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उपराज्यपाल से अधिकारों का टकराव, केजरीवाल के हैं ये 10 तर्क

केजरीवाल सरकार का कहना है कि चपरासी से लेकर अधिकारियों की नियुक्ति, ट्रांसफर-पोस्टिंग और उनके खिलाफ कार्रवाई करने का अधिकार सरकार को नहीं है. इसलिए सरकारी मुलाजिम चुनी हुई सरकार के आदेश नहीं मानते.

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल
जावेद अख़्तर/आशुतोष मिश्रा
  • नई दिल्ली,
  • 04 जुलाई 2018,
  • अपडेटेड 7:58 AM IST

दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार आने से बाद से ही मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उपराज्यपाल के बीच टकराव की स्थिति देखने को मिलती रही है. पूर्व उपराज्यपाल नजीब जंग के जाने के बाद नए उपराज्यपाल अनिल बैजल से भी केजरीवाल सरकार का छत्तीस का आंकड़ा रहा है.

केजरीवाल सरकार आरोप लगाती है कि उपराज्यपाल उन्हें जनकल्याण की योजनाएं लागू नहीं करने देते. आप सरकार जो भी काम करती है, उपराज्यपाल उसमें रोड़े अटका देती है, क्योंकि अंतिम आदेश उन्हीं का होता है. उपराज्यपाल के बहाने आम आदमी पार्टी बीजेपी की केंद्र सरकार को निशाना बनाती है.

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एलजी और सरकार के बीच टकराव की असली वजह दिल्ली का केंद्रशासित प्रदेश होना है. जिसके चलते यहां केंद्र सरकार के नुमाइंदे के तौर पर नियुक्त उपराज्यपाल को सभी शासनादेश लागू करने और सरकार के किसी भी फैसले पर अंतिम मुहर लगाने का अधिकार है. यही बात केजरीवाल को खलती है और वह सारे आरोप एलजी और मोदी सरकार पर लगाते रहते हैं. इस पूरे टकराव के पीछे अरविंद केजरीवाल ये 10 तर्क देते हैं-

1. चपरासी से लेकर अधिकारियों की नियुक्ति, ट्रांसफर-पोस्टिंग और उनके खिलाफ कार्रवाई करने का अधिकार नहीं है. इसलिए सरकारी मुलाजिम चुनी हुई सरकार के आदेश नहीं मानते.

2. सेवा विभाग उपराज्यपाल के अधीन किए जाने की वजह से गेस्ट टीचर्स को परमानेंट करने और नए शिक्षकों की नियुक्ति नहीं हो पाई.

3. सेवा विभाग सरकार के अधीन ना होने से कई नए बनाए गए मोहल्ला क्लीनिक के संचालन के लिए डॉक्टर, पैरामेडिकल और नर्सिंग स्टाफ की नियुक्ति नहीं हो पाई.

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4. एंटी करप्शन ब्रांच को उपराज्यपाल के अधीन किए जाने के बाद से सरकार भ्रष्ट कर्मचारियों और अधिकारियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं कर पा रही जिससे सरकार में भ्रष्टाचार बढ़ा है. इससे सरकार की भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम को धक्का लगा है.

5. नीतिगत फैसलों पर अमल करने का आखरी अधिकार उपराज्यपाल के अधीन होने के चलते चुनी हुई सरकार कई योजनाएं लागू नहीं कर पाई.

6. CCTV योजना, नए मोहल्ला क्लीनिक बनाए जाने की योजना, सेवाओं की होम डिलीवरी की योजना, राशन की होम डिलीवरी की योजना जैसी कई स्कीम लंबे वक्त के लिए बाधित रहीं.

7. हर फाइल को मंजूरी के लिए उपराज्यपाल को भेजना जरूरी और उपराज्यपाल फाइलों पर लंबे समय तक बैठे रहते हैं.

8. सरकार द्वारा नियुक्त किए गए सलाहकारों और विशेषज्ञों की नियुक्ति को उपराज्यपाल ने खारिज किया जिससे सरकार के काम पर प्रभाव पड़ा.

9. कैबिनेट की सलाह उपराज्यपाल पर बाध्य ना होने से उन्होंने सरकार के नीतिगत फैसले को पलट दिया या खारिज कर दिया.

10. केंद्र सरकार द्वारा शक्ति विहीन और उस पर हाई कोर्ट के आदेशों के बाद चुनी हुई सरकार का दिल्ली में सरकार चलाना मुश्किल हो गया है. चुनी हुई सरकार महज सलाहकार की भूमिका में रह गई है.

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