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'आखिर एक जज अपनी शिकायत कहां दर्ज कराएं?' यौन उत्पीड़न की पीड़ित महिला जज का SC में सवाल

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की जिला अदालत में एक महिला जज ने अपने एक सीनियर पर दुर्भावना से काम करने और यौन उत्पीड़न का आरोप लगाते हुए सेवा से त्यागपत्र दे दिया था. अब पीड़िता ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है.

सुप्रीम कोर्ट (सांकेतिक तस्वीर) सुप्रीम कोर्ट (सांकेतिक तस्वीर)
संजय शर्मा
  • नई दिल्ली,
  • 28 जनवरी 2022,
  • अपडेटेड 7:59 AM IST
  • पीड़िता ने खटखटाया सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा
  • सीनियर द्वारा जज के साथ यौन उत्पीड़न का मामला

मध्य प्रदेश में एक महिला जज के यौन उत्पीड़न के मामले में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू हुई तो सीनियर एडवोकेट इंदिरा जयसिंह ने कोर्ट को बताया कि कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न की शिकायत के लिए निचली अदालतों में भी महिला जज के पास तो कोई उचित मंच ही नहीं है. कोर्ट्स में सिर्फ कर्मचारियों और अधिकारियों  के लिए कमेटी बनी हुई है. जजों के लिए ऐसा कोई स्थाई इंतजाम नहीं है.

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दरअसल, मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में जिला अदालत में महिला जज ने अपने एक सीनियर पर दुर्भावना से काम करने और यौन उत्पीड़न का आरोप लगाते हुए सेवा से त्यागपत्र दे दिया था.

इंदिरा जयसिंह की इस दलील के बाद चीफ जस्टिस एनवी रमणा ने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस को निर्देश दिया कि वो घटना की डिटेल में रिपोर्ट भेजें. हाईकोर्ट ने जांच के लिए दो जजों की कमेटी भी बनाई थी. लेकिन शिकायतकर्ता जज इससे असंतुष्ट दिखी तो सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया.

पीड़ित महिला जज ने सुप्रीम कोर्ट में इस आधार पर अर्जी लगाई कि ऐसी घटना संज्ञान में आने के बाद इन हाउस जांच कमेटी बनाने और पारदर्शी जांच कराने की निर्धारित प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया. सुप्रीम कोर्ट ने महिला जज की बात सुनी तो दो जजों की कमेटी खारिज कर तीन जजों की नई कमेटी को जांच का जिम्मा सौंपा. 

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इंदिरा जयसिंह ने कोर्ट को बताया कि उस कमेटी ने भी ना तो सबूत इकट्ठा किए ना ही बयान के आधार पर क्रॉस इक्जामिनेशन यानी सभी आरोपियों और मामले से जुड़े अन्य लोगों का आमना सामना और उनसे जिरह की. कमेटी ने कह दिया कि तथ्य पूरे और संतोषजनक नहीं थे.

इसी बीच पचास सांसदों ने अपने हस्ताक्षर वाला प्रस्ताव पारित कर संसद में भेजा कि मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के आरोपी जज के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव संसद में लाया जाए. महाभियोग चलाने का प्रस्ताव भी संसद में मंजूर हो गया और इसके लिए जांच समिति भी बना दी गई. लेकिन इसी दौरान सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई कर रही पीठ के अगुआ जस्टिस विक्रमजीत सेन सेवा निवृत्त हो गए और उनकी जगह जस्टिस आर भानुमति ने ली.

तीन जजों की कमेटी ने पाया कि ट्रांसफर की नीति पर अमल नहीं किया गया था. महिला जज को जबरन बड़े शहर से छोटे शहर में ट्रांसफर स्वीकार करने या फिर इस्तीफा देने का दबाव बनाया गया. जिला अदालतों में जजों की तबादला नीति में साफ कहा गया है कि अगर जज की बेटी बारहवीं कक्षा में है या इम्तिहान देना है तो तबादला तब तक टाल दिया जाएगा.

इस मामले में भी याचिकाकर्ता महिला जज को अपना तबादला एक साल तक टलवाने का अधिकार था. महिला जज को इस प्रताड़ना की वजह से अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा जबकि अपने दायित्वों के प्रति वो बिलकुल सही रहीं. उनकी एसीआर बिलकुल साफ सुथरी है.

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