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आरजेडी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष शिवानंद तिवारी ने केन्द्रीय मंत्री रामविलास पासवान पर सवर्णों को आरक्षण के नाम पर मूर्ख बनाने का आरोप लगाया है. उन्होंने कहा कि नरसिंह राव की सरकार ने आर्थिक रूप से ग़रीबों के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण का क़ानून बनाया था जिसको 1992 में सर्वोच्च न्यायालय ने अमान्य कर दिया था.
शिवानंद तिवारी ने कहा कि अटल जी की सरकार ने भी इस मसले पर विचार करने के लिए एक समिति बनाई थी. लेकिन उसका कोई निष्कर्ष नहीं निकला. दरअसल हमारा संविधान आरक्षण का आधार सामाजिक और शैक्षणिक पिछड़ापन को मानता है. इसके अलावा जिन जातियों को आरक्षण देना है उनका उनकी आबादी के अनुपात में सरकारी नौकरियों में कितना प्रतिनिधित्व है, यह भी देखा जाता है.
आरजेडी नेता शिवानंद तिवारी ने पटना में बयान जारी कर कहा कि सरकारी नौकरियों में सवर्णों का प्रतिनिधित्व उनकी आबादी के अनुपात से कहीं ज़्यादा है. इन सभी तथ्यों से रामविलास पासवान वाक़िफ़ हैं. फिर भी सवर्ण आरक्षण की बात कहकर उनको बेवक़ूफ़ बनाने की कोशिश कर रहे हैं. सवर्णों के बीच भी ग़रीबी और बेरोज़गारी की समस्या अत्यंत गंभीर है. लेकिन उनको समझना होगा कि बेरोज़गारी का समाधान आरक्षण से नहीं होने वाला है.
आरजेडी नेता ने कहा कि देश में कुल सरकारी नौकरी डेढ़ करोड़ के आसपास हैं. जो हमारी आबादी का लगभग डेढ़ प्रतिशत हैं. फिर आरक्षण पाने वाली जातियों के नौजवानों में बेरोज़गारी और गरीबी की व्यापक समस्या है. इसलिए समझना होगा कि बेरोज़गारी और गरीबी का इलाज आरक्षण नहीं है. यह समझना चाहिए कि आरक्षण पाने वाली जातियां देश की आबादी की 75 प्रतिशत के लगभग हैं. लेकिन उनके लिए आरक्षण की अधिकतम सीमा 49.5 प्रतिशत है. जबकि सामान्य जातियों की आबादी 15 प्रतिशत है. लेकिन उनके लिये अप्रत्यक्ष रूप से 50.5 आरक्षण है.
तिवारी ने कहा कि उच्चतम न्यायालय के फ़ैसले के मुताबिक़ आरक्षित श्रेणी के उम्मीदवार भले ही सामान्य श्रेणी के उम्मीदवार से ज़्यादा अंक लाते हों, उनकी गिनती आरक्षित श्रेणी में ही होगी. इसलिए आरक्षण का विरोध किसी भी आधार पर न्यायोचित नहीं माना जा सकता है. बल्कि यह समाज में नए तरह का टकराव पैदा करेगा. इसलिए देश के नौजवानों को जाति-धर्म के घेरे से ऊपर उठकर बेरोज़गारी के ख़िलाफ़ संघर्ष करना चाहिए. नारा लगना चाहिए कि देश के विकास की कसौटी का आधार जीडीपी नहीं बल्कि रोज़गार का सृजन हो. केन्द्रीय मंत्री रामविलास पासवान आर्थिक आधार पर सवर्णों को आरक्षण देने का मुद्दा लगातार उठाते रहे हैं.