
बॉम्बे हाईकोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि पुणे पोर्श हादसे का नाबालिग आरोपी सदमे में है और उसे कुछ समय दिया जाना चाहिए. जस्टिस भारती डांगरे और जस्टिस मंजूषा देशपांडे की बेंच ने पुणे पुलिस के उस रवैये की ओर इशारा करते हुए यह बात कही, जिसमें नाबालिग आरोपी को पहले जमानत दी गई और फिर अचानक बढ़ते दबाव के बीच उसे पर्यवेक्षण गृह में डाल दिया गया.
बॉम्बे हाईकोर्ट ने पोर्श कांड में नाबालिग आरोपी की चाची द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान अभियोजन पक्ष से सवाल करते हुए कहा कि दो लोगों की जान चली गई. ये बड़ा सदमा था, लेकिन नाबालिग आरोपी भी सदमे में है, उसे कुछ समय दीजिए. नाबालिग आरोपी की चाची ने बाल सुधार गृह से उसे रिहा करने की मांग करते हुए याचिका दायर की थी.
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने पुलिस से पूछा कि कानून के किस प्रावधान के तहत पुणे पोर्श कांड के नाबालिग आरोपी को जमानत देने के आदेश में संशोधन किया गया और उसे किस तरह से कारावास में रखा गया. नाबालिग आरोपी की चाची की ओर से पेश हुए एडवोकेट आबाद पोंडा ने कहा कि पुलिस ने जमानत आदेश को चुनौती नहीं दी है या इसे रद्द करने की मांग नहीं की है, बल्कि इसे संशोधित करने का प्रयास किया है, जो कि अवैध है. पोंडा ने कहा कि नाबालिग आरोपी के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन किया गया है.
एडवोकेट पोंडा ने कहा कि एक स्वतंत्र नागरिक की व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर कुठाराघात किया गया है. क्या किसी बच्चे को हिरासत में लिया जा सकता है, जब उसे जमानत दी गई हो और जमानत आदेश लागू हो? उन्होंने कहा कि कानून के तहत ऐसा कोई प्रावधान नहीं है, जिसके तहत जमानत आदेश की समीक्षा की मांग की जा सके और उसे पारित किया जा सके.
कोर्ट ने पुलिस से पूछा- यह किस तरह की रिमांड
अदालत ने पुणे पुलिस की ओर से पेश हुए मुख्य लोक अभियोजक हितेन वेनेगांवकर से पूछा कि यह किस तरह की रिमांड है? रिमांड करने का अधिकार कहां है? यह किस तरह की प्रक्रिया है, जहां किसी व्यक्ति को जमानत दी गई है और फिर उसे हिरासत में लेकर रिमांड पारित किया गया है. बेंच ने कहा कि नाबालिग आरोपी को उसके परिवार के सदस्यों की देखभाल और निगरानी से दूर ले जाया गया और पर्यवेक्षण गृह में भेज दिया गया, जो कि कानून का उद्देश्य नहीं है.
बेंच ने हितेन वेनेगांवकर से पूछा कि नाबालिग आरोपी एक ऐसा शख्स है, जिसे जमानत मिल चुकी है, लेकिन अब उसे निगरानी गृह में रखा गया है. क्या यह कारावास नहीं है? हम आपकी शक्ति का सोर्स जानना चाहेंगे, बेंच ने सवाल किया कि पुलिस ने जमानत रद्द करने के लिए आवेदन क्यों नहीं किया. इस पर वेनेगांवकर ने कहा कि बोर्ड द्वारा पारित रिमांड आदेश सभी वैध थे और केवल संरक्षकता में बदलाव हुआ है. माता-पिता के बजाय वह अब एक परिवीक्षा अधिकारी के अधीन है.
नाबालिग आरोपी 25 जून तक सुधार गृह में है
वेनेगांवकर ने कहा कि 19 मई को बोर्ड का जमानत आदेश "सही या गलत" पारित हुआ, लेकिन तब से बहुत कुछ हुआ है और सबूतों के साथ छेड़छाड़ की गई है. वेनेगांवकर ने कहा कि गलत काम करने वाले अधिकारियों और डॉक्टरों के खिलाफ कार्रवाई की गई है. समाज को एक कड़ा संदेश दिया जाना चाहिए कि आप केवल 300 शब्दों का निबंध लिखकर बाहर नहीं निकल सकते. नाबालिग आरोपी फिलहाल 25 जून तक सुधार गृह में है. बेंच ने याचिका पर अपना आदेश सुरक्षित रख लिया और कहा कि आदेश 25 जून को पारित किया जाएगा.
क्या था मामला?
बता दें कि 19 मई को कथित तौर पर नाबालिग आरोपी नशे की हालत में था और काफी स्पीड से पोर्श कार चला रहा था. इस दौरान कार से टकराकर दो सॉफ्टवेयर इंजीनियर अनीश अवधिया और अश्विनी कोष्टा की मौत हो गई थी. नाबालिग आरोपी को उसी दिन किशोर न्याय बोर्ड ने जमानत दे दी थी और उसे अपने माता-पिता और दादा की देखरेख में रखने का आदेश दिया. इसके साथ ही कोर्ट ने ये शर्त भी रखी थी कि नाबालिग आऱोपी को सड़क सुरक्षा पर 300 शब्दों का निबंध लिखना होगा. हालांकि पुलिस ने बाद में बोर्ड के समक्ष एक आवेदन दायर किया, जिसमें जमानत के आदेश में संशोधन की मांग की गई थी. 22 मई को बोर्ड ने नाबालिग आरोपी को हिरासत में लेने और उसे बाल सुधार गृह में भेजने का आदेश दिया था.