Advertisement

मदनवाड़ा कांड: न्यायिक आयोग ने कहा- निलंबित IPS ने दिखाई कायरता, घटना में मारे गए थे 29 पुलिसकर्मी

2009 में हुए मदनवाड़ा नक्सली हमलों की जांच करने वाले न्यायिक आयोग की रिपोर्ट में तत्कालीन आईजी मुकेश गुप्ता पर सवाल उठाए गए हैं. मुकेश गुप्ता ने रिपोर्ट पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि छत्तीसगढ़ सरकार उन्हें परेशान कर रही है.

मदनवाड़ा नक्सली हमले में 29 पुलिसकर्मी मारे गए थे (सांकेतिक फोटो) मदनवाड़ा नक्सली हमले में 29 पुलिसकर्मी मारे गए थे (सांकेतिक फोटो)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 17 मार्च 2022,
  • अपडेटेड 2:53 PM IST
  • नक्सली हमलों में एसपी विनोद कुमार चौबे सहित 29 पुलिसकर्मी मारे गए थे
  • आईजी बुलेट-प्रूफ कार में बैठे रहे और कुछ भी नहीं किया

छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव जिले में, 2009 के मदनवाड़ा नक्सली हमलों की जांच करने वाले एक सदस्यीय न्यायिक आयोग की रिपोर्ट, छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने बुधवार राज्य विधानसभा में पेश की.

जस्टिस (रिटायर्ड) शंभू नाथ श्रीवास्तव आयोग की रिपोर्ट ने आईपीएस अधिकारी मुकेश गुप्ता की कड़ी आलोचना की है, जो उस समय क्षेत्र में पुलिस महानिरीक्षक के रूप में तैनात थे. रिपोर्ट में कहा गया कि इस घटना में कमांड की विफलता के कारण पुलिस बल को भारी नुकसान हुआ. वहीं, रिपोर्ट ने तत्कालीन पुलिस अधीक्षक विनोद कुमार चौबे के बड़ी संख्या में नक्सलियों से लड़ते हुए अपनी जान न्यौछावर करने को लेकर उनकी सराहना की है.

Advertisement

उधर मुकेश गुप्ता का दावा है कि वर्तमान कांग्रेस सरकार उन्हें 'परेशान' कर रही है. साथ ही, उन्हें आयोग के सामने अपना बचाव करने का मौका नहीं मिला. उन्होंने सरकार पर उचित प्रक्रिया का पालन नहीं करने का आरोप लगाया है.

नक्सली हमले में SP समेत 29 पुलिसकर्मी मारे गए थे

12 जुलाई 2009 को राजनांदगांव के मानपुर थाना क्षेत्र के मदनवाड़ा और आसपास के इलाकों में, तीन अलग-अलग नक्सली हमलों में तत्कालीन पुलिस अधीक्षक विनोद कुमार चौबे सहित 29 पुलिसकर्मियों की मौत हो गई थी. मुकेश गुप्ता तब दुर्ग पुलिस रेंज के आईजी के पद पर तैनात थे, जिसके अंतर्गत ये जिला आता है.

इस घातक हमले के 10 साल बाद, भूपेश बघेल की सरकार ने इस घटना की जांच के लिए जनवरी 2020 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के रिटायर्ड जज, जस्टिस शंभू नाथ श्रीवास्तव की अध्यक्षता में न्यायिक आयोग का गठन किया था.

Advertisement

बुलेट-प्रूफ कार में बैठे रहे आईजी

आयोग ने 109 पन्नों की रिपोर्ट में कहा, 'कमांडर/आईजी मुकेश गुप्ता ने समझदारी या साहस से काम लिया होता, तो परिणाम कुछ और होता. लेकिन उन्होंने जो कुछ भी किया वह कायरतापूर्ण कृत्य के अलावा कुछ नहीं था, क्योंकि उनके पास मुठभेड़ के लिए केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल और छत्तीसगढ़ सशस्त्र बल (सीएएफ) की यूनिट को बुलाने के लिए पर्याप्त समय था.

रिपोर्ट में कहा गया कि ऐसा लगता है कि मुकेश गुप्ता अपनी जान बचाने को लेकर डर गए थे. साथ ही, उन्होंने नक्सलियों से निपटने के लिए एसपी को भेज दिया. बयानों में यह स्पष्ट रूप से सामने आया है कि आईजी बुलेट-प्रूफ कार में बैठे रहे और कुछ भी नहीं किया.

