
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) पिछले कुछ दिनों से तिहाड़ जेल (Tihar Jail) में बंद हैं. गौर करने वाली बात ये है कि अभी तक उन्होंने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा नहीं दिया है. अब केजरीवाल के सामने सबसे बड़ी चुनौती दिल्ली के मेयर का चुनाव बन गया है. दिल्ली नगर निगम का सत्र अप्रैल से शुरू होता है और पहली बैठक में मेयर का चुनाव करवाने के लिए दिल्ली नगर निगम बाध्य है. अगर चुनाव नहीं हुआ तो संवैधानिक संकट खड़ा हो जाएगा.
महापौर चुनाव न होना सीधे तौर पर निगम ड्यूटी को पूरा न कर पाना है. निगम में मेयर का चुनाव तीसरे साल के लिए होगा, जो कि अनुसूचित जाति के पार्षद के लिए आरक्षित हैं. मेयर चुनाव में दिल्ली के सीएम की अहम भूमिका होती है. मेयर चुनने के लिए सबसे पहले पीठासीन अधिकारी तय होता है. अब तक मुख्यमंत्री ही पीठासीन अधिकारी के नाम वाली फाइल उपराज्यपाल को भेजते थे. अब सीएम केजरीवाल के जेल में होने से बड़ा संकट खड़ा हो गया है.
कई पड़ावों से गुजरती है सरकारी फाइल
महापौर चुनाव के लिए पीठासीन अधिकारी की सरकारी फाइल दिल्ली नगर निगम से उपराज्यपाल तक पहुंचने से पहले अहम पड़ावों से होकर गुजरती है. सबसे पहले दिल्ली नगर निगम सचिव इस फाइल को एमसीडी कमिश्नर को भेजते हैं. इसके बाद कमिश्नर शहरी विभाग के सचिव को, शहरी विकास विभाग के सचिव- मुख्य सचिव को और मुख्य सचिव शहरी विकास विभाग के मंत्री को फाइल भेजते हैं.
शहरी विकास विभाग के मंत्री दिल्ली के सीएम को यह फाइल भेजते हैं और आखिरी में यह फाइल मुख्यमंत्री उपराज्यपाल को भेजते हैं. सवाल ये है कि आखिर अब मुख्यमंत्री केजरीवाल की गैर-मौजूदगी में क्या होगा? पीठासीन अधिकारी का चयन नहीं हो पाता है, तो चुनाव की प्रक्रिया भी नहीं हो सकती है.
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क्या कहता है अनुच्छेद 35?
दिल्ली नगर निगम एक्ट के अनुच्छेद 35 में महापौर का चुनाव हर वर्ष अप्रैल महीने में होने वाली पहली मीटिंग में होगा. नियम के मुताबिक हर महीने एक मीटिंग जरूरी है. ऐसे में अप्रैल में महापौर का चुनाव करवाना होगा. ऐसा नहीं होता है तो निगम में संवैधानिक संकट की स्थिति पैदा हो सकती है. दिल्ली के एलजी और सीएम के बीच पीठासीन अधिकारी बनाने को लेकर टकराव भी हो चुका है. कुल मिलाकर एक ग्राउंड बन गया है, जहां पर टकराव पैदा हो सकता है. निगम एक्ट के अनुच्छेद 77 में जरूरी प्रावधान है कि पीठासीन अधिकारी को तय करना है, जिसका अंतिम अधिकार निगम के एडमिनिस्ट्रेटर यानि एलजी के पास हैं.
अब तक मौजूदा महापौर को ही पीठासीन अधिकारी बनाया जाता रहा है लेकिन बीते मेयर चुनाव के वक्त जब एलजी ने पीठासीन अधिकारी के तौर पर बीजेपी के पार्षद सत्या शर्मा का नाम तय कर दिया था. इसके बाद पूरी दिल्ली सरकार और सीएम ने इसे असंवैधानिक करार दिया और कोर्ट चले गये थे. इस बार जब सीएम ही जेल में है, तो टकराव बढ़ने की आशंका है. निगम एक्ट एक्सपर्ट सुरेंद्र का कहना है कि दिल्ली के एलजी ही एडमिनिस्ट्रेटर हैं. ऐसे में पीठासीन अधिकारी पर वही फैसला लेंगे.