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मोदी-नीतीश से मुकाबले के लिए इनमें से कौन सा मॉडल अपनाएंगे शरद यादव?

शरद यादव ने अपना सियासी सफर जेपी मूवमेंट से शुरू किया है और वो हमेशा से सामाजिक न्याय की लड़ाई लड़ते रहे हैं. इतना ही नहीं दलित, ओबीसी और अल्पसंख्यक हित की बात भी उठाते रहे हैं. ऐसे में शरद अपना सियासी मॉडल इसी के इर्द-गिर्द रखना चाहते हैं.

जेडीयू नेता शरद यादव जेडीयू नेता शरद यादव
कुबूल अहमद
  • नई दिल्ली,
  • 16 अगस्त 2017,
  • अपडेटेड 1:48 PM IST

महागठबंधन तोड़ नीतीश कुमार ने बीजेपी से हाथ क्या मिलाया, अपने ही बेगाने हो गए. नीतीश का बीजेपी के संग जाना शरद यादव को नागवार गुजरा और उन्होंने बगावत का नारा बुंलदकर अलग राह पर कदम बढ़ा दिए हैं. ऐसे में शरद यादव एक ऐसा सियासी फार्मूला बनाने की कवायद कर रहे हैं, जिसके जरिए वो नीतीश कुमार और नरेंद्र मोदी दोनों से दो-दो हाथ कर सकें.

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दरअसल शरद यादव ने अपना सियासी सफर जेपी मूवमेंट से शुरू किया है और वो हमेशा से सामाजिक न्याय की लड़ाई लड़ते रहे हैं. इतना ही नहीं दलित, ओबीसी और अल्पसंख्यक हित की बात भी उठाते रहे हैं. ऐसे में शरद अपना सियासी मॉडल इसी के इर्द-गिर्द रखना चाहते हैं. विकल्प के रूप में उनके पास तीन राजनीतिक मॉडल हैं. देखना ये है कि वो इनमें से कोई मॉडल चुनते हैं, या इनके आधार पर अपना कोई नया मॉडल पेश करते हैं.

 पहला फार्मूला जेपी मॉडल

जेपी के विचारों से प्रभावित होकर शरद यादव ने राजनीति में कदम रखा और पहला चुनाव 1974 में हलधर किसान के चुनाव निशान पर जीत दर्ज की. इसके बाद वे जेपी के मूवमेंट में पूरी तरह रंग बस गए और आपातकाल के खिलाफ खड़े हुए तथा जेल भी गए. जेपी आंदोलन पूरी तरह से कांग्रेस की नीतियों के खिलाफ खड़ा हुआ था. आज सत्ता में कांग्रेस नहीं है उसकी जगह  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार है. ऐसे में शरद के पास विकल्य है कि वे जेपी मॉडल की तर्ज पर मोदी और नीतीश की नीतियों के खिलाफ बीजेपी विरोधियों को एकजुट करके अपनी सियासी राह बनाएं.

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 दूसरा फार्मूला वीपी मॉडल

शरद के सामने दूसरा मॉडल वीपी सिंह का है. प्रधानमंत्री रहते हुए वीपी सिंह ने मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू करके देश में ओबीसी आरक्षण का रास्ता खोला था. इस मॉडल को शरद ने बहुत करीब से देखा और जिया है. यही वजह है कि शरद वीपी सिंह के मॉडल को फिर से अपनाकर ओबीसी समाज को मोदी और नीतीश के खिलाफ एकजुट कर सकते हैं.

 तीसरा कांशीराम मॉडल

शरद यादव के पास तीसरा राजनीतिक फार्मूला कांशीराम मॉडल है. कांशीराम ने दलित, ओबीसी और अल्पसंख्यकों के बीच राजनीतिक चेतना जगाने के लिए लंबे समय तक संघर्ष और आंदोलन किया था और बाद में उन्होंने बीएसपी भी बनाई. जिसकी कमान फिलहाल मायावती के हाथ में है. कांशीराम मॉडल से यूपी, बिहार महाराष्ट्र सहित कई राज्यों में दलितों का राजनीतिक प्रतिनिधित्व बढ़ा. ऐसे में शरद कांशीराम मॉडल को भी अपनाकर आगे की सियासी राह पर कदम बढ़ा सकते हैं. कांशीराम के इस मॉडल को अंबेडकर मॉडल भी कहा जा सकता है.

 चौथा समन्वय मॉडल

शरद के सामने इन तीनों उपरोक्त सियासी मॉडल के अलावा चौथा मॉडल समन्वय फार्मूला है. जेपी मॉडल, वीपी सिंह मॉडल और कांशीराम मॉडल को मिलाकर समन्वय मॉडल बनाने की दिशा में वो आगे बढ़ सकते हैं. शरद यादव ने गैर बीजेपी दलों की एक मीटिंग गुरुवार को बुलाई है, जिसमें वामपंथी दलों से लेकर समाजवादी, आरजेडी सहित कई दलों के नेता एकजुट होंगे. अली अनवर कहते हैं कि गैर बीजेपी दलों को एकजुट करके एक ऐसा मॉडल शरद यादव बनाना चाहते हैं जिसके जरिए देश की साझी विरासत और देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था को बचाने के लिए आगे बढ़ा जाए. जिसमें अंबेडकर से लेकर जेपी और वीपी सिंह के मॉडल हमारे पास मौजूद हैं, जिन्हें मिलाकर समन्वय मॉडल बनाया जा सकता है, जिसमें सभी वर्गों का प्रतिनिधित्व हो.

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