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एक तरफ बीजेपी, दूसरी तरफ नीतीश-तेजस्वी, 2024 के लिए बिहार के बाकी दलों का क्या है स्टैंड?

बिहार में लोकसभा चुनाव से पहले विपक्षी एकजुटता की कवायद में जुटे नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव एक तरफ हैं. दूसरी तरफ 12 दल हैं. इन 12 दलों में कौन किस तरफ है, या किस तरफ जा सकता है, इस पर कयास लगाए जाने लगे हैं. नीतीश से अलग होकर मांझी क्या करेंगे इस पर भी अटकलें लग रही हैं.

नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव (फाइल फोटो) नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव (फाइल फोटो)
बिकेश तिवारी
  • नई दिल्ली,
  • 14 जून 2023,
  • अपडेटेड 1:21 PM IST

सियासत में कोई किसी का सगा नहीं होता. बिहार की राजनीति तो निष्ठा बदलने के उदाहरणों से भरी पड़ी है. यहां कौन कब किसका दोस्त बन जाए और कौन कब किससे दोस्ती तोड़ विरोधी खेमे की ओर से मैदान संभाल ले, ये कहा नहीं जा सकता. अब चूंकि 2024 के चुनाव में एक साल से भी कम का वक्त बचा है यही दोस्ती-दुश्मनी का खेल राज्य के राजनीतिक दलों ने शुरू कर दिया है. इसके अगुआ बने हैं हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा यानी हम के जीतनराम मांझी.
 
जीतनराम मांझी के बेटे संतोष मांझी ने मंगलवार को नीतीश सरकार में मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया. इसके साथ ही ये साफ हो गया कि बिहार में अब महागठबंधन के कुनबे में एक पार्टी कम हो गई है. गैर एनडीए दलों को एकजुट करने, किसी निष्कर्ष पर पहुंचकर साझा रणनीति बनाने और केंद्र की सत्ता पर काबिज भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) को मजबूत चुनौती पेश करने की कोशिश में जुटे नीतीश के लिए इसे बड़ा झटका माना जा रहा है.

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बिहार में लोकसभा चुनाव के लिए बिछी सियासी बिसात पर एक तरफ नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव हैं तो दूसरी तरफ 12 दल. इन 12 दलों में विपक्षी बीजेपी भी शामिल है. एक तरफ महागठबंधन है तो दूसरी तरफ बीजेपी के नेतृत्व वाला एनडीए. कांग्रेस भी सत्ताधारी महागठबंधन में ही शामिल है, ऐसे में उसे लेकर भी किसी तरह की भ्रम की स्थिति नहीं है लेकिन मांझी के महागठबंधन से नाता तोड़ने के बाद गठबंधनों के गणित पर भी चर्चा शुरू हो गई है.

नीतीश कुमार (फाइल फोटो)

बिहार के बदलते सियासी समीकरणों के बीच कौन पार्टी कब किस गठबंधन का हिस्सा बन जाएगी, इसे लेकर जानकार भी कह रहे हैं- कुछ कहा नहीं जा सकता. कुछ दल पहले से ही किसी न किसी गठबंधन का हिस्सा हैं तो वहीं कुछ ऐसे दल या नेता भी हैं जो विधानसभा चुनाव के बाद या पिछले कुछ समय से लापता से चल रहे हैं. मुखर रहने वाले पशुपति पारस मौन हैं तो सभी विधायकों के पाला बदल लेने के बाद बीजेपी के खिलाफ हुंकार भरते नजर आए विकासशील इंसान पार्टी के मुकेश सहनी की सक्रियता कम ही दिख रही है. विधानसभा चुनाव से पहले शोर-शराबे के साथ अस्तित्व में आई पुष्पम प्रिया की पार्टी भी निष्क्रिय नजर आ रही है.

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अप्रैल से ही लग रहे थे मांझी के अलग होने के कयास

जीतनराम मांझी की पार्टी ने महागठबंधन से तो नाता तोड़ लिया है लेकिन अगला कदम क्या होगा? इसे लेकर अभी कुछ नहीं कहा है. हालांकि, कहा ये जा रहा है कि मांझी की पार्टी 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले एनडीए के विस्तार को लेकर काम कर रही बीजेपी के साथ जा सकती है. इन कयासों को जीतनराम मांझी की 13 अप्रैल को दिल्ली में गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात ने पहले ही हवा दे दी थी. शायद इस बात का अंदाजा सीएम नीतीश कुमार को भी पहले ही हो गया था. नीतीश ने विपक्ष की बैठक के लिए जीतनराम मांझी को न्यौता नहीं दिया था.
 
