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दिल्ली के तीन बार के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली शराब नीति से जुड़े भ्रष्टाचार मामले में जमानत पर रिहा होने के बाद अपने पद से इस्तीफा देने का ऐलान करके सभी को चौंका दिया. केजरीवाल के इस ऐलान ने राजनीति में भूचाल ला दिया है और कई नई संभावनाओं को जन्म दे दिया है. अव्वल तो, केजरीवाल का इस्तीफा एक रणनीति का हिस्सा लगता है, जिसका उद्देश्य आगामी चुनावों से पहले आम आदमी पार्टी (आप) को नए सिरे से खड़ा करना है.
मुख्यमंत्री पद छोड़कर शायद केजरीवाल खुद को 'एक भ्रष्ट व्यवस्था के खिलाफ लड़ते हुए एक शहीद' के रूप में दिखाना चाह रहे हैं. उनका यह कहना कि वह दिल्लीवासियों के नए जनादेश के साथ ही सीएम पद पर लौटेंगे, इस थ्योरी को और मजबूत करता है. यह जनता का समर्थन जुटा सकता है और AAP के लिए वोटों में तब्दील हो सकता है, खासकर अगर चुनाव नवंबर में महाराष्ट्र और झारखंड के साथ होते हैं.
AAP के सामने कई बड़ी चुनौतियां
हालांकि यह उतना भी सहज नहीं है जितना नजर आ रहा है. AAP के सामने अब कई बड़ी चुनौतियां हैं. विधानसभा चुनाव से पहले एक ऐसा अंतरिम सीएम ढूंढ़ना, जो पार्टी सदस्यों के सम्मान और वफादारी का सम्मान करता हो और मतदाताओं को भी आकर्षित करता हो, काफी चुनौतीपूर्ण होगा. विपक्षी दल इसे AAP के भीतर कथित अस्थिरता का फायदा उठाने के एक अवसर के रूप में भी देख सकते हैं. इसके अलावा भ्रष्टाचार का मामला तो है ही. जमानत पर रिहा होने के बाद इस्तीफा देने के केजरीवाल के फैसले पर सवाल भी उठ रहे हैं.
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जमानत की शर्तों से बढ़ीं मुश्किलें
मुख्यमंत्री पद से अरविंद केजरीवाल के इस्तीफे से कई तरह की अटकलें और विश्लेषण शुरू हो गए हैं. कई राजनीतिक विश्लेषकों का तर्क है कि उनका इस्तीफा केवल सहानुभूति हासिल करने या जेल के बाद नया जनादेश हासिल करने के लिए एक राजनीतिक दांव भर नहीं है. सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने केजरीवाल के सामने एक प्रशासनिक बाधा पैदा कर दी है. जमानत की शर्तों ने उन्हें ऑफिस जाने या सरकारी फाइलों पर साइन करने से रोक दिया है. अब केजरीवाल के लिए शासन करना लगभग असंभव हो गया है. ऐसी परिस्थितियों में बने रहने से नीतियों को लागू करने की उनकी पार्टी की क्षमता गंभीर रूप से बाधित हो सकती थी, जिससे अंततः उनकी चुनावी संभावनाओं को नुकसान पहुंच सकता था.
इस्तीफा देकर कई नुकसानों से बचे केजरीवाल
एक अन्य महत्वपूर्ण कारक राष्ट्रपति शासन का खतरा था. केंद्र सरकार राष्ट्रपति शासन को उचित ठहराने के लिए मौजूदा परिस्थितियों का हवाला दे सकती थी जिससे चुनाव में छह महीने तक की देरी हो सकती थी. इससे केजरीवाल को जेल से रिहा होने के बाद मिली सहानुभूति खत्म हो जाएगी, जिससे चुनाव के दौरान जनता की सहानुभूति का लाभ उठाना और अधिक चुनौतीपूर्ण हो जाएगा. इस्तीफा देकर, केजरीवाल इन प्रशासनिक और राजनीतिक नुकसानों से बच गए हैं.
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इससे पार्टी की छवि मजबूत हो सकती है. अब अगर उपराज्यपाल या केंद्र सरकार नई नीतियों को रोकती है, तो कल्याणकारी योजनाओं में किसी भी रुकावट की जिम्मेदारी केजरीवाल से हटकर उनके राजनीतिक विरोधियों पर आ जाएगी और उन्हें बाधक मान लिया जाएगा.
कौन होगा केजरीवाल का उत्तराधिकारी?
मुख्यमंत्री के रूप में अरविंद केजरीवाल का उत्तराधिकारी कौन हो सकता है, इसे लेकर अटकलें तेज हैं. आम आदमी पार्टी (आप) के भीतर केजरीवाल के प्रभाव को देखते हुए, यह लगभग तय है कि उत्तराधिकारी के लिए उनकी पसंद को चुना जाएगा और बाद में उसे पार्टी विधायकों की मंजूरी मिलेगी. उत्तराधिकारी का चुनाव महत्वपूर्ण है और केजरीवाल के इस्तीफे जितना ही चौंकाने वाला हो सकता है. केजरीवाल का उत्तराधिकारी या तो वर्तमान कैबिनेट से आ सकता है या हरियाणा और दिल्ली दोनों चुनावों को ध्यान में रखते हुए रणनीतिक रूप से चुना जा सकता है.
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नए CM पर होंगी कई जिम्मेदारियां
चुने गए व्यक्ति को केजरीवाल के निर्देशों का पालन करना होगा और संकट की इस घड़ी में पार्टी की एकजुटता बनाए रखनी होगी. इसके अतिरिक्त, इस उत्तराधिकारी के पास रणनीतिक रूप से उपयुक्त समय पर विधानसभा को भंग करने का अधिकार हो सकता है, जिससे बाद के चुनावों में AAP को फायदा होगा. एक उपयुक्त उत्तराधिकारी का चुनाव सिर्फ सीएम की सीट भरने से अधिक महत्व रखता है. यह पार्टी के भीतर निरंतरता और स्थिरता सुनिश्चित करते हुए AAP की रणनीति और भविष्य की दिशा के बारे में एक संदेश भी देता है.
अरविंद केजरीवाल का इस्तीफा और उसके बाद उनके उत्तराधिकारी की नियुक्ति एक प्रमुख राजनीतिक घटनाक्रम हैं. इस प्रक्रिया में दिल्ली एलजी और केंद्र की भूमिका काफी सीमित है, जिसका मुख्य कारण विधानसभा में AAP का पर्याप्त बहुमत है.