
मीसा बंदियों को लोकतंत्र सेनानी मानते हुए छत्तीसगढ़ सरकार ने पेंशन देने की जो व्यवस्था शुरू की थी, उस पर कांग्रेस पार्टी की नई सरकार ने फिलहाल रोक लगा दी है. भूपेश बघेल सरकार ने फैसला लिया है कि मीसा बंदियों का लाभ पाने वालों का पूर्ण रूप से सत्यापन होने तक उन्हें मिलने वाली सम्मान निधि की रकम पर रोक जारी रहेगी.
फरवरी से यह रोक लागू की जा रही है. यह व्यवस्था भारतीय जनता पार्टी की रमन सिंह सरकार ने शुरू की थी. अब इस पर बैन लगाते हुए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा है कि मीसा बंदी स्वतंत्रा सेनानी नहीं हैं, ऐसे में उन्हें पेंशन क्यों दी जाए.
क्यों लिया गया फैसला
सरकार का कहना है कि लोक नायक जयप्रकाश नारायण सम्मान निधि, 2008 के तहत लोकतंत्र सेनानियों को मिलने वाली राशि की प्रक्रिया को और पारदर्शी बनाने के मकसद से यह फैसला लिया गया है. इसके तहत सम्मान निधि का लाभ पाने वालों का बाकायदा भौतिक सत्यापन भी कराया जाएगा. कहा जा रहा है कि सत्यापन की इस प्रक्रिया के बाद ही लोकतंत्र सेनानियों को सम्मान निधि की राशि दी जाएगी.
हालांकि, सरकार के इस फैसले पर लोकतंत्र सेनानी संघ ने सवाल उठाए हैं. संघ के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष सच्चिदानंद उपास ने कहा है कि सरकार की नीयत ठीक नहीं है. उनका कहना है कि सत्यापन के लिए इसे बंद करना जरूरी नहीं है क्योंकि बंद किए बिना भी सत्यापन शासकीय स्तर पर किया जा सकता है. उन्होंने कहा कि यह पेंशन कब तक नहीं मिलेगा, इसे लेकर भी कोई स्पष्टीकरण नहीं है.
1975 में इंदिरा गांधी द्वारा लगाई गई इमरजेंसी के दौरान दौरान कांग्रेस विरोधियों, पत्रकारों और सामाजिक कार्यकर्ताओं को जेल में डाला गया. इसके लिए मीसा कानून का सहारा लिया गया. मीसा यानी आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था अधिनियम. यह कानून 1971 में लागू हुआ था, लेकिन आपातकाल के दौरान इसमें कई संशोधन किए गए और इंदिरा गांधी सरकार ने इस कानून का इस्तेमाल अपने राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ किया.
2008 से दी जा रही मीसा बंदियों को पेंशन
छत्तीसगढ़ में मीसा बंदियों को 2008 से पेंशन दी जा रही है. तीन महीने जेल में रहे लोगों को 10 हजार, 3-6 महीने तक जेल में रहे लोगों को 15 हजार और 6 महीने से ज्यादा जेल में रहे लोगों को 25 हजार रुपये की सम्मान निधि राशि मिलती है. लोकतंत्र सेनानी संघ के मुताबिक, निधि पाने वालों की संख्या लगभग तीन सौ है. जिनमें से अधिकांश लोगों का निधन हो चुका है. इनमें से ज्यादातर बुजुर्ग हैं और उनका इलाज कर चल रहा है. संघ का कहना है कि यह बंद करने पर दवाइयों के अभाव में उनकी हालत खराब हो सकती है.