
छत्तीसगढ़ में कांग्रेस का 15 साल के सत्ता का वनवास खत्म हो गया है. कांग्रेस ने प्रचंड बहुमत के साथ राज्य में जीत हासिल की है. रमन सिंह का लगातार चौथी बार मुख्यमंत्री बनने का सपना टूटा. वहीं, प्रदेश की सियासत में दो दशक तक कांग्रेस का चेहरा रहे और किंगमेकर बनने का ख्वाब देख रहे अजीत जोगी पूरी तरह से सड़क पर आ गए हैं.
छत्तीसगढ़ की राजनीति में सत्ता की धुरी बनने के लिए अजीत जोगी ने कांग्रेस से बगावत कर अलग पार्टी बनाई और बसपा के साथ मिलकर चुनावी मैदान में उतरे, पर मतदाताओं ने उन्हें नकार दिया. सूबे की 90 सीटों में से कांग्रेस को 68 और बीजेपी को 15 सीटें मिली. जबकि जोगी की पार्टी के महज 5 और बसपा को सिर्फ दो सीटों से संतोष करना पड़ा.
कांग्रेस को बहुमत से काफी ज्यादा सीटें मिली है. ऐसे में उसे किसी सहयोगी दल की बैशाखी की जरूरत नहीं है. ऐसे में किंगमेकर बनने का अजीत जोगी का ख्वाब पूरी तरह से छू हो गया है. इतना ही नहीं उन्हें दलित और आदिवासी बेल्ट में भी करारी हार का मुंह देखना पड़ा है.
बस्तर की 12 की 12 सीटें कांग्रेस को मिली हैं. जोगी और मायावती का सबसे ज्यादा प्रभाव बिलासपुर, जांजगीर-चंपा और मुंगेली जिले में था. लेकिन इन इलाकों में भी कांग्रेस ने उनका सफाया कर दिया है. हालांकि बसपा को पिछले चुनाव की तुलना में एक सीटें ज्यादा मिली हैं. बावजूद इसके सत्ता की चाबी उनके हाथ में नहीं आई.
बता दें कि कांग्रेस ने पिछले तीन चुनावों में अजीत जोगी को अपना चेहरा बनाया था, लेकिन वह रमन सिंह को सत्ता से बेदखल नहीं कर सके. इस बार कांग्रेस जोगी के बिना और किसी चेहरे को आगे किए बगैर मैदान में उतरी और दो तिहाई बहुमत के साथ सत्ता में वापसी की. प्रदेश की सियासत में कांग्रेस पहली बार जीत हासिल करके सरकार बनाने जा रही है.
कांग्रेस की इस जीत के बाद अजीत जोगी प्रदेश की सियासत में पूरी तरह सड़क पर आ गए हैं. जबकि इससे पहले तक सूबे की सियासत को अपनी उंगलियों पर नचाया करते थे. कांग्रेस आलाकमान पर जहां दबाव बनाकर अपनी राजनीतिक ताकत का एहसास कराते थे. वहीं, विपक्ष के सबसे बड़े चेहरा होने के नाते रमन सिंह के भी चहेते माने जाते थे. लेकिन नतीजे के बाद अब वो पूरी तरह से अप्रासंगिक बन गए हैं.