
छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में बुधवार को नक्सलियों ने बड़ा हमला कर दिया. उन्होंने अरनपुर के पालनार क्षेत्र में डिस्ट्रिक्ट रिजर्व गार्ड (DRG) फोर्स के जवानों से भरे वाहन को आईईडी ब्लास्ट से उड़ा दिया. इस हमले में डीआरजी के 10 जवान शहीद हो गए, साथ ही एक ड्राइवर की भी जान चली गई है. नक्सलियों ने सड़क के बीच में लैंडमाइन बिछा रखी थी. धमाका इतना जोरदार था कि सड़क पर करीब 5 फुट गहरा गड्ढा हो गया.
जानकारी के मुताबिक अरनपुर इलाके में नक्सलियों के बड़े लीडर्स के होने की सूचना पर डीआरजी के जवानों को वहां भेजा गया था. बुधवार दोपहर करीब 1:15 बजे जवान लौटते समय रास्ते में एक निजी वाहन को रोककर सवार हो गए. जैसे ही वाहन पालनार के पास पहुंची, नक्सलियों ने विस्फोट कर दिया. बताया जा रहा है कि नक्सलियों ने करीब 50 किलो का आईईडी प्लांट कर रखा था.
हमले की जांच में जुटी सुरक्षा एजेंसियों ने आजतक को एक्सक्लूसिव जानकारी दी कि नक्सली मार्च से जून के बीच टैक्टिकल काउंटर अफेंसिव कैंपेन (TCOC)चलाते हैं. उनका मकसद ज्यादा से ज्यादा सुरक्षा बलों पर हमला कर नुकसान पहुंचाना होता है. सूत्रों ने बताया है कि नक्सलियों ने छत्तीसगढ़ के साउथ बस्तर में ही टीसीओसी चलाने का प्लान नहीं बनाया है बल्कि उन्होंने काफी सालों बाद अब नए ट्राई जंक्शन के नजदीक सुरक्षा बलों पर हमला करने का टीसीओसी प्लान तैयार किया है.
टीसीओसी को चौथा सबसे ज्यादा रक्तपात करने वाला महीना कहा जाता है क्योंकि नक्सली इस दौरान न केवल बड़े नक्सली हमले करते हैं बल्कि वे बड़ी संख्या में नए नक्सलियों की भर्ती भी करते हैं. साथ ही टीसीओसी के दौरान नक्सली नए सदस्यों को घात लगाकर जवानों पर हमला करने की ट्रेनिंग देते हैं. साथ ही, नए सदस्यों को पकड़े और मरे बिना सुरक्षा बलों के हथियारों और गोला-बारूद लूटने की भी ट्रेनिंग दी जाती है.
नक्सली हमले के बाद पुलिसबल ने तुरंत ऑपरेशन शुरू कर दिया था. नक्सलियों को घेरकर उनकी सर्चिंग शुरू कर दी है. इस ऑपरेशन में शामिल होने के लिए अतिरिक्त पुलिस और सीआरपीएफ के जवान भी घटना स्थल पहुंच चुके हैं. जंगलों में छुपे नक्सलियों की सर्चिंग अभी जारी है. दो हेलीकॉप्टरों से नक्सलियों की तलाश की जा रही है. वहीं शहर जाने वाले सभी रास्तों पर पुलिस जवानों को तैनात कर नक्सलियों की धरपकड़ तेज कर दी गई है.
जानकारी के मुताबिक बस्तर में जगह-जगह नक्सलियों ने बारूद लगा रखा हैं. अकसर सर्च ऑपरेशन पर निकले जवानों को हिदायत दी जाती है कि कोई भी वाहन का उपयोग नहीं करेगा लेकिन डीआरजी के जवानों ने चूक कर दी. उन्होंने वह वाहन में सवार होकर लौट रहे थे. इससे नक्सलियों को मौका मिल गया और उन्होंने धमाका कर दिया.
जानकारी के मुताबिक जो जवान शहीद हुए हैं, वे पुलिसकर्मी राज्य पुलिस के जिला रिजर्व गार्ड (DRG) विशेष बल के सदस्य थे. डीआरजी में ज्यादातर स्थानीय आदिवासी शामिल हैं, जिन्हें माओवादियों से निपटने के लिए प्रशिक्षित किया गया है.
सूत्रों के मुताबिक नक्सलियों ने यह हमला कर एक संदेश देने की कोशिश की है. पिछले कई वर्षों में नक्सलियों को आत्मसमर्पण कराने के लिए डीआरजी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. इसके अलावा कई पूर्व नक्सली नेता अब छत्तीसगढ़ में नक्सलियों के खिलाफ डीआरजी में काम कर रहे हैं.
प्रदेश में नक्सलियों को कमजारे करने के लिए 2008 में DRG का गठन किया गया था. इस फोर्स को सबसे पहले कांकेर और नारायणपुर में तैनात किया गया था. इसके बाद 2013 में बीजापुर और बस्तर फिर 2014 में सुकमा और कोंडागांव, इसके बाद 2015 में दंतेवाड़ा में इन्हें तैनात किया गया.