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छत्तीसगढ़: 76% रिजर्वेशन बिल राज्यपाल के पास अटका, भूपेश सरकार की बढ़ी मुश्किलें

छत्तीसगढ़ विधानसभा में आरक्षण बिल पास होने के बाद राज्यपाल के पास आकर अटक गया है. गवर्नर अनुसूईया उइके ने कहा कि जब कोर्ट ने 58 फीसदी आरक्षण को ही अवैधानिक कह दिया है तो 76 प्रतिशत आरक्षण का बचाव सरकार कैसे करेगी.

राज्यपाल अनसुईया उइके और सीएम भूपेश बघेल राज्यपाल अनसुईया उइके और सीएम भूपेश बघेल
aajtak.in
  • रायपुर,
  • 11 दिसंबर 2022,
  • अपडेटेड 9:56 AM IST

छत्तीसगढ़ विधानसभा में आरक्षण बिल (Reservation Bill) पास होने के बाद अब मामला राज्यपाल के पास आकर अटक गया है. बिल को संवैधानिक मान्यता देने के लिए अब सबकी निगाहें राज्यपाल की ओर हैं, लेकिन अभी तक राज्यपाल अनुसूईया उइके ने साइन नहीं किए हैं.

वहीं, राज्यपाल का इस मामले में कहना है कि मैंने सिर्फ आदिवासी वर्ग का आरक्षण बढ़ाने के लिए सरकार को विशेष सत्र बुलाने का सुझाव दिया था. लेकिन सरकार ने सभी का आरक्षण बढ़ा दिया. साथ ही कहा कि जब कोर्ट ने 58 फीसदी आरक्षण को ही अवैधानिक कह दिया है तो 76 प्रतिशत आरक्षण का बचाव सरकार कैसे करेगी.

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धमतरी पहुंचीं राज्यपाल अनुसूईया उइके ने आरक्षण विधेयक पर कहा कि हाईकोर्ट ने 2012 के विधेयक में 58 प्रतिशत आरक्षण के प्रावधान को अवैधानिक कर दिया था. इससे प्रदेश में असंतोष का वातावरण था. आदिवासियों का आरक्षण 32 से घटकर 20 प्रतिशत पर आ गया. इसके बाद सर्व आदिवासी समाज ने पूरे प्रदेश में जन आंदोलन शुरू कर दिया था. सामाजिक संगठनों, राजनीतिक दलों ने आवेदन दिया. इसके बाद मैंने सीएम भूपेश बघेल को एक पत्र लिखा था. मैं व्यक्तिगत तौर पर भी जानकारी ले रही थी. मैंने सिर्फ जनजातीय समाज के लिए ही सत्र बुलाने की मांग की थी.

राज्यपाल ने कहा कि मैंने सुझाव के तौर पर कहा था कि अध्यादेश लाना हो तो अध्यादेश लाइए, विशेष सत्र बुलाना हो तो वह बुलाइए. अब इस विधेयक में ओबीसी समाज का 27 प्रतिशत, अन्य समाज का 4 प्रतिशत और एससी समाज का 1 प्रतिशत आरक्षण बढ़ा दिया गया है. अब मेरे सामने ये सवाल आ गया कि जब कोर्ट 58 प्रतिशत आरक्षण को अवैधानिक घोषित कर चुका है तो यह 76 प्रतिशत कैसे हो गया. 

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'बिना सोचे-समझे हस्ताक्षर करना ठीक नहीं'


राज्यपाल उइके ने कहा कि केवल आदिवासी का आरक्षण बढ़ा होता तो दिक्कत नहीं होती. अब मुझे यह देखना है कि दूसरे वर्गों का आरक्षण कैसे तय हुआ है. रोस्टर की तैयारी क्या है. एससी, एसटी, ओबीसी और जनरल वर्ग के संगठनों ने मुझे आवेदन देकर विधेयक की जांच करने की मांग की है. उन आवेदनों का भी मैं परीक्षण कर रही हूं. बिना सोचे-समझे हस्ताक्षर करना ठीक नहीं होगा.

क्या है राज्यपाल का कहना?


राज्यपाल ने बताया कि विशेष सत्र तक उनकी चिंता सिर्फ 2018 के अधिनियम में दिए गए 58 प्रतिशत आरक्षण को बचाने की थी. अगर मुझे लगता है कि इस मामले में सरकार के पास सही डाटा है, और तैयारी पूरी है तो मुझे कोई दिक्कत नहीं है. हालांकि सामान्य वर्ग ने भी आवेदन दिया है कि बिल पर हस्ताक्षर न करें. क्योंकि इसमें उनके आरक्षण को 10 फीसदी से घटाकर 4 फीसदी कर दिया गया है.


'मैं साइन कर दूं, कल कोई कोर्ट चला गया तो'


राज्यपाल ने कहा कि ये मामला कोर्ट में जाएगा. हाईकोर्ट ने पहले ही कहा था कि आपने किस आधार पर 2012 में आरक्षण बढ़ाया था. किस वजह से एससी का आरक्षण कम किया, जबकि एसटी और ओबीसी का आरक्षण बढ़ाया. पदों पर इन वर्गों की क्या स्थिति है. उन्होंने कहा कि मैं तकनीकी तौर पर पूरी तरह समझ लूं कि सरकार की क्या तैयारी है. आज मैं साइन कर दूं, कल को कोई कोर्ट चला गया तो?

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(रिपोर्ट- श्रीप्रकाश तिवारी)


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