
नक्सली हिंसा से जूझ रहे छत्तीसगढ़ के कोंडागांव में भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (आईटीबीपी) के जवान करीब डेढ़ साल से स्थानीय स्कूलों में बच्चों को पढ़ा रहे हैं. साथ ही स्कूली बच्चों से बदले में 'हलबी' बोली बोलना सीख रहे हैं. ये स्कूली बच्चे आईटीबीपी के जवानों को बाकायदा क्लास में बैठाकर हलबी पढ़ा रहे हैं.
आपको बता दें कि कोंडागांव के हदेली समेत अन्य गांवों के आसपास स्थित आईटीबीपी कैंप में तैनात जवानों ने स्थानीय स्कूलों के बच्चों को गणित और विज्ञान समेत अन्य विषयों को पढ़ाने का बीड़ा उठाया था. आईटीबीपी के जवानों की यह पहल अब भी जारी है.
ये जवान जब भी अपने काम से छुट्टी पर होते हैं, तो स्थानीय स्कूलों में जाते हैं और शिक्षक की भूमिका में नजर आते हैं. अब इन जवानों ने इन स्कूलों में पढ़ना भी शुरू कर दिया है यानी ये जवान अब क्लास में बैठकर हलबी भाषा सीख रहे हैं. इन स्कूलों के छोटे-छोटे बच्चे खुद आईटीबीपी के जवानों को हलबी पढ़ा रहे हैं. ये बच्चे भी पूरी सिद्दत के साथ अपनी मातृभाषा इन जवानों को सिखा रहे हैं.
अबूझमाड़ से सटे धुर नक्सल प्रभावित कोंडागांव के हदेली में करीब डेढ़ साल पहले आइटीबीपी का कैंप खुला था. यहां की स्थानीय बोली हलबी जवानों के लिए एक बड़ी समस्या थी और बोलचाल के लिए जवानों को ग्रामीणों की मदद लेनी पड़ती थी. इस भाषाई बाधा की वजह से वो स्थानीय लोगों से संवाद स्थापित नहीं कर पाते थे.
दूरस्थ इलाके में जब भी जवान अभियानों के बाद गांव के स्कूलों में जाते थे, तो स्थानीय स्कूलों में बच्चों को उनकी पढ़ाई में मदद करते थे. इस इलाके के स्कूलों में शिक्षकों की भारी कमी है. कुछ समय बाद धीरे-धीरे ग्रामीणों और स्कूली बच्चों का आइटीबीपी के जवानों पर विश्वास इतना बढ़ा कि बच्चों ने खुद जवानों को हलबी बोलना और लिखना सिखाना शुरू कर दिया.
यहां के प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालयों में कुल 85 छात्र-छात्राएं पढ़ रहे हैं. इस इलाके में आईटीबीपी ने बच्चों को शिक्षा देने के साथ ही स्वच्छ पानी उपलब्ध कराने और छोटी-मोटी बीमारियों पर इलाज मुहैया कराने की भी शुरुआत की है. आईटीबीपी के जवानों की पहल से इस क्षेत्र के स्कूली बच्चों का भविष्य संवर रहा है. साथ ही जवान स्थानीय भाषा को सीखकर इलाके को बेहतर तरीके से समझने की कोशिश कर रहे हैं.
इस पहले से आईटीबीपी का स्थानीय लोगों के साथ मेल-मिलाप भी बढ़ा है और नक्सली गतिविधियों में कमी देखने को मिली है. यहां के आसपास के इलाकों में सैकड़ों की संख्या में नक्सलियों ने आत्मसमर्पण भी किया है. इसके अलावा सिविक एक्शन कार्यक्रम के माध्यम से स्थानीय ग्रामीण लगातार लाभान्वित हो रहे हैं.
छत्तीसगढ़ के बीहड़ अबूझमाड़ के इलाके में केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों को भाषा के ज्ञान की कमी की वजह से कई बार समस्याओं का सामना करना पड़ता था. छत्तीसगढ़ में कई स्थानीय भाषाएं हैं, जिनमें गोंडी और हलबी प्रमुख हैं.
हल्बी उड़िया और मराठी के बीच की एक पूर्वी भारतीय आर्य भाषा है. इसे बस्तरी, हल्बा, हलबास, हलवी और महरी के नाम से भी जाना जाता है. कोंडागांव वही जिला है, जहां जून 2016 में आईटीबीपी के रानापाल कैंप पर नक्सलियों ने रॉकेट से हमला किया था. यह शुरुआती दौर था, जब ऐसी घटना देखने को मिली थी. हालांकि अब स्थिति बदल गई है और क्षेत्र के नक्सली आईटीबीपी के भरोसे आत्मसर्पण के लिए आगे आ रहे हैं.
छत्तीसगढ़ में आईटीबीपी पिछले लगभग 10 वर्षों से तैनात है और इसकी तैनाती वाले इलाकों में नक्सलियों की गतिविधियों पर काफी हद तक काबू पाया गया है. इसमें आईटीबीपी की इन पहलों ने बड़ा योगदान दिया है. कोंडागांव जिले में आईटीबीपी साल 2015 से एन्टी नक्सल ऑपरेशन में तैनात है.