Advertisement

छत्तीसगढ़ के चावल वाले बाबा जो दाने-दाने वोट के लिए तरसे

छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव के नतीजों ने बीजेपी को हिला कर रख दिया है. सूबे की 68 सीटों पर कांग्रेस ने बंपर जीत हासिल की है. वहीं, 15 सालों तक राज्य की सत्ता पर काबिज रही बीजेपी को सिर्फ 15 विधायकों से संतोष करना पड़ रहा है.

रमन सिंह  (फाइल फोटो) रमन सिंह (फाइल फोटो)
वरुण प्रताप सिंह
  • ,
  • 12 दिसंबर 2018,
  • अपडेटेड 3:16 PM IST

इस चुनाव ने न सिर्फ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की 'अजेय' छवि को तोड़ा है बल्कि छत्तीसगढ़ में 2003 से सत्ता पर काबिज रहने वाले चावल वाले बाबा के रूप में मशहूर डॉ. रमन सिंह को भी बेदखल कर दिया है. इसका मतलब यह हुआ कि बीजेपी में सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री बने रहने का रिकॉर्ड बना चुके रमन सिंह का कभी अभेद्य लगने वाला किला ढह चुका है. राजनीति में सक्रिय होने से पहले अपनी डिस्पेंसरी में लोगों का इलाज करने वाले डॉक्टर रमन सिंह के लिए सत्ता से बाहर होने का यह पहला अनुभव है.  

Advertisement

'दाने- दाने' वोट के लिए तरसे रमन

जनता को बेहद सस्ती दर पर चावल मुहैया कराने वाले रमन सिंह को सूबे में एक- एक वोट के लिए संघर्ष करना पड़ा. उनकी अगुवाई में बीजेपी की हार कितनी बड़ी है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि कांग्रेस से बीजेपी को 10 फीसदी कम वोट मिले. चुनावी गणित में इसे बड़ा अंतर माना जाता है. कांग्रेस को जहां 43 फीसदी तो बीजेपी को 33 पर्सेंट वोटों से संतोष करना पड़ा. कांग्रेस ने बीजेपी से करीब 14 लाख ज्यादा वोट हासिल किए. यह छत्तीसगढ़ जैसे छोटे राज्य के लिहाज से बड़ा आंकड़ा है.

कई सीटों पर तीसरे नंबर पर खिसका 'कमल'

तमाम सीटों पर बीजेपी न सिर्फ कांग्रेस से पीछे रही बल्कि वह बीएसपी जैसी पार्टियों से भी पिछड़ गई और तीसरे नंबर पर रही. 15 वर्षों तक सूबे में राज करने वाली बीजेपी के लिए यह बड़ा धक्का है.

Advertisement

8 मंत्री चुनाव हारे

जनता के गुस्से का निशाना बने बीजेपी के 8 मंत्री चुनाव हार गए. रमन सरकार के सिर्फ तीन मंत्री ही विधानसभा पहुंच पाए हैं. राजनांदगांव में रमन सिंह मुश्किल से जीत पाए. उनकी जीत का अंतर 17 हजार वोटों से भी कम रहा.

आदिवासी इलाकों में सूपड़ा साफ

छत्तीसगढ़ की 90 में से आदिवासी इलाकों में पड़ने वाली 29 सीटों पर बीजेपी का प्रदर्शन बहुत खराब रहा. सरगुजा और बस्तर संभाग की कुल 26 सीटों में बीजेपी को महज एक सीट मिली. बस्तर संभाग की 12 सीटों में बीजेपी को सिर्फ 1 सीट और सरगुजा संभाग की 14 सीटों पर तो बीजेपी का खाता भी नहीं खुल पाया.

ऐसी जीत किसी को नहीं मिली

छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव के इतिहास में आज तक किसी पार्टी ने इतनी सीटें नहीं जीती थीं, जितनी कांग्रेस को इस बार मिली हैं. इससे पहले बीजेपी ने 2003 और 2008 में सबसे अधिक 50 सीटें जीती थीं.

क्यों टूटा तिलिस्म?

लगातार तीन चुनाव जीतने वाले रमन सिंह राज्य की सियासत में जीवित किंवदंति बन चुके थे. कुछ समय पहले तक कांग्रेसियों को यह सूझ नहीं रहा था कि रमन सिंह के तिलिस्म को कैसे तोड़ा जाए. लेकिन कई कारणों के अलावा कर्ज से परेशान किसानों की नाराजगी बीजेपी पर भारी पड़ी. आदिवासी इलाकों में भी बीजेपी अपनी पकड़ नहीं बना पाई.

Advertisement

क्यों पड़ा था चावल वाले बाबा का नाम?

2003 में रमन सिंह पहली बार चुनाव जीतकर सूबे के मुख्यमंत्री बने. सबसे पहले उन्होंने छत्तीसगढ़ जैसे पिछड़े राज्य के बुनियादी ढांचे पर काम किया. इसके तहत राज्य की खस्ताहाल सड़क और बिजली को दुरुस्त किया. रमन सिंह जानते थे कि छत्तीसगढ़ एक गरीब राज्य है. विकास की किसी भी बड़ी योजना से पहले लोगों का पेट भरा होना चाहिए. इसी सोच के साथ उन्होंने प्रदेश में एक योजना शुरू की, जिसके तहत गरीबों को 2-3 रुपए प्रति किलो की दर से चावल बांटा गया. यह योजना बहुत मशहूर हुई. बस यहीं से रमन सिंह का नया नाम चाउर वाले बाबा यानी चावल वाले बाबा पड़ गया.

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement