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छत्तीसगढ़: जानबूझकर सड़ाया जाता है अरबों का धान, कौड़ी के भाव खरीदते हैं शराब कारोबारी

हाल ही छत्तीसगढ़ के सरकारी राशन दुकानों में सैकड़ों टन दाल सड़ने की खबर भी सुर्खि‍यां बनी थीं.

धान का कटोरा कहा जाता है छत्तीसगढ़ धान का कटोरा कहा जाता है छत्तीसगढ़
सुनील नामदेव
  • रायपुर,
  • 23 अगस्त 2016,
  • अपडेटेड 12:06 AM IST

छत्तीसगढ़ में समय पर धान का उठाव नहीं होने के कारण 1 अरब 73 करोड़ रुपये का अन्न धन खराब हो गया. ये धान अब कौड़ियों के दाम पर शराब ठेकेदारों को बेचा जाएगा, ताकि वो इसका इस्तेमाल शराब बनाने में कर सकें. सरकारी अफसरों की लापरवाही से करोड़ों का यह नुकसान सरकार को उठाना पड़ा है. राज्य में केंद्र सरकार की मदद से सालाना दस हजार करोड़ की धान की खरीदी होती है.

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इस धान का चावल निकाल कर सरकारी गोदामों में रखा जाता है. जिसके बाद चावल को पीडीएस के जरिए आम लोगों तक पहुंचता है. हाल ही छत्तीसगढ़ के सरकारी राशन दुकानों में सैकड़ों टन दाल सड़ने की खबर भी सुर्खि‍यां बनी थीं. अन्न धन की यह बर्बादी तब हो रही है, जब आज भी देश के एक वर्ग को भरपेट भोजन नसीब नहीं होता. इसके लिए संचालित की गई दाल-भात योजना भी इसलिए ठप्प पड़ गई, क्योकि उन्हें राज्य की बीजेपी सरकार सस्ता राशन मुहैया नहीं करवा पाई.

ना जिम्मेदारी, ना कार्रवाई
गंभीर बात यह भी है कि खाद्यान्न की बर्बादी रोकने के लिए ना तो कोई उपाय किए जाते और ना ही जिम्मेदार अफसरों के खिलाफ कोई कानूनी कार्रवाई ही होती है. यह हाल तब है जब छत्तीसगढ़ देश में धान के कटोरे के नाम से प्रसिद्ध है. राज्य के एक बड़े हिस्से में धान की बंपर पैदावार होती है. किसानों को धान का समर्थन मूल्य मिल सके, उनकी ज्यादा से ज्यादा फसल खरीदी जाए, इसके लिए किसानों से लेकर तमाम राजनैतिक दल जद्दोजहद की बातें तो खूब करते हैं. लेकिन सरकारी तिजोरी से खरीदी जाने वाली धान का क्या हाल होता है, ये सामने है.

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खुले आसमान के नीचे सड़ रहा हजारों टन धान
हकीकत का जायजा लेना हो तो राज्य के धान उत्पादक जिलों का रुख कीजिए. रायपुर से महासमुंद, बेमेतरा और धमतरी, बालोद और दुर्ग. रायपुर से बिलासपुर, बलौदाबाजार, भाटापारा, मुंगेली या फिर चाम्पा जांजगीर. इन जिलों की ओर जाने वाली सड़कों के दोनों ओर खुले आसमान के नीचे आज भी हजारों टन धान आपको लावारिस हालात में दिखेगा. इनमें ज्यादातर धान को लापरवाह तरीके से रखा गया है. उसके कैप कवर फट चुके हैं, वहीं कई जगह तो कैप कवर लगाए ही नहीं गए. नतीजतन, धान बारिश में भीग कर सड़ गया.

बाबुओं को नोटिस देकर इतिश्री
इनमें से कई बोरियों में इल्लियां लग गईं तो कई हिस्से में धान की बालियां भी उग आई हैं. जनता की खून पसीने की कमाई से ये धान खरीदी गई थी, लेकिन लापरवाही ऐसी की धान का ढेर देखकर आपकी आंख फटी की फटी रह जाए. इस लापरवाही के लिए कोई भी जिम्मेदार अधिकारी सामने नहीं आया. ना तो पुख्ता जांच हुई और ना ही किसी के खिलाफ कार्रवाई की अनुशंसा. हां, सड़ी हुई धान का ब्योरा नीलामी कर ठिकाने लगाने के लिए खाद्य मंत्री के पास आया तो दो-चार बाबुओं और तीन मुंशियों के खिलाफ कार्रवाई का नोटिस भेज दिया गया. इस नोटिस में लिखा गया कि क्यों ना उनकी तनख्वाह से नष्ट हुई धान की रकम की वसूली की जाए.

