
पूरे देश के साथ-साथ देश की राजधानी दिल्ली भी पानी की किल्लत से जूझ रही है. पानी की ऐसी ही किल्लत से निपटने के लिए दिल्ली की अरविंद केजरीवाल सरकार एक महत्वाकांक्षी परियोजना पर काम शुरू करने जा रही है. दिल्ली सरकार ने बुधवार को हुई कैबिनेट की बैठक में यमुना किनारे फ्लड प्लेन इलाकों में तालाब खोदकर बाढ़ के पानी को संचय करने की योजना को मंजूरी दे दी है.
दिल्ली सरकार का दावा है कि अगर यह परियोजना पूरी हो जाती है तो सिर्फ दिल्ली ही नहीं बल्कि यह परियोजना पूरे देश के सूखाग्रस्त और पानी की किल्लत झेल रहे राज्यों के लिए एक बेहतरीन उदाहरण साबित होगी. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कई मौकों पर पानी की किल्लत से निपटने के लिए दिल्ली में यमुना किनारे बाढ़ प्रभावित इलाकों में बड़े-बड़े तालाब बनाए जाने की परियोजना का जिक्र कर चुके हैं.
बनाई गई थी आंतरिक विभागीय कमिटी
दिल्ली सरकार ने इसके लिए आंतरिक विभागीय कमेटी की बनाई थी, जिसकी रिपोर्ट के आधार पर पायलट प्रोजेक्ट को आज कैबिनेट ने मंजूरी दे दी. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने इस परियोजना में केंद्र सरकार के सहयोग के लिए केंद्रीय जल संसाधन मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत को धन्यवाद भी दिया.
वाटर हार्वेस्टिंग के लिए दिल्ली सरकार तकनीकी विशेषज्ञों के साथ अब तक की सबसे बड़ी परियोजना पर काम कर रही है. सरकार के सूत्रों ने आज तक को ये जानकारी दी है. इस परियोजना का पायलट प्रोजेक्ट इसी सप्ताह शुरू किया जा सकता है, जिसके तहत वजीराबाद से पल्ला के बीच यमुना के फ्लडप्लेन में एक बड़ा सा तालाब खोद कर यमुना में मॉनसून के दौरान आने वाली बाढ़ का पानी संचित किया जाएगा.
जमीन में लौटेगा पानी
बाढ़ का संचित पानी बाढ़ खत्म होने के बाद वापस जमीन में लौट जाएगा, जिससे आसपास के इलाकों में भूजल का स्तर न सिर्फ रिचार्ज होगा बल्कि बेहतर होकर पानी का स्तर और ऊपर आ जाएगा. इस परियोजना के लिए यमुना के किनारे किसानों से दिल्ली सरकार जमीनों को किराये पर लेगी, जिसके लिए कागजी कार्यवाही लगभग शुरू हो चुकी है.
वजीराबाद से पल्ला और ओखला इलाकों में यमुना किनारे फ्लडप्लेन पर लगभग 1000 एकड़ की जमीनों पर दिल्ली सरकार अपनी इस सबसे बड़ी महत्वाकांक्षी परियोजना को शुरू करेगी. सरकार के सूत्रों के मुताबिक इन जमीनों पर 20 से 40 एकड़ के आकार में 1000 एकड़ जमीन पर ज्यादा से ज्यादा मात्रा में तालाब खोदे जाएंगे, जिसमें बाढ़ के दौरान यमुना में आने वाले पानी को संचित किया जाएगा. तालाब का यह पानी दिल्ली के सभी इलाकों में भूजल स्तर को रिचार्ज करेगा.
दिल्ली इस्तेमाल कर पाएगी 66000 एमजीडी पानी
दिल्ली सरकार के सूत्रों का दावा है कि इस परियोजना के पूरा होने के बाद दिल्ली अकेले अपने भूजल स्रोतों से 66000 एमजीडी पानी का उपयोग रोज कर सकेगी. फिलहाल दिल्ली को प्रतिदिन 11000 एमजीडी पानी की जरूरत है, जिसमें से उसके पास यमुना में हरियाणा से छोड़े गए, गंगा से आने वाले और भूजल के दोहन से कुल मिलाकर लगभग 950 एमजीडी पानी ही वितरण के लिए मौजूद है. आज की तारीख में भी दिल्ली लगभग डेढ़ सौ एमजीडी पानी प्रतिदिन की किल्लत से जूझ रही है.
सरकार का कहना है कि अकेले मॉनसून के दौरान यमुना में पानी का स्तर बढ़ने से हरियाणा प्रतिदिन कई क्यूसेक पानी दिल्ली की ओर छोड़ देता है, जिससे निचले इलाकों में बाढ़ जैसी तस्वीर भी नजर आने लगती है. दिल्ली सरकार के मुताबिक हरियाणा मॉनसून के दौरान लगभग 11 लाख एमजीडी पानी दिल्ली में छोड़ता है जो पूरी तरह व्यर्थ हो जाता है. सरकार उसी पानी को तालाबों में रोककर वाटर हार्वेस्टिंग तकनीक के जरिए बाढ़ के पानी का इस्तेमाल करते हुए राज्य में भूजल को एक बड़ा स्रोत बनाने की तैयारी कर रही है. दिल्ली की केजरीवाल सरकार इस परियोजना के लिए विशेषज्ञों की एक पूरी टीम के साथ काम कर रही है.
इस हफ्ते के आखिर में शुरू होगा काम
सरकार ने आज तक को बताया कि अगले एक-दो दिनों में यमुना किनारे रहने वाले किसानों से उनकी जमीन किराए पर लिए जाने की प्रक्रिया शुरू हो जाएगी और पायलट प्रोजेक्ट के तहत पहले तालाब के लिए काम इसी सप्ताह के अंत तक शुरू हो सकता है. किसानों को सरकार प्रति एकड़ के बदले 50000 रुपए तक का किराया देगी. मॉनसून के उत्तर भारत पहुंचने के चलते सरकार इस परियोजना को पूरी तरह इस साल अंजाम नहीं दे पाएगी. लेकिन पायलट प्रोजेक्ट तैयार होने के बाद विशेषज्ञों की टीम मॉनसून बीत जाने के बाद उससे डेटा उठाएगी और उसका विस्तृत अध्ययन भी करेगी.
पानी की किल्लत से जूझ रहे भारत जैसे देश जल संरक्षण जैसी तकनीक को बढ़ावा देने की बात कर रहे हैं. ऐसे में दिल्ली की यह परियोजना पूरे देश के लिए एक उदाहरण साबित हो सकती है. चाहे बिहार में कोसी की बाढ़ का कहर हो या असम में ब्रह्मपुत्र नदी से आने वाला सैलाब, बाढ़ के पानी को वाटर हार्वेस्टिंग तकनीक से अगर फिर से भूगर्भ में भेजा जाए तो आने वाले समय में पानी की किल्लत से निपटा जा सकता है.