नक्सलियों ने भेजा था जश्न का वीडियो

रिपोर्ट में कहा गया, 'अगर आईजी ने साहस दिखाया होता, तो नक्सलियों ने शहीद जवानों के हथियार, बुलेट-प्रूफ जैकेट और जूते नहीं लूटे होते. नक्सलियों ने घटना के बाद उनके जश्न का वीडियो भी भेजा था, जो कि है सबूत है. यह साफ तौर पर कमांडर मुकेश गुप्ता की ओर से लापरवाही और लापरवाही के कई उदाहरणों को उजागर करता है, जिनकी उपस्थिति में सुबह 9:30 बजे से शाम 5:15 बजे तक पूरा नरसंहार हुआ था. 

Advertisement

इस हमले में कोई नक्सली मारा नहीं गया

रिकॉर्ड के मुताबिक, मौके पर मौजूद पुलिस बल सिर्फ मूकदर्शक बनकर रह गया था. रिपोर्ट में कहा गया है कि पुलिस बल ने नक्सलियों को वह करने दिया जो वे चाहते थे. इसमें कोई संदेह नहीं है कि कुछ गवाहों ने नक्सलियों पर गोलियां चलाने का दावा किया है, लेकिन उनपर इसका कोई असर नहीं पड़ा. अगर पुलिस ने नक्सलियों पर गोली चलाई होती, तो उनकी तरफ से भी कम से कम कुछ मौतें या चोटें होतीं. हालांकि, यह एक स्वीकार किया हुआ तथ्य है कि इस हमले में न कोई नक्सली मारा गया और न ही कोई घायल हुआ.

एसपी विनोद कुमार चौबे ने दिखाई बहादुरी

नक्सलियों की बड़ी संख्या का पता होने के बावजूद, तत्कालीन पुलिस अधीक्षक विनोद कुमार चौबे आगे बढ़े और नक्सलियों से लोहा लिया. उन्होंने अपने कर्तव्यों का निर्वहन करते हुए, अपने प्राणों की आहुति दे दी. जबकि, घटना में कमांडर, तत्कालीन आईजी की लापरवाही से भारी नुकसान हुआ. इस असफलता के लिए किसी भी कमांडर को माफ नहीं किया जाना चाहिए. 

न्यायिक पैनल के सामने पेश नहीं हुए आईजी गुप्ता

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि तत्कालीन आईजी को अपना बयान देने के लिए न्यायिक पैनल के सामने पेश होने के लिए कहा गया था, लेकिन उन्होंने आयोग के अध्यक्ष को हटाने की मांग करने की आवेदन दे दिया. इसके साथ ही, न्यायिक पैनल ने सलाह दी है कि भविष्य में, केवल उन्हीं अधिकारियों को नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में तैनात किया जाना चाहिए, जो आतंकवाद रोधी अभियान में प्रशिक्षित हैं और सक्षम हैं.

Advertisement

आपको बता दें कि पिछली बीजेपी सरकार में, 2015 की नागरिक आपूर्ति निगम घोटाले की जांच के दौरान, मुकेश गुप्ता को फरवरी 2019 में निलंबित कर दिया गया था. उनके खिलाफ कथित आपराधिक साजिश और अवैध फोन टैपिंग का आरोप था. निलंबन से पहले मुकेश गुप्ता, विशेष पुलिस महानिदेशक (एसडीजीपी) के पद पर तैनात थे.

मुकेश गुप्ता ने लगाया छत्तीसगढ़ सरकार पर आरोप

न्यायिक रिपोर्ट पर मुकेश गुप्ता ने प्रतिक्रिया दी है. उनका दावा है कि आयोग ने जांच आयोग अधिनियम की धारा 8 बी और धारा 8 सी के प्रावधानों का पालन किए बिना, उनपर आरोप लगाया है. उन्हें आयोग के सामने अपना बचाव करने का अवसर नहीं मिला. उन्होंने कहा, 'वर्तमान सरकार मुझे परेशान कर रही है. जो मेरे खिलाफ बड़ी संख्या में दर्ज मामलों से ये साफ ज़ाहिर होता है. हालांकि उन सभी पर सुप्रीम कोर्ट और केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण द्वारा स्टे दिया गया है.' उन्होंने यह आरोप भी लगाया कि आयोग को उन्हें टार्गेट करने के लिए कहा गया है.


 

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement