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दिल्ली के रोहिणी कोर्ट में पिछले 4 साल से भी ज्यादा समय से कोर्ट के अंदर अतिरिक्त सीसीटीवी कैमरा लगाने के लंबित आवेदन को अब तक मंजूरी नहीं मिल सकी है. 25 जुलाई 2017 से ही दिल्ली सरकार के समक्ष वित्तीय मंजूरी के लिए मामला लंबित है.
25 जुलाई 2017 को दिल्ली सरकार (Government of NCT of Delhi) के समक्ष वित्तीय मंजूरी के लिए लंबित रोहिणी कोर्ट के अंदर अतिरिक्त सीसीटीवी कैमरों को लगाने को लेकर मंजूरी अब तक नहीं मिल सकी है. अदालतों में सुरक्षा उल्लंघनों को लेकर दाखिल एक जनहित याचिका के संबंध में, दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा एक हलफनामा दायर किया गया था जिसमें सितंबर 2020 को जिला और सत्र न्यायालय के जजों से जवाब मांगा गया था.
रोहिणी कोर्ट ने अपने जवाब में कहा कि रोहिणी कोर्ट परिसर में सीसीटीवी कैमरों की कमी की बात बताई और बताया कि मामले को भवन प्रबंधन समिति (Building Management Committee) द्वारा किया जाना है.
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हालांकि बीएमसी ने सीसीटीवी कैमरे लगाने की मंजूरी दे दी थी और वित्तीय मंजूरी की मंजूरी के लिए मामला दिल्ली सरकार को भेजा गया था लेकिन यह 25 जुलाई 2017 से लंबित पड़ा हुआ था, जिसे अब तक मंजूरी नहीं मिली.
इस बीच रोहिणी कोर्ट में कल शूटआउट के बाद सुप्रीम कोर्ट में एक आवेदन दायर किया गया है, जिसके जरिए एडवोकेट विशाल तिवारी ने भारत सरकार और राज्य सरकारों को अधीनस्थ न्यायालयों की सुरक्षा के लिए तत्काल कदम और उपाय करने के निर्देश देने की मांग की है.
सुरक्षा को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका
विशाल तिवारी ने अपनी याचिका में बिजनौर, अमृतसर और हिसार सहित देशभर की विभिन्न अदालतों से इस तरह की घटनाओं का हवाला देते हुए कहा कि निचली अदालत में ऐसी हिंसक घटनाएं असामान्य नहीं हैं.
उन्होंने अपनी याचिका में यह भी कहा कि इस तरह की घटनाएं न केवल हमारे न्यायिक अधिकारियों, वकीलों और कोर्ट परिसर में मौजूद लोगों के लिए खतरा हैं बल्कि यह हमारी न्याय प्रणाली के लिए खतरा है. कोर्ट एक ऐसी जगह है जहां लोग कानून की शरण में आते हैं, लेकिन गैरकानूनी गतिविधियां का शिकार बन जाते हैं.