
Chhattisgarh News: कांकेर जिले के पखांजूर में एक जलाशय के वेस्ट वेयर से 3 दिन तक लगातार पानी निकाला जाता रहा. 30 एचपी का पंप 3 दिन तक दिन रात चलता रहा और तालाब से पानी बहता रहा. जब आपको इस 'पानी बहाओ अभियान' की सच्चाई का पता चलेगा तो आप भी चौंक जाएंगे. दरअसल, यहां छुट्टी मनाने आए एक फूड ऑफिसर का मोबाइल पानी में गिर गया था. मोबाइल करीब 96,000 रुपए का था. लाखों लीटर पानी बहाने के बाद अधिकारी का मोबाइल तो मिल गया. लेकिन इस दौरान इतना पानी बह गया जिससे डेढ़ हजार एकड़ खेत की सिंचाई हो जाती. अधिकारी की दलील है कि उन्होंने इसके लिए सिंचाई विभाग के एसडीओ से मौखिक अनुमित अनुमति ले ली थी. हालांकि, खबर सुर्खियों में आते ही फूड इंस्पेक्टर को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया गया है.
आखिरकार ऐसी क्या नौबत आ पड़ी कि भीषण गर्मी के बीच कीमती पानी की बर्बादी कर डाली? Aajtak ने कुछ इसी तरह के सवाल फूड इंस्पेक्टर राजेश विश्वास से पूछे:-
सवाल: गर्मियों के दिनों में डेढ़ लाख के iPhone के लिए 21 लाख लीटर पानी बर्बाद करने की वजह क्या थी?
जवाब: मेरे पास आईफोन नहीं, बल्कि SAMSUNG S23 था, जिसकी कीमत 95 हजार रुपए है. हर किसी का पर्सनल मोबाइल होता है. अगर मोबाइल खो जाता है तो सब पहले उसे ढूंढने की ही कोशिश करते हैं. मेरा मोबाइल भी टंकी यानी जलाशय के स्टोरेज वेस्ट वाटर में गिर गया था और पानी में 10 फीट नीचे पहुंच गया था. यह देख मेरे जानने वाले गांव के लोगों ने बोला कि हम लोग इसे निकाल देंगे. उन्होंने रविवार और सोमवार को गोता लगाकर पानी से मोबाइल निकालने की काफी कोशिश की थी. लेकिन नीचे कांच के टुकड़े होने और गंदगी होने के कारण उन्हें कुछ दिखाई नहीं दे रहा था. इसलिए गोताखोरों ने जलाशय को 2-3 फीट खाली करवाने की सलाह दी. इसी के चलते मैंने सिंचाई विभाग के एसडीओ से बात की और उन्हें बताया कि यह अनुपयोगी पानी है. क्या मैं इसके 2-3 फीट पानी को नहर के रास्ते बहा सकता हूं? इस पर एसडीओ ने मौखिक अनुमति दे दी. चूंकि जलाशय के पास बिजली की सुविधा नहीं है, इसलिए मैंने अपने डीजल पंप लगाकर जलाशय के 2-3 फीट पानी को नहर में डलवा दिया.
सवाल: मौखिक अनुमति कैसे कोई दे सकता है?
जवाब: जलाशय के अंदर का पानी निकालना होता तो उसकी लिखित अनुमति लेनी होती है. चूंकि यह जलाशय के स्टोरेज का पानी था. जहां पर लोग नहाने जाते हैं. यह पानी फेंकना या किसी किसान को देना संभव नहीं था, इसलिए स्टोरेज टैंक के पानी को थोड़ा बहुत निकालने की मौखिक इजाजत मिल गई.
सवाल: पानी में फोन गिर जाने पर खराब होना ही था, फिर भी आपने ऐसा क्यों किया?
जवाब: मैंने कोशिश न के बराबर की. सबसे ज्यादा गांव में मेरे जानने वाले ही मोबाइल की तलाश में लगे हुए थे. उनका कहना था कि दो दिन मोबाइल को खोजते हुए हो गए हैं, अब अगर 2-3 फीट पानी निकल जाए तो मोबाइल को ढूंढना आसान हो जाएगा. इसीलिए मैंने डीजल पंप लगवा दिया था. चूंकि जलाशय के टैंक के नीचे सीमेंट का प्लास्टर था और चिकनी मिट्टी जम गई थी. उसमें कांच इत्यादि के टुकड़े पड़े हुए थे. इसी वजह से मोबाइल निकाला नहीं जा सकता था. लेकिन मोबाइल मिलने की भी संभावना 99 प्रतिशत थी, इसलिए मैंने मोबाइल ढूंढने की कोशिश की.
सवाल: कार्रवाई होगी तो आप खुद को किस तरह बचाएंगे?
जवाब: मैंने कोई इतनी बड़ी गलती नहीं की है कि समाचारों में आ जाऊं. कहा जा रहा है कि मोबाइल निकालने के लिए मैंने 1 लाख रुपए खर्च कर दिए, जबकि इतनी कीमत तो मोबाइल की ही नहीं है. इस पूरी सर्चिंग में सिर्फ 7000 से 8000 रुपए तक का खर्च आया. जबकि मैंने स्थानीय लोगों से पाइप मंगाकर पानी को नहर में डलवा दिया, न कि पानी बाहर बहाया. मैंने कोई पद का दुरुपयोग नहीं किया.
सवाल: एक फूड इंस्पेक्टर के पास 95 हजार रुपए का मोबाइल कैसे आया?
जवाब: मैं कोई गरीब परिवार से नहीं हूं. मेरे घर में सभी लोग नौकरीपेशा हैं. फूड इंस्पेक्टर अपने शौक से बना हूं. पैसे के मामले में मुझे कोई दिक्कत नहीं है.
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