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महागठबंधन के लिए बुरी खबर नहीं है नीतीश का BJP के संग जाना

महज कुछ घंटों में नीतीश बिहार की पॉलिटिकल स्क्रिप्ट को बदलकर, विपक्ष का साथ पकड़ दोबारा मुख्यमंत्री बन गए. इन उदाहरणों से एक बात साफ है कि नीतीश कुमार कभी भी महागठबंधन का हिस्सा नहीं थे. वह हमेशा गठबंधन के साथ होते हुए भी खुद को अलग खड़ा करने की कवायद में लगे रहे.

कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के साथ मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के साथ मुख्यमंत्री नीतीश कुमार
पाणिनि आनंद
  • नई दिल्ली,
  • 27 जुलाई 2017,
  • अपडेटेड 8:57 PM IST

ई-कॉमर्स ने लोगों को अपने घर और ऑफिस में पुरानी और इस्तेमाल में न आने वाली चीजों को बेचने का विकल्प दिया. वहीं यदि घर या ऑफिस से ऐसे फालतू सामान खुद ब खुद गायब हो जाएं तो कितना अच्छा हो. राजनीति में नीतीश कुमार का महागठबंधन को छोड़ना कुछ ऐसा ही साबित हुआ और विपक्ष के खेमे से इस्तेमाल में नहीं आ रहा सामान अपने आप हट गया.

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महागठबंधन की शुरुआत से ही यह मिथक रहा कि नीतीश कुमार विपक्ष के साथ हैं. इस विपक्ष में उनकी मौजूदगी महज बिहार में सरकार का नेतृत्व करने के लिए थी और इससे अधिक उसे कुछ नहीं हासिल हो रहा था. नीतीश मुख्यमंत्री पद पर बैठे रहे और महागठबंधन इसे मोदी के खिलाफ अपनी बड़ी जीत समझता रहा.

वहीं मुख्यमंत्री बनने के बाद नीतीश राज्य स्तर और राष्ट्रीय स्तर पर या तो चुप रहे, नहीं तो बीजेपी और मोदी के विरोध में कम से कम शब्दों का इस्तेमाल कर आगे बढ़ते रहे. बीते साल जब केंद्र में नरेंद्र मोदी सरकार ने नोटबंदी का ऐलान किया तो पूरा विपक्ष इस मुद्दे पर लामबंद होने लगा. लेकिन नीतीश कुमार ने मोदी सरकार के फैसले के पक्ष में आकर विपक्ष के लामबंदी की हवा निकाल दी. नतीजा ये रहा कि नोटबंदी जैसे अहम मुद्दे पर विपक्ष की पूरी लड़ाई में नीतीश कुमार का कोई रोल नहीं था.

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यही नतीजा एक बार फिर देखने को मिला, जब सोनिया गांधी ने नए राष्ट्रपति के चयन के लिए पूरे विपक्ष को एकजुट करने की कोशिश की. नीतीश न सिर्फ इस कवायद से दूर रहे बल्कि आगे बढ़कर विरोधी खेमे में रणनीति बनाने में लग गए. यह एक और मौका था जब विपक्ष को नीतीश से आस थी और उसे सिर्फ धोखा मिला.

बिहार चुनावों में नीतीश की जीत सिर्फ उनके दम पर नहीं हुई. यह जीत पूरे महागठबंधन की थी जिसमें लालू प्रसाद यादव की आरजेडी सबसे बड़े दल के तौर पर सामने आई. लिहाजा, बतौर मुख्यमंत्री और महागठबंधन का हिस्सा होने के कारण उन्हें गठबंधन में शामिल सभी नेताओं और विधायकों के साथ बैठकर मुद्दे को सुलझाने की कोशिश करने की जरूरत थी. लेकिन उनकी रणनीति इससे अलग थी.

महज कुछ घंटों में नीतीश बिहार की पॉलिटिकल स्क्रिप्ट को बदलकर, विपक्ष का साथ पकड़ दोबारा मुख्यमंत्री बन गए. इन उदाहरणों से एक बात साफ है कि नीतीश कुमार कभी भी महागठबंधन का हिस्सा नहीं थे. वह हमेशा गठबंधन के साथ होते हुए भी खुद को अलग खड़ा करने की कवायद में लगे रहे.

वहीं, महागठबंधन को नीतीश से मिले इस धोखे के बाद अन्य विपक्षी राजनीतिक दलों से महत्वपूर्ण संकेत मिल रहे हैं. ममता बनर्जी मोदी के सामने झुकने के लिए तैयार नहीं, लालू प्रसाद मायावती को लोकसभा के रास्ते संसद पहुंचाने की बात कह रहे हैं. लिहाजा, नीतीश का यह कदम विपक्ष को मोदी के खिलाफ और सख्त रुख अख्तियार करने के लिए तैयार कर रहा है.

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