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बिहार शेल्टरहोम कांड पर सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार और केंद्र सरकार को जमकर फटकार लगाई. वहीं, कोर्ट ने बिहार सरकार को कहा कि वो शेल्टर होम को लेकर कराई गई सोशल ऑडिट रिपोर्ट सार्वजनिक करें. शेल्टर होम की बच्चियों की काउंसलिंग कैसे, कब-कब और कौन करेगा; ये बिहार सरकार तय करे.
राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में जवाब दाखिल कर बताया कि मामले में रिपोर्ट मीडिया में किसी भी फॉर्म में चल सकती थी. इसलिए रिपोर्ट के लीक होने के के डर से उसे सार्वजनिक नहीं किया गया.
सुप्रीम कोर्ट ने महिला और बाल कल्याण मंत्रालय को फटकार लगाते हुए कहा कि आप क्या डील कर रहे हैं और हलफ़नामा आपने क्या दाखिल किया है. साथ ही पूछा कि रिपोर्ट तैयार करते समय क्या उन्होंने बच्चों से बात की? कोर्ट ने कहा कि हमें वो रिपोर्ट दिखाई जाए, जिसमें बच्चों से बात करते हुए उन्होंने शारीरिक या यौन उत्पीड़न की शिकायत की हो. कोर्ट ने कहा कि हम ये जानना चाहते हैं कि बच्चों की स्थिति कैसी है?
कोर्ट ने पूछा कि बच्चों के लिए आपने क्या-क्या इंतज़ाम किए हैं? जो बच्चे यौन उत्पीड़न के शिकार हुए उनका क्या हुआ?
कोर्ट ने मंत्रालय को डांट लगाते हुए हुए कहा कि आप कह रहे हैं कि आपने एक साल पहले राज्य सरकार को रिपोर्ट दी थी. फिर उस रिपोर्ट का क्या हुआ? आपने कभी ये जानने की कोशिश की? आपने ये पूछने या जानने की जहमत भी नहीं उठाई कि क्या राज्य सरकार ने उसका पालन किया? कोर्ट ने चेतावनी के लहजे ने कहा कि अगर ऐसी रिपोर्ट है उसके बाद भी सरकार ने काम नहीं किया तो ये उनकी लापरवाही को दर्शाता है.
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि हमारी चिंता बच्चों को लेकर है. हम ये जानना चाहते है कि बच्चे वहां खुश हैं या नहीं? अगर खुश नहीं हैं तो क्यों? सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार से पूछा कि क्या सभी विभागों का एक-दूसरे के साथ साथ काम करना मुमकिन है या नहीं?
बता दें कि टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस की ओर से वृंदा ग्रोवर ने दो रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट में दी गई. इसमें से एक में पुनर्वास की योजना को लेकर जानकारी है. साथ ही इसमें बच्चों के भविष्य और उन्हें मुख्यधारा में कैसे शामिल किया जाए इस पर भी सुझाव हैं. दूसरी रिपोर्ट सोशल ऑडिट को लेकर है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि बिहार में 110 शेल्टर होम हैं, जिनका सोशल ऑडिट 6 महीने में होना चाहिए. इनमें बाल आश्रम और वृद्धाश्रम दोनों शामिल हैं.