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मनोज प्रसाद के जज्बे ने नक्सलगढ़ के बच्चों को दिखाई नई राह, IGT में अबूझमाड़ का बजाया डंका

छत्तीसगढ़ में सशस्त्र बल के एक जवान ने नक्सलगढ़ के बच्चों को नई राह दिखाकर चैंपियन बना दिया हैं. बच्चे रियलिटी शो इंडियाज गॉट टैलेंट में हिस्सा लिया और हुनरबाज का खिताब जीत लिया. सशस्त्र बल के जवान का कहना है कि खेल के माध्यम से नक्सल प्रभावित गांव के बच्चों को नई पहचान दिलाना और बच्चों को मुख्यधारा से जोड़कर विश्व पटल पर पहचान दिलाना उनका मकसद है.

मनोज प्रसाद और साथ में बच्चे. मनोज प्रसाद और साथ में बच्चे.
इमरान खान
  • नारायणपुर,
  • 08 अगस्त 2023,
  • अपडेटेड 10:54 PM IST

छत्तीसगढ़ सशस्त्र बल के एक जवान के जोश, जूनून और जज्बे ने नारायणपुर में नक्सलगढ़ के बच्चों को नई राह दिखाकर चैंपियन बना दिया हैं. अबूझमाड़ के बच्चे टीवी पर आने वाले रियलिटी  शो इंडियाज गॉट टैलेंट में हिस्सा लेकर  हुनरबाज का खिताब जीत लिया. यह देखकर हर कोई बच्चों की तारीफ कर रहा है. अब विदेश से भी बच्चों की आर्थिक मदद के लिए हाथ बढ़ाया जा रहा हैं.

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बता दें कि ये बच्चे देशभर के 216 टीमों को पछाड़कर टॉप 14 में स्थान पाकर छत्तीसगढ़ का डंका बजा दिया है. फिलहाल, इनको अगले राउंड में प्रवेश मिल गई है. अब ये लोग कोच के साथ मुंबई में अगले शो की शूटिंग कर रहे हैं. अबूझमाड़ के अधिकांश आदिवासी बच्चों को नक्सली हिंसा का पाठ पढ़ाकर बंदूक थामा दिया जाता था. ऐसे बीहड़ के बच्चों को छत्तीसगढ़ सशस्त्र बल के आरक्षक मनोज प्रसाद ने छह साल में मलखम खेल का नेशनल चैंपियन बना दिया है.

मनोज के किस्से सुनकर हर कोई करेगा सलाम

उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के मनोज प्रसाद छत्तीसगढ़ सशस्त्र बल में आरक्षक के पद पर तैनात हैं. स्पेशल टास्क फोर्स में रहने के बाद उनकी पोस्टिंग नारायणपुर में 16वीं वाहिनी की बटालियन में हो गई. यहां रहकर वे दिन-रात की मेहनत से विशेष पिछड़ी संरक्षित जनजाति समुदाय के अबूझमाड़िया और गोंड जनजाति के आदिवासी बच्चों का जीवन संवारने में लगे हुए हैं.

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बता दें कि 100 से अधिक बार एंटी नक्सल अभियान में शामिल रहे मनोज अब एक नए अभियान पर चल पड़े हैं. परिवार से दूर अपने माता-पिता का कई सालों से चेहरा नहीं देखे कमांडो की कहानी एक नजीर पेश कर रही है. परिवार से दूर रहने के पीछे मनोज का तर्क है कि परिवार के मोह में फंस जाने से बच्चों के अभ्यास पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा. वे नहीं चाहते कि किसी भी दिन बच्चों की प्रैक्टिस में बाधा हो. इसलिए वह अपने गांव जाने में भी संकोच करते हैं.

मनोज प्रसाद.

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल भी हुए मुरीद

बच्चों का मलखम में प्रतिभा देखकर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल भी मुरीद हो गए हैं. राज्य सरकार ने नारायणपुर जिले में दो करोड़ रूपये की लागत से मलखम एकेडमी की स्थापना की जा रही है. नारायणपुर प्रवास के दौरान मुख्यमंत्री भूपेश बघेल बच्चों की प्रतिभा को देखने के लिए ट्रेनिंग सेंटर जा चुके हैं. छत्तीसगढ़ हस्तशिल्प विकास बोर्ड के अध्यक्ष और विधायक चंदन कश्यप ने बच्चों की तारीफ करते हुए कहा है कि बारूद के ढेर से सोना उगलने वाले बच्चे की प्रतिभा को निखारने के लिए हर संभव मदद की जाएगी.

