
आम आदमी पार्टी के 20 विधायकों की सदस्यता चले जाने के बाद से ही दिल्ली कांग्रेस के अध्यक्ष अजय माकन इस मामले को लेकर तेजी दिखा रहे हैं. उन्होंने अरविंद केजरीवाल पर हमला और तेज़ कर दिया है और उनसे इस्तीफा भी मांग चुके हैं. लेकिन इन सबके बीच कांग्रेस की सोशल मीडिया टीम ने माकन से मुलाकात कर उन्हें अलग ही फीडबैक दिया है. इस फीडबैक के मुताबिक उन्हें चुनाव को लेकर इतनी तेजी नहीं दिखानी चाहिए.
सोशल मीडिया टीम ने क्या दिया फीडबैक?
सोशल मीडिया टीम ने माकन को बाताया कि उनके द्वारा फेसबुक और ट्विटर पर लिस्टिंग टूल के माध्यम से कुछ सवाल पूछे गए थे. इन्हीं में से दिल्ली में चुनाव को लेकर भी सवाल था. इस सर्वे में जो रिजल्ट सामने आया उसके अनुसार अगर दिल्ली में अभी चुनाव होते हैं तो 'आप' को सहानुभूति के तौर पर लोग वोट करेंगे. इस तरह से अभी चुनाव में जाना कांग्रेस के लिए नुकसानदायक हो सकता है.
सोशल मीडिया टीम की इस सलाह के बाद ये ऐसा माना जा रहा है कि माकन इस मुद्दे को फिलहाल उतनी आक्रमकता से नहीं उठाएंगे, जितना पिछले दिनों वो करते आए हैं. बता दें, सोमवार को इसी मुद्दे को आगे बढ़ाते हुए दिल्ली कांग्रेस ने एक बड़ा विरोध प्रदर्शन किया था और सीएम केजरीवाल का इस्तीफा मांगा था. इस दौरान दिल्ली प्रदेश कांग्रेस के दफ्तर से दिल्ली सचिवालय तक डीडीयू रोड पर पैदल मार्च निकाला था, जिसमें हजारों कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने हिस्सा लिया. इस विरोध मार्च की अगुवाई दिल्ली कांग्रेस के अध्यक्ष अजय माकन ने की.
जनता से सहानुभूति हासिल करने में जुट गई AAP
20 विधायकों के सदस्यता खत्म होने को लेकर बौखलाई आम आदमी पार्टी जहां एक ओर चुनाव आयोग और केंद्र सरकार को इसके लिए जिम्मेदार ठहरा रही है, वहीं दूसरी ओर उप-चुनाव की संभावनाओं को देखते हुए आम जनता से सहानुभूति हासिल करने में जुट गई है.
दिल्ली के डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया ने दिल्ली की जनता को एक खुला पत्र लिखा है, जिसमें उन्होंने 20 विधायकों को निरस्त करने की कार्रवाई को गलत ठहराया है.
मनीष सिसोदिया ने अपना पत्र ट्विटर के जरिये लोगों को भेजा है. उन्होंने लिखा है कि क्या चुने हुए विधायकों को इस तरह गैर-संवैधानिक और गैर-कानूनी तरीके से बर्खास्त करना सही है? क्या दिल्ली को इस तरह चुनावों में धकेलना ठीक है? क्या ये गंदी राजनीति नहीं है?
क्या है मामला?
दरअसल, आम आदमी पार्टी ने 13 मार्च 2015 को अपने 20 विधायकों को संसदीय सचिव बनाया था. जिसके बाद 19 जून को वकील प्रशांत पटेल ने राष्ट्रपति के पास इन सचिवों की सदस्यता रद्द करने के लिए आवेदन किया था. तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की ओर से 22 जून को यह शिकायत चुनाव आयोग में भेज दी गई थी. शिकायत में इसे 'लाभ का पद' बताया गया था, जिसके कारण इन विधायकों की सदस्यता रद्द करने की अपील की थी.
इस मामले को लेकर मई 2015 में चुनाव आयोग में एक याचिका दायर की गई थी. हालांकि, अरविंद केजरीवाल ने इस मुद्दे पर कहा था कि हमने संसदीय सचिव का पद देकर विधायकों को कोई आर्थिक लाभ नहीं मिल रहा है. इसके अलावा राष्ट्रपति ने दिल्ली की आम आदमी पार्टी की सरकार के संसदीय सचिव विधेयक को मंजूरी देने से इनकार कर दिया था.
विधेयक में संसदीय सचिव के पद को लाभ के पद के दायरे से बाहर रखने का प्रावधान था. हाईकोर्ट ने भी केजरीवाल सरकार द्वारा आप के 21 विधायकों (अब 20) को दिल्ली सरकार में मंत्रियों का संसदीय सचिव नियुक्त करने के फैसले को शून्य और निष्प्रभावी करार दिया था.