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नीतीश से तीसरी बार उपेंद्र कुशवाहा का ब्रेकअप, दो बार हुए हिट विकेट, क्या इस बार बचा पाएंगे वजूद?

यह पहला मौका नहीं है, जब उपेंद्र ने नीतीश कुमार का साथ छोड़ा है. इससे पहले वे 2005 और 2013 में नीतीश का साथ छोड़कर अपनी पार्टी का गठन कर चुके हैं. हालांकि, तब कुशवाहा बिहार की राजनीति में कोई खास छाप नहीं छोड़ सके. ऐसे में दोनों बार उन्हें लौटकर नीतीश के शरण में ही आना पड़ा.

उपेंद्र कुशवाहा ने नई पार्टी का किया ऐलान उपेंद्र कुशवाहा ने नई पार्टी का किया ऐलान
प्रभंजन भदौरिया
  • पटना,
  • 20 फरवरी 2023,
  • अपडेटेड 3:47 PM IST

जदयू में तनातनी के बीच उपेंद्र कुशवाहा ने तीसरी बार नीतीश कुमार से ब्रेकअप कर लिया. उपेंद्र कुशवाहा एक बार फिर अपनी पार्टी बनाकर बिहार में राजनीतिक जमीन तलाशना शुरू करेंगे. उपेंद्र कुशवाहा ने इसी के साथ नई पार्टी राष्ट्रीय लोक जनता दल बनाने का ऐलान किया. वे पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष होंगे. उपेंद्र कुशवाहा ने 1985 में अपना राजनीतिक करियर शुरू किया था.

यह पहला मौका नहीं है, जब उपेंद्र ने नीतीश कुमार का साथ छोड़ा है. इससे पहले वे 2005 और 2013 में नीतीश का साथ छोड़कर अपनी पार्टी का गठन कर चुके हैं. हालांकि, इस दौरान कुशवाहा बिहार की राजनीति में कोई खास छाप नहीं छोड़ सके. ऐसे में दोनों बार उन्हें लौटकर नीतीश के शरण में ही आना पड़ा.

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कब कब छोड़ा साथ, कब आए पास?

उपेंद्र कुशवाहा ने राजनीतिक सफर समता पार्टी से शुरू किया था. इसी पार्टी में जॉर्ज फर्नांडिस और नीतीश कुमार जैसे नेता थे. 2000 विधानसभा चुनाव में हार के बाद लालू की पार्टी का सामना करने के लिए समता पार्टी और जदयू का विलय किया गया. 2003 में उपेंद्र कुशवाहा को जदयू ने नेता प्रतिपक्ष बनाया. 

साल 2005 में राष्ट्रीय समता पार्टी बनाई

साल 2005 में जब बिहार विधानसभा चुनाव में बीजेपी और जदयू की अगुआई वाली एनडीए बिहार की सत्ता में आई तब कुशवाहा अपनी ही सीट से चुनाव हार गए. इसके बाद कुशवाहा और नीतीश के बीच दूरियां आ गईं थीं. उन्होंने जदयू को अलविदा भी कह अपनी नई पार्टी बनाई और नाम रखा था राष्ट्रीय समता पार्टी.

2010 में नीतीश के साथ आए, 2013 में फिर अलग हुईं राहें

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साल 2010 में एक बार फिर बदलाव की बयार चली और नीतीश के न्योते पर कुशवाहा ने घर वापसी की. उपेंद्र एक बार फिर जेडीयू में आ गए. लेकिन साल 2014 में लोकसभा चुनाव से ठीक पहले मार्च 2013 में उपेंद्र कुशवाहा ने अपनी नई पार्टी राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (रालोसपा) बना ली. और 2014 के लोकसभा चुनाव में एनडीए को अपना समर्थन भी दे दिया. बिहार की तीन लोकसभा सीट पर उनकी पार्टी ने चुनाव लड़ा और उस दौर में मोदी लहर का जादू ऐसा चला कि ये तीनों सीट कुशवाहा के पाले में जा गिरीं. और इसके इनाम में उन्हें मोदी कैबिनेट में जगह मिली और वो मानव संसाधन राज्य मंत्री बने.

