
विपक्षी गठबंधन इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इंक्लूसिव अलायंस यानी I.N.D.I.A. की मुंबई में बैठक होनी है. इस बैठक में न्यूनतम साझा कार्यक्रम और गठबंधन के संयोजक को लेकर चर्चा होने की संभावना है. मुंबई बैठक से पहले विपक्षी एकजुटता की कवायद के अगुवा नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली सरकार में मंत्री जमा खान ने प्रधानमंत्री पद की दावेदारी को लेकर बयान दिया है.
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जमा खान ने कहा है कि देश की जनता नीतीश कुमार को प्रधानमंत्री के रूप में देखना चाहती है. जमा खान के इस बयान के बाद फिर से ये बहस छिड़ गई है कि विपक्षी गठबंधन से पीएम फेस कौन होगा? नीतीश कुमार या राहुल गांधी? जेडीयू नेता के बयान पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कांग्रेस नेता पीएल पुनिया ने कहा है कि प्रधानमंत्री पद को लेकर चर्चा चुनाव के बाद होगी. मुंबई की बैठक से पहले नीतीश सरकार के मंत्री के बयान के मायने क्या हैं?
जेडीयू की प्रेशर टैक्टिस
नीतीश कुमार खुद भी कई मौकों पर ये साफ कह चुके हैं कि प्रधानमंत्री पद की रेस में नहीं हूं. एक तरफ नीतीश कुमार पीएम पद के लिए अपनी दावेदारी से इनकार करते रहे हैं तो वहीं दूसरी तरफ जेडीयू के नेता गाहे-बगाहे उनका नाम आगे भी बढ़ा दे रहे हैं. नीतीश कुमार हाल ही में दिल्ली पहुंचे थे और इस दौरान उन्होंने किसी भी विपक्षी नेता से मुलाकात नहीं की. नीतीश का दिल्ली दौरा और विपक्षी नेताओं से दूरी, अब पीएम पद के लिए उनके ही मंत्री का बयान. ये सब महज संयोग है या जेडीयू की प्रेशर टैक्टिस?
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जमा खान का बयान ऐसे समय में आया है जब विपक्षी गठबंधन की मुंबई में बैठक होनी है. विपक्षी गठबंधन का संयोजक कौन होगा? मुंबई की बैठक में इस पर भी चर्चा होनी है. विपक्ष के नजरिए से अहम इस बैठक के पहले जमा खान के इस बयान से विपक्षी गठबंधन में प्रधानमंत्री पद के लिए नई रेस शुरू हो सकती है. राजनीतिक विश्लेषक अमिताभ तिवारी ने इस बयान को संयोजक पद के लिए प्रेशर टैक्टिस बताया है.
पीएम पद पर नीतीश का दावा कितना मजबूत
बिहार में लोकसभा की 40 सीटें हैं. नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू का राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेस के साथ पहले से ही गठबंधन है. लेफ्ट पार्टियां भी नीतीश सरकार का समर्थन कर रही हैं और विपक्षी गठबंधन का भी हिस्सा हैं. जेडीयू ने 2019 में 17 सीटों पर उम्मीदवार उतारा था और उसे 16 सीटों पर जीत मिली थी. विपक्षी गठबंधन में भी जेडीयू की कोशिश यही है कि कि कम से कम 2019 चुनाव की ही तरह 17 सीटें उसके हिस्से आएं. अगर जेडीयू अपने कोटे की सभी सीटें जीत लेती है तो भी प्रधानमंत्री पद के लिए नीतीश की दावेदारी संख्याबल के लिहाज से मजबूत नजर नहीं आती.
संख्याबल का गणित अपने पक्ष में नहीं होगा, ये जानते हुए भी जेडीयू के नेता अगर नीतीश का नाम बार-बार आगे बढ़ा रहे हैं तो इसके पीछे क्या वजह है? संख्याबल के गणित के लिहाज से विपरीत हालात के इस घुप्प अंधेरे में जेडीयू को नीतीश के लिए नजर आ रहे टिमटिमाते दीये के पीछे उनकी बेदाग छवि, बिहार जैसे राज्य में सरकार चलाने का अनुभव वजह बताया जा रहा है. नीतीश को गठबंधन सरकार चलाने का लंबा अनुभव है.
अमिताभ तिवारी ने कहा कि जेडीयू को ये उम्मीद होगी कि चुनाव परिणाम आने के बाद अगर किसी दूसरे दल के समर्थन की जरूरत पड़ी तो नीतीश के लिए संभावनाओं के द्वार खुल सकते हैं. एक फैक्टर ये भी है कि गठबंधन में अगर कांग्रेस की तुलना में दूसरी पार्टियों की सीटें अधिक रहती हैं तो भी ये संभव है कि गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री की बात उठे.
क्या नीतीश के नाम पर मानेगी कांग्रेस?
राहुल गांधी की संसद सदस्यता बहाल हो चुकी है. कांग्रेस साफ कह चुकी है कि हमारा चेहरा राहुल गांधी ही हैं. ऐसे में क्या कांग्रेस नीतीश कुमार की प्रधानमंत्री पद के लिए दावेदारी पर सहमत होगी? बेंगलुरु की बैठक में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा था कि हमारा लक्ष्य सत्ता पाना नहीं है, हमें प्रधानमंत्री पद का भी लालच नहीं. वहीं, कांग्रेस के नेता ये साफ कहते रहे हैं कि राहुल गांधी ही हमारा चेहरा होंगे. ऐसे में कांग्रेस राहुल की बजाय किसी और चेहरे को स्वीकार करेगी? इसके आसार नहीं के बराबर हैं.
अमिताभ तिवारी कहते हैं कि नए गठबंधन के गठन के बाद से ही बीजेपी ने यूपीए सरकार के समय कथित भ्रष्टाचार को लेकर कांग्रेस के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है. भ्रष्टाचार के साथ ही गांधी परिवार, परिवारवाद बीजेपी की चुनावी रणनीति के केंद्र में हैं. कांग्रेस बीजेपी की रणनीति की काट के लिए भी नीतीश के नाम पर सहमति दे सकती है.