श्रमदान से चार माह में तैयार किया इनडोर हॉल

देश-विदेश में नाम रोशन करने वाले मलखम के खिलाड़ियों ने अपने कोच मनोज के साथ चार माह श्रमदान करके इनडोर हॉल बनाया हैं. बारिश के दिनों में अभ्यास के दौरान कोई दिक्कत न हो इसलिए गोल्ड मेडलिस्ट खिलाड़ियों ने मजदूरी कर अपनी व्यवस्था की हैं. वहीं, इनडोर हॉल का निर्माण करने के लिए कोच मनोज प्रसाद अपने सैलरी से चार लाख रुपये दिए हैं. साथ ही मलखम का प्रशिक्षण ले रहे बच्चों के कुछ अभिभावकों ने भी मदद के लिए हाथ बढ़ाया है.

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दस घंटे करते हैं अभ्यास

इंडियाज गॉट टैलेंट में हुनरबाज का खिताब जितने वाले राजेश कोर्राम, मंगड़ू पोडियम, मोनू नेताम, मानू ध्रुव राकेश वरदा, श्यामलाल पोटाई, सरिता पोयाम, मोनिका पोटाई और जयंती कचलाम ने गोल्ड मेडल जीता है. देश के लिए गोल्ड मेडल जीतने के मकसद के साथ खिलाड़ियों ने आठ से दस घंटे रोजाना अभ्यास कर रहे हैं. देश के तमिलनाडु, गोवा, आंध प्रदेश, मध्य प्रदेश, असम, दिल्ली, गुजरात, महाराष्ट्र समेत अन्य राज्यों में छत्तीसगढ़ का नाम रोशन कर चुके हैं.

गस्त के दौरान लगता, जीवन का आखिरी दिन- मनोज

वहीं इस मामले में आरक्षक सीएएफ मनोज प्रसाद ने बताया कि छत्तीसगढ़ और बस्तर का नाम सामने आते ही मन में भयानक रूप सामने आता है. मेरी पहली पोस्टिंग सुकमा में हुई थी. उस समय सुकमा की स्थिति भी बहुत ही भयानक थी. एंटी नक्सल ऑपरेशन के दौरान जंगल में गस्त के दौरान लगता था कि आज ही जीवन का आखिरी दिन है. लंबे समय तक छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित दुर्गम इलाकों में सेवाएं देने के बाद मेरी तैनाती 16 वीं वाहिनी बटालियन नारायणपुर में हुई.

100 से भी अधिक बच्चे ले रहे हैं ट्रेनिंग

नक्सल उन्मूलन अभियान के दौरान जंगल में गश्त के दौरान आदिवासी बच्चों की तेजी और फुर्ती देखकर लगता था बच्चे लाजवाब हैं. उन्हें सही दिशा की जरूरत है. मैं मलखम का खिलाड़ी रहा हूं. बच्चों को देखने के बाद मन में आया कि मलखम की बदौलत उन्हें बाहर निकालकर उनके जीवन को नई दिशा देनी चाहिए. इसके बाद रामकृष्ण मिशन आश्रम और पोटा केबिन देवगांव के बच्चों को मैंने मलखम का प्रशिक्षण देना शुरू कर दिया. इसके बाद सिलसिला आगे बढ़ता गया और आज 100 से भी अधिक बच्चे ट्रेनिंग ले रहे हैं.

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बच्चों को विश्व पटल पर पहचान दिलाने का मकसद

इसमें अबूझमाड़ के नक्सल प्रभावित क्षेत्र से 60-70 बच्चे शामिल हैं. इन बच्चों के परिवार के पास रहने के लिए ठीकठाक घर तक नहीं था. अब खेल के जरिए दो से तीन लाख रुपये इनके बैंक खाते में हैं. वर्ल्ड चैंपियनशिप (भूटान) में हमारे तीन बच्चों ने बेहतरीन प्रदर्शन किया है. देश-दुनिया से कटे गांव के बच्चे विदेशों में अपना नाम रोशन कर रहे हैं. यह बड़े गर्व की बात है. इस मुहिम में शासन-प्रशासन का पूरा मदद मिल रहा है. साथ ही अबूझमाड़ के पिछड़े गांव के बच्चों को नई राह मिली हैं. खेल के माध्यम से नक्सल प्रभावित गांव के बच्चों को नई पहचान मिल रही है. बच्चों को समाज की मुख्यधारा में जोड़कर विश्व पटल पर पहचान दिलाने का मकसद है.

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