
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह को विश्व आदिवासी दिवस के मौके पर बड़ी राहत मिली है. आदिवासियों ने उन्हें अपना नेता स्वीकार कर बरसों पुरानी आदिवासी मुख्यमंत्री की मांग को सिरे से खारिज कर दिया है. आदिवासी नेताओं ने साफ कर दिया है कि मुख्यमंत्री रमन सिंह हर हाल में उन्हें स्वीकार हैं. क्योंकि उन्होंने जितना काम आदिवासियों के कल्याण के लिए किया उतना पुरानी किसी भी सरकार ने नहीं किया.
दरअसल, छत्तीसगढ़ के गठन के बाद से ही राज्य में आदिवासी मुख्यमंत्री की मांग चली आ रही थी. विधानसभा चुनाव के ठीक पहले आदिवासियों के इस रुख को बीजेपी के लिए बड़ा कदम माना जा रहा है. रायपुर में आयोजित विश्व आदिवासी दिवस का मुख्य समारोह राज्य की बीजेपी सरकार के लिए मील का पत्थर साबित हुआ है. इनडोर स्टेडियम में राज्य भर से जुटे सभी बड़े आदिवासी नेताओं ने मंच पर मुख्यमंत्री रमन सिंह को गजमाला पहनाकर अपना नेता स्वीकार किया. उनका बड़े आत्मीय ढंग से स्वागत हुआ. महिलाओं, पुरुषों और नौजवानों ने फूल माला पहनाकर गर्मजोशी के साथ उनका स्वागत किया.
परंपरागत नृत्य और आदिवासी लोक कलाओं से सजी विश्व आदिवासी दिवस की महफिल पूरी तरह से रंगीन नजर आ रही थी. मुख्यमंत्री रमन सिंह भी गदगद दिखाई दिए. पूरे कार्यक्रम में वो मुस्कुराते रहे. गांव-कस्बों से आये आदिवासी नेताओं के अलावा सरगुजा और बस्तर की पहाड़ियों से भी यहां आदिवासी समुदाय के लोग जुटे थे. सामाजिक रूप से सभी नेताओं ने मुख्यमंत्री रमन सिंह को ना केवल अपना समर्थन दिया बल्कि उनकी इस बात के लिए पीठ थपथपाई गयी कि 15 सालों में जो काम उन्होंने आदिवासियों के विकास के लिए किया है, उतना पहले कभी नहीं हुआ. चाहे कोई भी सरकार रही हो लेकिन वो आदिवासियों के लिए उतनी संवेदनशील नहीं रही जिस प्रकार रमन सिंह और उनकी सरकार ने धयान दिया. लिहाजा आदिवासियों ने एक स्वर से मुख्यमंत्री रमन सिंह को अपना नेता ही नहीं बल्कि सामाजिक बंधू माना.
बस्तर में चहुमुखी विकास के लिए आदिवासियों ने सिर्फ रमन सिंह को ही श्रेय दिया, बल्कि लगभग 30 हजार बच्चों को मुफ्त शिक्षा और सुविधाएं जुटाकर उनके भीतर पढाई की ललक बनाये रखने के प्रयासों के लिए कई लोगों ने मुख्यमंत्री का आभार माना. मंच से इस बात का ऐलान किया गया कि लंबे अरसे बाद आदिवासी बच्चों ने UPSC की परीक्षाओं में बाजी मारकर बस्तर का मान बढ़ाया.
रायपुर का इनडोर स्टेडियम में मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस के विधायकों को छोड़ शेष सभी दलों को राजनीतिक कार्यकर्त्ता, विधायक और नेताओं ने इस कार्यक्रम में शिरकत की. मुख्यमंत्री रमन सिंह का पूरा मंत्रिमंडल भी यहां मौजूद था. इस मौके पर आदिसासी समुदाय के मंत्रियों ने रमन सिंह को ही अपना असली रहनुमा बताया. इन नेताओं के मुताबिक 15 साल पहले और अब के आदिवासी समाज में जमीन आसमान का फर्क है. उनके मुताबिक समाजिक, बौद्धिक, आर्थिक और दूसरे सभी मोर्चो पर आदिवासियों की भलाई के लिए रमन सिंह ने कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी है.
वर्ष 2011 की जनगणना के आधार पर छत्तीसगढ़ में आदिवासियों की आबादी 32 फीसदी आंकी गयी थी. जो 2018 में बढ़ कर 35 फीसदी से ज्यादा हो गयी है. वर्ष 2001 में राज्य गठन के दौरान से आदिवासी मुख्यमंत्री की मांग और उन्हें समुचित नेतृत्व को देने को लेकर सरकार और आदिवासियों के बीच रस्साकशी चली आ रही थी. कांग्रेस ने बतौर आदिवासी अजित जोगी को मुख्यमंत्री बनाया था. लेकिन वर्ष 2003 में बीजेपी ने रमन सिंह को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठाकर आदिवासी मुख्यमंत्री की मांग अनसुनी कर दी थी.
इसके बाद से यह मांग कभी सामाजिक मंचों और आदिवासियों के राजनीतिक आंदोलनों में उठती रही. लेकिन विधानसभा चुनाव के ठीक पहले इस मांग के खारिज हो जाने से आदिवासी इलाको में बीजेपी की जान में जान आयी है. आदिवासी नेताओं ने दावा किया है कि बस्तर और सरगुजा की सभी विधानसभा सीटों पर इस बार बीजेपी का परचम लहराएगा. क्योंकि उनके सामाजिक बंधु रमन सिंह को फिर एक बार मुख्यमंत्री बनाना है.