एनडीए में शामिल होगी मांझी की पार्टी

बिहार के ताजा सियासी घटनाक्रम और गठबंधन के कनफ्यूजन को लेकर पत्रकार आलोक जायसवाल कहते हैं कि ये तो होना ही था. उन्होंने कहा कि मांझी के बीजेपी के संपर्क में होने की बातें बिहार में लंबे समय से हो रही थीं. बिहार के बीजेपी के नेताओं से लंबी बातचीत के बाद मांझी दिल्ली गए थे और अमित शाह से मुलाकात की थी.

जीतनराम मांझी (फाइल फोटो)

आलोक बताते हैं कि मांझी की अमित शाह से मुलाकात के बाद पार्टी के नेताओं के सुर भी बीजेपी को लेकर नरम पड़ गए थे. मांझी की पार्टी के नेता भी ये कह रहे थे कि जेडीयू और आरजेडी जैसे क्षेत्रीय दलों के बीच उनको सरकार में, लोकसभा चुनाव में वह भागीदारी मिलना मुश्किल है जो उनको बीजेपी के साथ जाने पर मिल सकती है. जेडीयू के एनडीए से बाहर जाने के बाद उपजे शून्य की भरपाई के लिए बीजेपी का ध्यान भी छोटे-छोटे दलों पर है.

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एनडीए की नजर दलित-महादलित वोट पर

आलोक कहते हैं कि सत्ताधारी महागठबंधन से मांझी का किनारा करना इस बात का संकेत है कि उनकी एनडीए के साथ ठोस बातचीत हो चुकी है. अब परिस्थितियां ऐसी बन गई हैं कि मांझी को बीजेपी और बीजेपी को मांझी की जरूरत है. बिहार के जातीय समीकरण को देखें तो सूबे में दलित और महादलित मिलाकर करीब 16 फीसदी वोटर हैं. इनमें भी करीब छह फीसदी भागीदारी मुसहर जाति की है. जीतनराम मांझी इसी मुसहर जाति से आते हैं.

चिराग पासवान (फाइल फोटो)

उन्होंने कहा कि मांझी के सहारे बीजेपी की रणनीति मुसहर जाति के मतदाताओं को अपने पाले में लाने की है. बाकी बचे दलित-महादलित वोट पर राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी (आरएलजेपी) और मायावती की बहुजन समाज पार्टी (बसपा) भी दावा करती रही हैं. रामविलास पासवान के निधन के बाद आरएलजेपी भी दो फाड़ हो चुकी है. आरएलजेपी की कमान रामविलास पासवान के भाई पशुपति पारस के हाथ में है तो वहीं चिराग पासवान ने भी एलजेपी रामविलास नाम से पार्टी बना रखी है. हालांकि, बीजेपी के लिए राहत की बात ये है कि पशुपति पारस जहां एनडीए के साथ ही हैं तो वहीं चिराग भी एनडीए या बीजेपी के खिलाफ नहीं दिख रहे.

ओबीसी वोट के लिए कुशवाहा पर दांव

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पीएम मोदी के नेतृत्व वाली सरकार में मंत्री रह चुके उपेंद्र कुशवाहा ने कुछ महीने पहले ही राष्ट्रीय लोक जनता दल नाम से नई पार्टी बनाने का ऐलान किया था. जेडीयू से नाता तोड़कर अलग पार्टी बनाने का ऐलान करते हुए उपेंद्र कुशवाहा ने नीतीश कुमार और आरजेडी पर जमकर निशाना साधा था. इसके बाद एक तरह से ये साफ हो गया था कि वे कम से कम महागठबंधन के साथ तो नहीं जाने वाले.

उपेंद्र कुशवाहा (फाइल फोटो)

बीजेपी के नेताओं के उपेंद्र कुशवाहा के भी संपर्क में होने की बात कही जा रही है. बीजेपी की रणनीति यादव और मुस्लिम के बाद आठ फीसदी वोट के साथ तीसरे नंबर की कुशवाहा जाति को उपेंद्र के जरिए अपने पाले में करने की है.

पशुपति पारस और चिराग एनडीए में होंगे साथ-साथ?