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खाद्य मंत्री ने धान के सड़ने से किया इनकार
राज्य के खाद्य मंत्री पुन्नूलाल मोहले इस पूरे मामले में अपना तर्क देते हैं. पहले तो वो धान की बर्बादी से ही इनकार करते रहे, लेकिन जब हकीकत से रूबरू हुए तो कार्रवाई का हवाला देने लगे. मोहले कहते हैं, 'धान सड़ने का प्रश्न ही नहीं उठता. कैप कवर है और 12-13 का जो धान है उसका ग्रेडिंग हुआ है. टेंडर हो रहा है. निवि‍दा बनाकर उसकी नीलामी की जाएगी. जो धान बिना कैप कवर के हैं, उसके लिए कार्रवाई हो रही है. बहुतों को नोटिस दिया गया है. कई लोगों टर्मिनेट किया गया है.

शराब कारोबारी ही एकमात्र खरीदार
हालांकि, जब मंत्रीजी के इन दावों की पड़ताल की गई तो पता चला कि राज्य में ऐसे संग्रहण केंद्र हैं, जहां के मुंशियों और बाबुओं ने लाखों की धान की अफरातफरी कर डाली. उनके खिलाफ पुलिस में शिकायत हुई. इस तरह के अलग-अलग प्रकरणों में पांच बाबु और तीन सोसायटी प्रबंधकों के खिलाफ कार्यवाही हुई है. ना की धान की बर्बादी को लेकर. धान सड़ने के बाद किसी काम की नहीं रहती. इसे ना तो जानवर खाते है और ना ही कोई उपयोग हो सकता है. सिवाय इसके की सड़ने के बाद इसका इस्तेमाल शराब बनाने में हो. लिहाजा, अरबों का धान चन्द शराब व्यापारियों को नीलामी में दे दी जाती है.

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वरिष्ठों को बचाने में जुटे अधि‍कारी
किसानों से धान की आसानी से खरीदी हो सके, इसके लिए राज्य सरकार ने गांव-गांव में धान संग्रहण केंद्र बनाए हैं. किसान इन संग्रहण केंद्रों में अपनी धान बेचता है. इस धान के भंडारण और उठाव की जिम्मेदारी राज्य के विपरण संघ की है. यह सरकारी संस्था धान के परिवहन में महत्वपूर्ण रोल अदा करती है. समय पर इस धान का उठाव हो सके इसके लिए खाद्य विभाग के अफसरों से लेकर विपरण संघ के अधिकारी जिम्मेदारी संभालते हैं. लेकिन बड़े पैमाने पर धान की बर्बादी सामने आने पर हर एक अफसर अपने वरिष्ठ अफसरों को बचाने में जुटा है.

'मामले की होनी चाहिए सीबीआई जांच'
हालात यह हैं कि बर्बाद हुई धान के लिए किसी को भी जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सका है. धान के खेल के भांडा फूटने के भय से पूरा महकमा लीपापोती में जुटा है. राज्य के प्रमुख RTI कार्यकर्ता वीरेंद्र पांडे कहते हैं, 'राज्य सरकार की किसी भी मशीनीरी से मसले की जांच नहीं हो सकती, क्योंकि कई बड़े सरकारी अफसर सरकार से जुड़े मंत्री और नेता इस घोटाले में शामिल होते हैं. इसलिए इस मामले की सीबीआई जांच होनी चाहिए.' पांडे कहते हैं कि धान को सुनियोजित रूप से इसलिए सड़ाया जाता है कि बड़े पैमाने पर इस धान को खुले बाजार में बेच दिया जाए. मांग और पूर्ति के अंतर को नियोजित करने के लिए सड़े हुए धान का ब्योरा रजिस्टर में दर्ज कर दिया जाता है. इस तरह से एक बड़े घोटाले को अंजाम दिया जाता है.

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पीडीएस सिस्टम पर पहले ही उठ चुके हैं सवाल
छत्तीसगढ़ का पीडीएस सिस्टम पहले ही देश में सुर्खियां बटोर चुका है. जबकि PDS की बैकबोन कही जाने वाली इकाई 'नागरिक आपूर्ति निगम' में अरबों का घोटाला हुआ. निगम में पदस्थ आईएएस अधिकारी इसके एमडी अनिल टुटेजा और प्रमुख सचिव खाद्य अलोक शुक्ला को एंटी करप्शन ब्यूरो ने चार्जशीट किया. लेकिन ना तो अब तक उनकी गिरफ्तारी हुई और ना ही उन्हें निलंबित किया गया. सुप्रीम कोर्ट ने भी राज्य सरकारों को अनाज की बर्बादी रोकने को लेकर हिदायत दी है, लेकिन इसका कोई असर छत्तीसगढ़ में दिखाई नहीं देता.

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