
बिहार की महागठबंधन सरकार में फूट पड़ गई है. दरअसल पिछले दिनों हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) पार्टी के चीफ जीतन राम मांझी के बेटे संतोष सुमन ने नीतीश कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया है. नीतीश ने उन्हें अल्पसंख्यक कल्याण विभाग का मंत्री बनाया था. संतोष मांझी ने इस्तीफे की वजह बताते हुए कहा था, 'जेडीयू चाहती थी कि हम अपनी पार्टी का विलय कर लें. हमें वो मंजूर नहीं था. हम तो अपना अस्तित्व बचा रहे हैं. नीतीश कुमार हमारा अस्तित्व खत्म करना चाह रहे हैं.' हालांकि उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि अभी हम महागठबंधन में हैं. कोशिश करेंगे कि उसी में रहें, लेकिन अगर सीट नहीं देंगे, तो हम अपना रास्ता देखेंगे. वहीं अब जेडीयू ने बिना समय गंवाए संतोष की जगह विधायक रत्नेश सादा को मंत्री बनाने का फैसला कर लिया है. राज्यपाल आर्लेकर वर्तमान में फिलहाल पटना में नहीं हैं. उनके लौटते ही उन्हें मंत्री पद की शपथ दिला दी जाएगी. उनके पास मंत्री पद की शपथ लेने का लेटर पहुंच गया है. नीतीश कैबिनेट का कल विस्तार होगा. अखिर क्या वजह है कि बिना देरी नीतीश कुमार ने रत्नेश सादा के नाम पर मुहर लगा दी? जानते हैं उनकी राजनीतिक पकड़ के बारे में...
11 साल से सोनबरसा से जदयू विधायक रत्नेश सादा की अपने क्षेत्र में मजबूत पकड़ है. वह महादलित समुदाय से आते हैं. रत्नेश सादा का राजनीतिक सफर 1987 से शुरू हुआ था, लेकिन वह पहली बार 2010 में विधानसभा चुनाव जीते थे. इसके बाद वह 2015 और 2020 में विधायक चुने गए. रत्नेश सादा अभी जेडीयू महादलित प्रकोष्ठ के अध्यक्ष हैं.
वह पार्टी में उपाध्यक्ष, प्रदेश महासचिव, सुपौल जिला संगठन प्रभारी समेत पदों पर भी रह चुके हैं. रत्नेश ग्रैजुएट हैं. उन्होंने संस्कृत में आर्चाय की डिग्री हासिल की है. उनकी कुल संपत्ति 1.30 करोड़ की है. उनके खिलाफ अभी तक कोई केस दर्ज नहीं हुआ है.
रत्नेश मुसहर समाज से आते हैं. उनका जीवन संघर्षों से भरा रहा. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक उनकी पड़ोसी शंभू दास ने बताया कि एक वक्त था जब रत्नेश रिक्शा चलाकर जीवन यापन करते थे. उनके पिता लक्ष्मी सादा मजदूरी करते थे. दलित समाज के विकास के लिए वह लगातार काम कर रहे हैं.
जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह ने मांझी के विलय वाले बयान को स्वीकार किया है. उन्होंने कहा कि 'हां एक ही जगह कितना छोटा-छोटा दुकान चलेगा. उन्होंने हमारे प्रस्ताव को ठुकरा दिया फिर पत्र लिखा की साथ रहने में सहमत नही हैं. इससे गठबंधन पर कोई असर नही पड़ने वाला है. देश की 17 पार्टियां एक जुट हो रही हैं.'
वहीं ललन सिंह के दुकान वाले बयान पर जीतन राम मांझी ने कहा कि ललन सिंह का जो भी इरादा रहा हो यह कहने का मुझे इससे मतलब नहीं है, लेकिन सभी लोग जानते हैं, दुकान का मतलब होता है, जहां खरीद फरोख्त होती है. ये लोग इसी पर विश्वास करते हैं और यही किया भी है. हम लोगों ने कभी खरीद फरोख्त नहीं की. हमारी पार्टी दुकान नहीं रही है.