Advertisement

आम आदमी पार्टी को क्यों एक भी सीट नहीं देना चाहती दिल्ली कांग्रेस? क्या है सियासी गणित

अलका लांबा के बयान पर सियासी संग्राम छिड़ा है. कांग्रेस के सभी सात सीटों पर चुनाव लड़ने के दावे को लेकर सवाल ये भी उठ रहा है कि आम आदमी पार्टी को दिल्ली कांग्रेस क्यों एक भी सीट नहीं देना चाहती? इसके पीछे का सियासी गणित क्या है?

अरविंद केजरीवाल और राहुल गांधी (फाइल फोटोः पीटीआई) अरविंद केजरीवाल और राहुल गांधी (फाइल फोटोः पीटीआई)
बिकेश तिवारी
  • नई दिल्ली,
  • 17 अगस्त 2023,
  • अपडेटेड 2:40 PM IST

कांग्रेस की दिल्ली को लेकर बुधवार को बड़ी बैठक हुई. करीब तीन घंटे तक चली इस बैठक के बाद पार्टी की नेत्री अलका लांबा ने कांग्रेस के दिल्ली की सभी सात सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया. अलका लांबा के बयान के बाद विपक्षी गठबंधन के भविष्य को लेकर भी बहस छिड़ गई. दिल्ली सरकार में मंत्री सौरभ भारद्वाज ने कहा कि जब तक विपक्षी गठबंधन के सभी घटक दल, इन दलों के शीर्ष नेता साथ बैठकर सीट बंटवारे पर चर्चा नहीं करेंगे तब तक ऐसी बातें आती रहेंगी. शीर्ष नेताओं की चर्चा के बाद ही ये पता चलेगा कि किस पार्टी को कौन सी सीट मिल रही है.

Advertisement

ये भी पढ़ेंदिल्ली में 'INDIA' गठबंधन में पड़ी दरार? कांग्रेस ने किया सभी 7 सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान

कांग्रेस की बैठक में अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल गांधी के साथ शामिल रहे दीपक बाबरिया ने अलका लांबा के बयान का खंडन करते हुए कहा कि ऐसी कोई चर्चा नहीं हुई. दिल्ली कांग्रेस के अध्यक्ष अनिल चौधरी ने कहा कि पार्टी संगठन को मजबूत कर एकजुट हो चुनाव लड़ेगी. हमने आम आदमी पार्टी या गठबंधन की कोई चर्चा नहीं की. संदीप दीक्षित और अजय माकन आम आदमी पार्टी के विपक्षी गठबंधन में शामिल होने का पहले से ही विरोध करते रहे हैं. ऐसे में अहम सवाल है कि दिल्ली में कांग्रेस के नेता आम आदमी पार्टी को एक भी लोकसभा सीट क्यों नहीं देना चाहते? इसके पीछे का गणित क्या है?

Advertisement
विपक्षी दलों की बेंगलुरु बैठक में राहुल गांधी, अरविंद केजरीवाल और अन्य नेता (फाइल फोटोः PTI)

2019 चुनाव में बीजेपी-कांग्रेस का सीधा मुकाबला

दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार है. एमसीडी की सत्ता पर भी आम आदमी पार्टी काबिज है. विधानसभा चुनाव में कांग्रेस खाता तक नहीं खोल पाई लेकिन लोकसभा चुनाव में तस्वीर इसके ठीक उलट है. 2019 के चुनाव की बात करें तो भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने सभी सात सीटें जीती थीं लेकिन अधिकतर सीटों पर उसका मुकाबला कांग्रेस से ही रहा था. कांग्रेस सात में से पांच सीटों पर दूसरे स्थान पर रही थी. जबकि आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार दो सीटों पर दूसरे स्थान पर रहे थे.

वोट शेयर में भी आम आदमी पार्टी से कांग्रेस आगे

पिछले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस वोट शेयर के मामले में भी आम आदमी पार्टी से आगे रही थी. आम आदमी पार्टी को दिल्ली के सात लोकसभा क्षेत्रों में कुल 15 लाख 71 हजार 687 वोट मिले थे, वहीं कांग्रेस को इससे कहीं अधिक 19 लाख 53 हजार 900 वोट हासिल हुए. कांग्रेस का वोट शेयर 22.6 फीसदी रहा था जबकि आम आदमी पार्टी को 18.2 फीसदी वोट मिले थे.

दिल्ली में गठबंधन पर क्यों फंसा है पेच

पिछले लोकसभा चुनाव में प्रदर्शन को आधार बनाकर दिल्ली कांग्रेस के नेता सभी सात सीटों पर दावेदारी कर रहे हैं. अलका लांबा के बयान को लेकर वरिष्ठ पत्रकार आशीष शुक्ला कहते हैं कि कांग्रेस की कोशिश कम से कम उतनी सीटों पर लड़ने की है जिन पर वो पिछले चुनाव में दूसरे स्थान पर रही थी. आम आदमी पार्टी दिल्ली में कांग्रेस को उतनी सीटें देने के लिए तैयार होगी, ऐसा मुश्किल लगता है.

Advertisement

दूसरी तरफ, आम आदमी पार्टी की कोशिश भी विधानसभा चुनाव और एमसीडी इलेक्शन में दमदार प्रदर्शन को आधार बनाकर अधिक से अधिक सीटों पर चुनाव लड़ने की है. आशीष शुक्ला कहते हैं कि दिल्ली में आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के गठबंधन का पेच बस सीट बंटवारे का नहीं, एक-दूसरे की सियासत का आधार बचाने और खिसकाने के संघर्ष का भी है.

बेंगलुरु बैठक के बाद विपक्षी दलों के नेता (फाइल फोटोः पीटीआई)

दिल्ली कांग्रेस के अध्यक्ष अनिल चौधरी का बयान भी इसी तरफ इशारा करता है. अनिल चौधरी ने कहा कि हमने आम आदमी पार्टी या गठबंधन को लेकर कोई चर्चा नहीं की. हमने केजरीवाल सरकार की नीतियां एक्सपोज करने के लिए पोल खोल यात्रा से लेकर हर संभव कोशिश की है. शराब घोटाले से लेकर तमाम कार्रवाइयां भी हमारी शिकायतों पर ही हुई हैं. हम 2024 में चुनाव जीतेंगे और पूरी कोशिश रहेगी कि 2025 में केजरीवाल दिल्ली के मुख्यमंत्री न बन पाएं.

आम आदमी पार्टी और कांग्रेस नेतृत्व अगर सीटों का पेच सुलझा भी लेते हैं तो क्या दोनों दलों के कार्यकर्ता इसे स्वीकार कर पाएंगे? आम आदमी पार्टी की स्थापना के समय से ही एक-दूसरे का विरोध करते आए नेताओं के दिल की दूरियां पाटने की चुनौती से दोनों दल किस तरह से निपटते हैं, ये भी देखने वाली बात होगी.

Advertisement

 

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement