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नीतीश और मोदी का डीएनए हुआ मैच, इसलिए खारिज हुआ लालू संग महागठबंधन

2013 में नीतीश ने बीजेपी से इसलिए मुंह मोड़ लिया क्योंकि वह ऐसे नेता के साथ नहीं जुड़ना चाहते थे जिसपर सांप्रदायिक दंगों के आरोप का छींटा पड़ा हो. फिर 2015 में वह चारा घोटाला में सजा पाए लालू प्रसाद के साथ महागठबंधन का राग अलापते हैं और मोदी विरोध का परचम लहराते हैं. अंतत: मोदी को हार का सामना करना पड़ा, लेकिन कैसे?

नरेंद्र मोदी और नीतीश कुमार नरेंद्र मोदी और नीतीश कुमार
पाणिनि आनंद
  • नई दिल्ली,
  • 27 जुलाई 2017,
  • अपडेटेड 11:13 PM IST

सवाल डीएनए का था. 2015 में बिहार विधानसभा चुनावों से ठीक पहले नीतीश कुमार ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए बिहार के लाखों लोगों के बाल बतौर सैंपल भेजे. मोदी पर तंज कसते हुए नीतीश ने तब कहा था कि इस सैंपल से वे बिहार के लोगों का डीएनए टेस्ट कर लें.इस बात को अब 20 महीने बीत चुके हैं. बीजेपी का टेस्ट भी पूरा हो चुका है और अंतिम हेडलाइन तय की जा चुकी है, 'जेडीयू का डीएनए बीजेपी के साथ एक बार फिर मैच हो गया है.'

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उतार-चढ़ाव से भरी मौजूदा भारतीय राजनीति में दो नाम, 'ताकतवर' और 'चालाक' गूंज रहे हैं. ये दोनों नाम किसी और के नहीं बल्कि नरेंद्र मोदी और नीतीश कुमार के हैं. दोनों नाम में समानता भी बेहद सरल है. राजनीति में न कोई सदा के लिए दोस्त होता है और न ही दुश्मन. नीतीश कुमार का पग-पग बदलता अंदाज और जानी दुश्मनों से बदला समीकरण सिर्फ एक इशारा करता है कि राजनीति के योग में मोदी नहीं बल्कि नीतीश यू-टर्न आसन के सबसे बड़े साधक हैं.

2013 में नीतीश ने बीजेपी से इसलिए मुंह मोड़ लिया क्योंकि वह ऐसे नेता के साथ नहीं जुड़ना चाहते थे जिसपर सांप्रदायिक दंगों के आरोप का छींटा पड़ा हो. फिर 2015 में वह चारा घोटाला में सजा पाए लालू प्रसाद के साथ महागठबंधन का राग अलापते हैं और मोदी विरोध का परचम लहराते हैं. अंतत: मोदी को हार का सामना करना पड़ा, लेकिन कैसे?

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बीजेपी की इस हार को यूं उछाला गया मानो मोदी सुनामी को रोक लिया गया. राजनीति में भगवान का दर्जा पा चुकी मोदी-शाह की जोड़ी और उनकी चाणक्य नीति मानो औंधे मुंह गिर गई हो और जीत लालू और नीतीश की हुई.

समय का पहिया कैसे घूमता है. 20 महीने के कार्यकाल के बाद विचारधारा के मतभेद और चुनावी रंजिश भुलाकर मोदी और नीतीश ने एक बार फिर मानसून के बीच पॉलिटिकल हनीमून पर सहमति बना ली है. नए सिरे से शुरू हुए इस प्यार की सहमति के लिए इजहार भी ऐसा त्वरित कि मोदी को ट्वीट कर सबसे पहले पुराने दोस्त को बधाई देने के लिए आना पड़ा. कुछ घंटों में जहां राज्य का इतिहास फिर से लिख दिया गया, वहीं दो बिछड़े हुए दोस्त यूं मिल गए जैसे कभी बिछड़े ही नहीं थे.

 

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