
रायपुर के नई राजधानी क्षेत्र में निर्मित बॉटनिकल गार्डन में हुए भ्रष्ट्राचार की परतें प्याज की छिलकों की तरह खुलती जा रही हैं. लेकिन मामले की जांच को लेकर वन विभाग के आला अफसरों के कानों में जूं तक नहीं रेंग रही है. दरअसल, उन्हें खतरा इस बात का है कि कहीं वे भी भ्रष्ट्राचार की भेंट ना चढ़ जाएं. लिहाजा अफसर जांच के निर्देश के बावजूद बंद फाइल खोलने में हीला-हवाली कर रहे हैं.
इस बीच भ्रष्ट्राचार के बॉटनिकल गार्डन में लहलहा रही जिम्मेदार अफसरों की करतूतें सामने आने लगी हैं. हालांकि, मामले की उच्चस्तरीय जांच की मांग को लेकर दायर जनहित याचिका की अगली सुनवाई जल्द ही हाईकोर्ट में होने वाली है. बताया यह भी जा रहा है कि हाईकोर्ट को इस मामले में क्या लिखित जवाब दिया जाए, इसे सोचकर ही अफसरों के हाथ पांव फूल रहे हैं. दरअसल, दो महीने पहले नई राजधानी क्षेत्र में निर्मित बॉटनिकल गार्डन के निर्माण के वो दस्तावेज आरटीआई के जरिये सामने आये जिससे पता चला कि किस तरह से अफसरों ने करोड़ों की सरकारी रकम पर डाका डाला था.
सरकारी और प्राइवेट कार, मोटर साईकिल और स्कूटी के नंबरों को सरकारी रिकार्ड में भारी वाहन के रूप में दर्शाया गया. अफसरों ने इन वाहनों को अपने रिकार्ड में ट्रक, डंपर और बुलडोजर बताया. इन वाहनों से कभी रेत, मिटटी, गिट्टी, सीमेंट और मुरुम तो कभी पेड़ पौधों की ढुलाई दिखाई गई. इसके एवज में अफसर करोड़ों की रकम डकार गए. इस मामले में फिर एक नया खुलासा हुआ है.
वन विभाग में करोड़ों के बॉटनिकल गार्डन निर्माण घोटाले में फिर एक नया खुलासा हुआ है. आरटीआई से मिली जानकारी के मुताबिक बॉटनिकल गार्डन में तालाब खुदाई के नाम पर बड़े सुनियोजित ढंग से सेंधमारी की गई. इस घोटाले में वन विभाग के अफसरों ने बिना किसी बजट और प्रशासकीय स्वीकृति के ही करोड़ों का निर्माण काम करा डाला. यही नहीं, तालाब खुदाई के लिए अधिकारीयों ने बाइक जैसी गाड़ियों का सैकड़ों बार इस्तेमाल दर्ज किया है.
सूचना के अधिकार के तहत मिले दस्तावेजों से पता चला है कि वन विभाग के मुख्य वन संरक्षक कार्यालय ने एक सरकारी पत्र के माध्यम से 4 मई को गार्डन निर्माण का प्रस्ताव तैयार किया था. इसमें बॉटनिकल गार्डन के तालाब क्रमांक 3 एवं 4 में तालाब की खुदाई और गहरीकरण के लिए बजट और प्रशासकीय स्वीकृति की मांग की गई थी. वन विभाग के मुख्यालय ने एक माह बाद अर्थात 3 जून को बजट स्वीकृत किया. लेकिन वन विभाग के मैदानी अफसरों ने बिना किसी बजट स्वीकृति और अनुमति के ही इस काम को मार्च महीने के पहले हफ्ते में ही शुरू कर दिया.
दस्तावेजों से यह भी पता चला कि प्रस्ताव तैयार होने से पहले ही वन विभाग में लाखों रुपये के बिल स्वीकृत हो गए और रकम अफसरों की जेब में चली गई. आरटीआई कार्यकर्ता हैरत जता रहे हैं कि दस्तावेजों के आधार पर जिस निर्माण काम की स्वीकृति जून माह में मिली. उसके बिलों का भुगतान अप्रैल महीने से ही होने लगा. आखिर कैसे भुगतान की प्रक्रिया शुरू की गई यह जांच का विषय है.
उधर, वन विभाग के सीसीएफ अरुण पाण्डेय के मुताबिक बॉटनिकल गार्डन में तालाब की खुदाई के पूर्व तकनीकी और प्रशासकीय स्वीकृति कैसे ली गई थी इसकी जांच की जाएगी. आरटीआई कार्यकर्ता संजीव अग्रवाल के मुताबिक ये वन विभाग की मनमानी और जंगल राज का एक छोटा सा नमूना मात्र है. जहां बिना किसी स्वीकृति के करोड़ों रुपये के काम शुरू हो जाते हैं. फर्जी बिल लग जाते हैं और महज खानापूर्ति के लिए आधी अधूरी विभागीय जांच होती है. लेकिन जांच में किन वरिष्ठ अफसरों के निर्देश पर मनमाने ढंग से ये काम बिना निविदा के किया गया, उनके नाम का खुलासा अधिकारी और विभागीय मंत्री नहीं करते हैं.