चिराग पासवान से पार्टी की कमान छिनने के बाद मुखर रहे पशुपति पारस पिछले कुछ समय से शांत चल रहे हैं. पशुपति की इस शांति को एनडीए से नीतीश कुमार की विदाई के बाद चिराग को लेकर बीजेपी के रुख में आए बदलाव से जोड़कर देखा जा रहा है. एलजेपी से जुड़े नेता भी अब ये कह रहे हैं कि चिराग की सियासी नाव नीतीश कुमार के नाम पर ही डूबी थी. पार्टी, सिंबल, पिता का सरकारी बंगला सबकुछ गंवाने के बावजूद चिराग कभी भी बीजेपी पर हमलावर नहीं हुए.

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पशुपति पारस (फाइल फोटो)

चिराग पासवान ने बिहार के पिछले विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार का विरोध किया था. चिराग ने बीजेपी उम्मीदवारों का समर्थन किया और जेडीयू के खिलाफ उम्मीदवार उतारे थे. ऐसे में माना जा रहा है कि नीतीश कुमार के एनडीए से बाहर होने के बाद चिराग के लिए बीजेपी से फिर गठबंधन के दरवाजे खुल गए हैं. चिराग भी इस बात के संकेत दे चुके हैं. चिराग की सुरक्षा बढ़ाने के केंद्र सरकार के फैसले के बाद इस चर्चा को और बल मिल चुका है. मुखर नजर आने वाले पशुपति पारस भी मौके की नजाकत को समझते हुए शांत चल रहे हैं.

क्या रहेगा लेफ्ट का रुख, किधर जाएंगे मुकेश सहनी

तीन वामपंथी दल माकपा, भाकपा और भाकपा माले बिहार की महागठबंधन सरकार का समर्थन तो कर रहे हैं लेकिन सरकार में शामिल नहीं हैं. ऐसे में नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव की कोशिश इन दलों के साथ चुनाव पूर्व गठबंधन का रास्ता निकाल पाना आसान नहीं होगा. हालांकि, नीतीश खेमे के लिए राहत की बात ये है कि 23 जून को पटना में होने जा रही बैठक में सीताराम येचुरी समेत लेफ्ट के बड़े नेता भी शामिल होंगे.

मुकेश सहनी (फाइल फोटो)

मुकेश सहनी की विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) के स्टैंड को लेकर राजनीतिक विश्लेषक अमिताभ तिवारी कहते हैं कि सभी विधायकों के बीजेपी में शामिल होने के बाद उनके नीतीश मंत्रिमंडल से इस्तीफे को अब काफी समय गुजर चुका है. मुकेश सहनी पर बीजेपी फिर से डोरे डाल रही है. सहनी को वाई श्रेणी की सुरक्षा के बाद इस संभावना को खारिज नहीं किया जा सकता कि उनकी पार्टी फिर से एनडीए के घटक दल के रूप में नजर आए.

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बिहार में क्या बन रहे समीकरण

बिहार के सासाराम जिले के ही मूल निवासी अमिताभ तिवारी कहते हैं कि ताजा परिस्थितियां देखें तो एक तरफ नीतीश और तेजस्वी का गठबंधन, दूसरी तरफ बीजेपी के नेतृत्व वाला एनडीए और तीसरा धड़ा उन दलों का नजर आ रहा है जो कम से कम अभी इन दोनों में से किसी तरफ जाते नहीं दिख रहे.

उनके मुताबिक आरएलजेपी, एलजेपी (रामविलास), राष्ट्रीय लोक दल, हम एनडीए के खेमे में नजर आ रहे हैं. मुकेश सहनी भी बीजेपी के साथ जा सकते हैं. विपक्षी गठबंधन में फिलहाल नीतीश और तेजस्वी के साथ कांग्रेस पार्टी ही जाती दिख रही है. लेफ्ट किसी भी गठबंधन में शामिल हुए बिना चुनाव मैदान में उतरेगा, इस बात के पूरे आसार हैं. पीके अगर पार्टी बनाते हैं तो वे भी एकला चलो का नारा दे सकते हैं.

अमिताभ तिवारी कहते हैं कि जीतनराम मांझी के जाने से विपक्ष की सेहत पर कोई असर पड़ता नजर नहीं आ रहा. मांझी कभी महादलित के नेता नहीं बन पाए और यही वजह है कि महागठबंधन में उनके जाने के बाद भी न तो कोई हलचल है और ना ही बड़े नेताओं में ही कोई चिंता.

 

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