005 में नीतीश के सीएम बनने के बाद से उन पर भ्रष्टाचार का कोई आरोप नहीं लगा है. 2005 के पहले और बाद के समय को देखा जाए तो यह कहा जाता है कि नीतीश कुमार ने बिहार को 2005 के बाद जंगल राज से मुक्त कराया है. बिहार में सुशासन की सरकार है. लेकिन वर्ष 2015 के बाद एक बार फिर नीतीश की लोकप्रियता में लगातार गिरावट जारी है. अब बिहार में लॉ एंड ऑर्डर पर भी अक्सर सवाल उठते रहते हैं. लेकिन इन सबके बावजूद बिहार में लोकप्रियता के मामले में नीतीश कुमार के सामने कोई नेता नहीं टिकता. नीतीश की छवि को आगे बढ़ाने में एक बात और जुड़ जाती है कि उन पर परिवारवाद का आरोप नहीं लगता है. हालांकि, बार बार सियासी पलटी मारने पर खुद तेजस्वी यादव उन्हें ‘पलटू चाचा’ कहते रहे हैं.
क्या है बीजेपी की मुश्किल?
बिहार में भारतीय जनता पार्टी के सामने सबसे बड़ी मुश्किल यही है कि उसके पास कोई लोकप्रिय चेहरा नहीं है, जो नीतीश कुमार को टक्कर दे सके. यही कारण रहा कि 2020 के चुनाव में जेडीयू से बहुत ज्यादा सीट लाने के बाद भी नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बनाया गया. बीजेपी ने जरूर दो डिप्टी सीएम बनाए, लेकिन वे चेहरे बहुत कमजोर दिखे. बीजेपी इतने वर्षों में भी बिहार में कोई लोकप्रिय चेहरे वाला नेता नहीं खड़ा कर पाई है. सुशील मोदी जरूर बिहार में बीजेपी का एक चेहरा रहे हैं और उपमुख्यमंत्री के तौर पर अपनी जिम्मेदारी भी निभा चुके हैं, लेकिन फिर भी उनकी लोकप्रियता नीतीश कुमार के सामने नहीं ठहरती है. शायद यही कारण रहा कि सुशील मोदी को बीजेपी केंद्र में लेकर आई ताकि बीजेपी बिहार में एक लोकप्रिय और सर्वमान्य चेहरा खोज सके. लेकिन यह एक रात का काम नहीं है. और उसका अंजाम पार्टी अब भी भुगत रही है. गठबंधन टूटने पर बीजेपी ने कहा कि जो कुछ भी हुआ है वह बिहार की जनता के साथ धोखा है.
नीतीश का NDA छोड़ने के पीछे का तर्क
ये माना जा रहा है कि नीतीश कुमार को यह उम्मीद थी कि उपराष्ट्रपति चुनाव में NDA उन्हें चेहरा बनाती. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. नीतीश कुमार का अब कहना है कि NDA के साथ काम करना मुश्किल हो रहा था. NDA लगातार हमारा अपमान कर रही थी. नीतीश के NDA का साथ छोड़ने को उनके पॉलिटिकल ईगो के हर्ट होने के तौर पर भी देखा जा रहा है. सियासी पंडितों का ये भी कहना है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में नीतीश कुमार की महत्वाकांक्षा पीएम पद के उम्मीदवार बनने की है.
कांग्रेस का क्या होगा?
बिहार में 2020 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 19 सीटें जीतीं. आरजेडी से मोलभाव कर कांग्रेस ने ज्यादा सीटें ले लीं. हालांकि पार्टी के जीत का परसेंटेज काफी कम रहा. आरजेडी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी. तब सरकार न बना पाने के मलाल को लेकर तेजस्वी ने कहा था कि कांग्रेस का ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ना और फिर हार जाना हमें सरकार बनाने से दूर कर गया. तेजस्वी ने कहा था कि जिन सीटों पर कांग्रेस हार गई अगर वहां आरजेडी ने चुनाव लड़ा होता तो अधिकांश पर उसे जीत मिलती. हालांकि अब बनने वाली नई सरकार में कांग्रेस भी शामिल है. भले ही पार्टी के 19 विधायक हैं लेकिन सरकार में बने रहना किसी भी पार्टी को मनोवैज्ञनिक लाभ देता है. नई सरकार गठन से दिल्ली बैठे कांग्रेस हाईकमान को एक ऑक्सीजन जरूर मिलेगी.
तेजस्वी क्या करेंगे?
पिछले दो बार से विपक्ष में रहने के बाद भी तेजस्वी की लोकप्रियता का ग्राफ लगातार चढ़ा है. तेजस्वी अब मंजे हुए नेता के तौर पर बात करते हैं. महागठबंधन की नई सरकार बनने के पहले तक तेजस्वी लगातार नीतीश सरकार पर हमलावर थे. वह अक्सर नीतीश सरकार को जनविरोधी फैसले लेने वाला नेता बताते रहे और कठघरे में खड़ा करते थे. जनता से जुड़े मुद्दे उठाना हो या लॉ एंड ऑर्डर की बात हो, तेजस्वी ने पिछले कुछ वर्षों में नीतीश सरकार पर लगातार हमला बोला है. अब देखना ये होगा कि नीतीश कुमार के साथ मिलकर सरकार बनाने पर क्या तेजस्वी फिर उसी तेवर में नजर आएंगे? क्या वह एक बार फिर जनता से जुड़े मुद्दे को लेकर उतने ही मुखर रहेंगे जितना कि नेता प्रतिपक्ष के तौर पर नजर आ रहे थे.
2024 में क्या होने वाला है?
सियासत में क्षेत्रीय पार्टियों का अपना अलग ही वर्चस्व होता है. राजद और जदयू का बिहार में मजबूत जनाधार है. भले ही 2019 में देश की जनता ने नरेंद्र मोदी को एक बार फिर पीएम के तौर पर लोकप्रिय नेता माना हो, भले ही बीजेपी की सरकार बनी हो लेकिन, बिहार में क्षेत्रीय पार्टियों के जनाधार को नकारा नहीं जा सकता. हाल के समय में महंगाई और बेरोजगारी को लेकर देश का युवा केंद्र सरकार से नाराज चल रहा है. इसलिए भले ही केंद्र में बीजेपी और NDA गठबंधन मजबूत हो, लेकिन राज्यों में और खासकर बिहार में राजद और जदयू ही किंग हैं. अभी जो घटनाक्रम बिहार में चल रहा है उसका असर 2024 में कितना और कैसा दिखेगा यही सबसे महत्वपूर्ण सवाल है.