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छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव की तैयारियों का जायजा लेने के लिए पांच सितारा होटल में चुनाव आयोग की बैठक किसी के गले नहीं उतर रही है. लोगों को उम्मीद थी कि खर्च रोकने की नसीहत देने वाला चुनाव आयोग जब छत्तीसगढ़ में बैठक करेगा तो इसके लिए सरकारी भवन का इस्तेमाल करेगा, लेकिन खुद के बैठक के लिए उसने पांच सितारा होटल चुन लिया.
वो भी तब जब रायपुर में एयरकंडीशन और भव्य सरकारी भवन और ऑडिटोरियम खाली पड़े हैं. पांच सितारा होटल में चुनाव आयोग की यह बैठक राज्यभर में चर्चा का विषय बनी हुई है.
रायपुर के एक पांच सितारा होटल में आयोजित चुनाव आयोग की ये वो बैठक है जहां आयोग के अफसर चुनावी चर्चा कर रहे हैं. राज्य के 27 जिलों के कलेक्टर, एसपी, आईजी और प्रमुख रिटरिंग ऑफिसर इस बैठक में मौजूद रहे. इस पांच सितारा होटल में अफसरों के खाने-पीने से लेकर कुछ वक्त गुजारने का पूरा इंतजाम किया गया है. अफसरों के खाने के लिए विशेष व्यंजन भी तैयार किए गए है. ताकि विभिन्न जिलों से बुलाए गए निर्वाचन अधिकारियों की अच्छी खासी मेहमाननवाजी हो सके.
इसके लिए खर्चों की कोई लिमिट तय नहीं है और ना ही इस ओर ध्यान दिया गया है. चुनाव आयोग के अफसर फील गुड कर सकें इसके लिए फाइव स्टार होटल से बेहतर और कौन सी जगह हो सकती है. ऐसा नहीं है कि रायपुर में पांच सितारा होटलों के समकक्ष और कोई दूसरे सरकारी भवन नहीं है. यहां भव्य एयर कंडीशन हॉल और सुविधाओं वाले भवन और ऑडिटोरियम खाली पड़े है, लेकिन चुनाव आयोग को फाइव स्टार होटल ही रास आया.
लिहाजा चुनाव कार्य से जुड़े अफसरों की बैठकें यहीं निपटाई गई, लेकिन इस फाइव स्टार होटल में कुछ और भी लोग पहुंचे थे जिन्हें चुनाव आयोग की फिजूल खर्ची रास नहीं आई.
स्थानीय नागरिक गौरव शर्मा के मुताबिक रायपुर शहर में आलिशान सरकारी इमारतें हैं. रियायती दरों पर एयर कंडीशन भवन खुद सरकार उपलब्ध कराती है. चुनाव कार्य के लिए ये इमारतें मुफ्त उपलब्ध होतीं, लेकिन सरकारी तिजोरी का धन दुरुपयोग करने की आदत खुद अफसरों की है.
स्थानीय नागरिक संजय पांडे के मुताबिक चुनाव आयोग को जनता के धन का ध्यान रखना चाहिए. उनके मुताबिक पांच सितारा होटल में किसी राजनीतिक दल का जलसा समझ में आता है, लेकिन चुनाव आयोग का नहीं.
उधर, दिल्ली से आए वरिष्ठ चुनाव आयुक्त उमेश सिन्हा से जब पत्रकारों ने फाइव स्टार होटल में बैठक करने का मकसद पूछा तो वे बगलें झांकने लगे. उन्होंने इसे राज्य सरकार की व्यवस्था बताकर अपना पल्ला झाड़ लिया. हालांकि उन्होंने माना कि फाइव स्टार होटल के बजाए यह बैठक कहीं और भी हो सकती थी.
आमतौर पर चुनाव आयोग राजनीतिक दलों को अनावश्यक चुनावी खर्चों पर रोक लगाने और तय रकम के भीतर ही चुनावी खर्च निपटाने की नसीहत देता है. धन के बेजा इस्तेमाल पर नजर रखने के लिए पर्यवेक्षक भी नियुक्त करता है, लेकिन जब बारी खुद की आती है, तो सरकारी भवनों के बजाए प्राथमिकता फाइव स्टार होटलों को दी जाती है.
इस मामले में आयोग का अपना तर्क है. सरकारी तिजोरी से चालीस हजार रुपए से अधिक के खर्च के लिए अफसरों को निविदा और टेंडर जारी करने होते हैं, ताकि प्रतियोगिता के जरिए सरकार के धन की बचत हो. लेकिन इस मामले में ऐसा नहीं हुआ. निर्वाचन आयोग ने बगैर सरकारी प्रक्रिया अपनाए सीधे फाइव स्टार होटल में बैठक बुलवा ली.