
छत्तीसगढ़ के संगीत की देश और दुनिया में वो पहचान नहीं मिली, जो मिलनी चाहिए थी. आजतक के छत्तीसगढ़ पंचायत कार्यक्रम में कलाकारों ने कहा कि छत्तीसगढ़ी कलाकारों का सही आकलन नहीं किया गया. उन्हें न तो सम्मान मिला और न ही सम्मान निधि, जिसकी वजह से कलाकारों को परिवारों को बहुत कष्ट झेलने पड़े.
कार्यक्रम में शामिल हुए पद्मश्री डॉ. भारती बंधु ने कहा कि छत्तीसगढ़ की संस्कृति बहुत विराट है. इसको समेटना बहुत मुश्किल है. जबसे हमारा राज्य बना है, तबसे हम कोशिश कर रहे हैं कि इसे विदेशों तक पहुंचाएं. उनका कहना है कि एक विद्या हो तो उसे आसानी से पहुंचाया जा सकता है, लेकिन हमारा यहां तो लोकसंगीत की इतनी विद्याएं हैं, उसको समेटना बहुत मुश्किल काम है. जिस विद्या पर मैं काम कर रहा हूं, वो 300-400 साल पुरानी है.
उन्होंने कहा कि पुराने समय में मनोरंजन का कोई साधन नहीं था. हमारे यहां आध्यात्म कूट-कूटकर भरा है, जोकि संगीत से जुड़ा हुआ है. उस समय चौपाल में तारा-खंजेरी लेकर निर्गुण भजन गाया जाता था, उसको हमने समेटने का काम किया है. इसी के लिए हमें 2013 में पद्मश्री मिला था.
पद्मश्री बंधु ने बताया कि अबतक वो कबीर पर 8000 से ज्यादा कार्यक्रम कर चुके हैं. 30 यूनिवर्सिटी, 20 सेंट्रल जेल और 10 लाख से ज्यादा छात्रों को कार्यक्रम सुना चुका हूं. मैं छत्तीसगढ़ी माटी को लेकर चलता हूं. दुर्भाग्य की बात है कि छत्तीसगढ़ के कलाकार का आकलन नहीं हो पाता है. इस तरह कलाकारों को सम्मान और सम्मान निधि नहीं मिलती है. शिवनी नारायण महोत्सव जब शुरू हुआ तो 80 साल के बुजुर्ग ने हाथ में प्लास्टर पहनकर तबला बजाया. हमारे यहां के कलाकार तरसते रह जाते हैं, मुंबई से कोई आता है और करोड़ों रुपये लेकर जाता है. तो यहां के कलाकार का उत्थान कैसे होगा.
इस कार्यक्रम में शामिल हुए राकेश तिवारी ने बताया कि छत्तीसगढ़ में संगीत की कई विविधताएं हैं. अब इसमें लोगों को अलग पहचान भी मिल रही है. सबसे बड़ी पहचान पद्मविभूषण तीजन बाई हैं, जोकि पंडवानी में काफी विख्यात हैं. हमारे पुराने लोकनृत्य वगैरह रात 10 बजे शुरू होते हैं और सुबह सात बजे तक चलता है.
पंडवानी छत्तीसगढ़ की ऐसी विद्या है, जिसमें एक ही कलाकार महाभारत की कथा को गाती है, वही भीम, अर्जुन, नकुल, दुर्योधन सब बनता है. हमारा कल्चर बहुत रिच है. जितना हमको पहचान मिलनी चाहिए, उतनी नहीं मिली है. दो-चार लोकसंगीतों को ही पहचान मिली है.
इंडियन आइडल से पहचान बनने वाले सिंगर अमित साना ने कहा कि छत्तीसगढ़ से निकलने वाले शख्स के अंदर छत्तीसगढ़ी फ्लेवर भरा होता है. यहां के लोगों के अंदर इतनी सौम्यता और निश्चछलता होती है कि वो हर जगह पहचाने जा सकते हैं. ऐसा नहीं है कि मैं बहुत अच्छा गाता था, लोगों ने मुझे प्यार दिया. यहां की खुशबू की मिट्टी जो मेरे अंदर आई, वो ही इंडियन आइडल में झलका है.
छ्त्तीसगढ़ी संगीत को ग्लोबल बनाने के लिए हमें समझना होगा कि क्या टेक्नोलॉजी प्रयोग हो रही हैं. छत्तीसगढ़ी म्यूजिक को ग्लोबल बनाने के लिए क्या करना चाहिए, इस म्यूजिक में रुहानियत है. ये सही समय है, जब छत्तीसगढ़ी म्यूजिक शाइन कर सकता है. इस दौरान उन्होंने छत्तीसगढ़ी गीत भी सुनाया.