2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी रालोसपा ने बीजेपी के साथ गठबंधन किया था. इस दौरान कुशवाहा की पार्टी 23 सीटों पर चुनाव लड़ी, इनमें से सिर्फ 2 पर ही उनकी पार्टी को जीत मिल सकी. 2013 में बनी ये पार्टी 5 साल में ही बिखर गई. साल 2018 आते आते कुशवाहा की पार्टी एक झटके में ढह गई.

2019 में महागठबंधन में पहुंचे

इसके बाद उन्हें तेजस्वी यादव का साथ मिला. वे 2019 लोकसभा चुनाव में विपक्षी महागठबंधन में शामिल हुए. उन्हें 5 सीटें मिलीं, दो पर वे खुद चुनाव लड़े, लेकिन हार गए. इसके बाद उन्होंने महागठबंधन का साथ छोड़ दिया. बिहार में 2020 में जब विधानसभा चुनाव हुए तो उपेंद्र कुशवाहा ने मायावती की बीएसपी और असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम जैसी पार्टियों के साथ गठबंधन बनाया. लेकिन उनकी पार्टी एक भी सीट नहीं जीत पाई. 

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जदयू में किया विलय

2020 के विधानसभा चुनावों के बाद उपेंद्र कुशवाहा ने जदयू का रुख किया. उन्होंने अपनी पार्टी रालोसपा का जेडीयू में विलय करा दिया. उन्हें जदयू के संसदीय बोर्ड का अध्यक्ष बना दिया गया था. उन्हें  बिहार विधान परिषद का सदस्य भी बनाया गया. लेकिन अब फिर उनका मोहभंग हो गया. उन्होंने नीतीश की पार्टी से ब्रेकअप का ऐलान कर दिया. 

क्यों नीतीश से अलग की राहें?

उपेंद्र की नाराजगी की खबरें तब से आ रही थीं, जब बिहार में महागठबंधन की सरकार बनने के बाद कुशवाहा को कोई मंत्री पद नहीं मिला था. माना जा रहा है कि कुशवाहा को उम्मीद थी की कैबिनेट विस्तार में उन्हें डिप्टी सीएम बनाया जाएगा, लेकिन नीतीश कुमार ने साफ कर दिया कि कोई दूसरा डिप्टी सीएम नहीं होगा.

राजनीतिक करियर: 2000 में पहली बार बने विधायक

लेक्चरर की नौकरी छोड़ कर पॉलिटिक्स में आए उपेंद्र कुशवाहा को बिहार की सियासत में पहचान नीतीश कुमार ने दिलाई. उपेंद्र कुशवाहा का राजनीतिक करियर 1985 से शुरू हुआ. 1985 से 1988 तक युवा लोकदल के वे प्रदेश सचिव रहे. उसके बाद वे जनता दल का हिस्सा बन गये और 1988 से 1993 तक वे युवा जनता दल के राष्ट्रीय महासचिव की भूमिका में रहे. इसके बाद साल 1994 से 2002 तक वे समता पार्टी का हिस्सा रहे. पहली बार सन 2000 में वे समता पार्टी के टिकट पर बिहार के वैशाली जिले की जंदाहा सीट से एमएलए चुने गए. 

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2002 से 2004 तक वे बिहार विधानसभा में पार्टी विधायक दल के उपनेता रहे. 2004-05 में उन्हें पार्टी ने विधानसभा में विपक्ष का नेता बना दिया. समता पार्टी जब जदयू के रूप में बदली तो 2010 में वे राज्यसभा भेजे गए, जहां 2013 तक रहे। 2014 में उन्होंने राष्ट्रीय लोक समता पार्टी बना ली और एनडीए का हिस्सा बन कर लोकसभा का चुनाव लड़े. उनके साथ उनकी पार्टी के टिकट पर दो और लोग चुने गए. अपनी तीन सीटों की भागीदारी के साथ वे नरेंद्र मोदी मंत्रिमंडल में राज्य मंत्री बनाए गए.


 

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