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तेंदूपत्ता घोटाले में HC ने छत्तीसगढ़ सरकार को भेजा नोटिस

बिलासपुर हाइकोर्ट ने तेंदूपत्ता ठेके में गड़बड़ी को लेकर लगी एक याचिका पर छत्तीसगढ़ शासन से जवाब मांगा है. याचिकाकर्ता ने अदालत को दस्तावेज सौंपकर घोटाले का पर्दाफाश किया है.

प्रतीकात्‍मक तस्‍वीर प्रतीकात्‍मक तस्‍वीर
रणविजय सिंह/सुनील नामदेव
  • रायपुर,
  • 14 मार्च 2018,
  • अपडेटेड 6:46 PM IST

छत्तीसगढ़ के वन विभाग में तेंदूपत्ता घोटाला उजागर होने के बाद भी सरकार ने मामले की जांच कराना मुनासिब नहीं समझा. कारण विभाग के कई बड़े अफसरों से लेकर एक नामी गिरामी मंत्री भी इस मामले में कटघरे में खड़ा था. लिहाजा बदनामी के डर से सरकार ने 300 करोड़ से ज्यादा के घोटाले में पर्दा डाल दिया है. लेकिन अब इस मामले में छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने संज्ञान लेकर सरकार को नोटिस जारी कर दिया है.

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बिलासपुर हाइकोर्ट ने तेंदूपत्ता ठेके में गड़बड़ी को लेकर लगी एक याचिका पर छत्तीसगढ़ शासन से जवाब मांगा है. याचिकाकर्ता ने अदालत को दस्तावेज सौंपकर घोटाले का पर्दाफाश किया है. इसमें बताया गया है कि किस तरह से अफसरों ने एक राजनेता के इशारे पर तेंदूपत्ता के ठेके उसकी मूल कीमत से आधी कीमत में अपने लोगों को दे दिए. इससे सरकार को तीन सौ करोड़ से ज्यादा का नुकसान हुआ है. याचिकाकर्ता ने अदालत से मामले की सीबीआई जांच की मांग की है.

अदालत में पेश किए गए तमाम दस्तावेज RTI के तहत मुहैया हुए हैं. इसमें घोटाले की पूरी इबारत दर्ज है. वर्ष 2015-16 में वन समिति धुनुरा में रुपए 9489 प्रति मानक बोरा तेंदूपत्ता की दर थी, लेकिन इस बार वर्ष 2017 -18 में आधी कीमत रुपए 4594 प्रति मानक बोरा की दर से तेंदूपत्ता कुछ चुनिंदा ठेकेदारों को उपलब्ध करा दिए गए. इसी तरह अम्बिकापुर वन मंडल में दर रुपए 6109 प्रति मानक बोरा थी, जो इस बार 3809 में उपलब्ध हुई. कोरबा में रुपए 7000 प्रति मानक बोरा था, लेकिन इसे भी घटाकर आधा किया गया और रुपए 3939 प्रति मानक बोरा के दर से उपलब्ध कराया गया. यह घोटाला राज्य के तमाम जिलों में हुआ है.    

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तेंदूपत्ता के तमाम ठेके छत्तीसगढ़ लघुवनोपज व्यापार कोऑपरेटिव समिति ने बाकायदा टेंडर जारी कर कुछ चुनिंदा ठेकेदारों को फायदा पहुंचाया. तेंदूपत्ता की आधी कीमत बैगेर किसी ठोस कारण से घटाई गई. बताया जाता है कि इस बंदरबाट की साजिश अफसरों ने रची. हैरत इस बात की है कि राज्य के वन मंत्री महेश गागड़ा ने तेंदूपत्ता की दर घटाकर आधी किए जाने के फैसले पर अपनी मुहर लगा दी. हालांकि, मंत्री जी इस मामले पर बातचीत के लिए तैयार नहीं हैं.   

याचिकाकर्ता संतकुमार नेताम के मुताबिक वन विभाग में यह घोटाला सुनियोजित रूप से हुआ है. उनके मुताबिक 300 करोड़ से ज्यादा की रकम यदि सरकारी तिजोरी में आती तो जंगलों में रहने वाले वो आदिवासी जो तेंदूपत्ता तोड़कर वन समितियों को मुहैया कराते हैं, उन्हें फायदा होता. मामले की प्राथमिक सुनवाई के बाद हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस की डिवीजन बेंच ने छत्तीसगढ़ शासन और वन विभाग को नोटिस जारी कर हफ्ते भर में जवाब मांगा है. मामले की अगली सुनवाई 21 मार्च को होगी.   

छत्तसीगढ़ में सालाना एक हजार करोड़ से ज्यादा का तेंदूपत्ता का व्यापार होता है. बीड़ी निर्माण करने वाले देश भर के सैकड़ों ठेकेदार यहां सालाना डेरा डाले रहते हैं. गर्मी के दस्तक देते ही जंगलों से तेंदूपत्ता निकलना शुरू हो जाता है. जंगल के भीतर रहने वाली आदिवासियों की एक बड़ी आबादी को इससे रोजगार मिलता है. वे तेंदूपत्ता तोड़ते हैं और सरकारी दर पर वन विभाग को बेच देते हैं. 

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