Advertisement

जिस ऑक्सीजन ऑडिट रिपोर्ट पर केंद्र और केजरीवाल सरकार में है विवाद, जानिए वो कब, कैसे और क्यों बनी थी?

मई के पहले हफ्ते में कोविड की दूसरी लहर के दौरान उत्पन्न हुए ऑक्सीजन संकट के दौरान सुप्रीम कोर्ट की ओर से बनाई गई नेशनल टास्क फोर्स की रिपोर्ट, सिफारिशों और कार्रवाई रिपोर्ट का साझा रूप है.

सांकेतिक तस्वीर सांकेतिक तस्वीर
संजय शर्मा
  • नई दिल्ली,
  • 25 जून 2021,
  • अपडेटेड 7:46 PM IST
  • सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर बना था टास्क फोर्स
  • टास्क फोर्स ने ऑक्सीजन मैनेंजमेंट पर दी रिपोर्ट

केंद्र और दिल्ली सरकार के बीच जिस रिपोर्ट पर इतना विवाद हो रहा है, दरअसल वो मई के पहले हफ्ते में कोविड की दूसरी लहर के दौरान उत्पन्न हुए ऑक्सीजन संकट के दौरान सुप्रीम कोर्ट की ओर से बनाई गई नेशनल टास्क फोर्स की रिपोर्ट, सिफारिशों और कार्रवाई रिपोर्ट का साझा रूप है.

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के संयुक्त सचिव निपुण विनायक की ओर से सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हलफनामे के जरिए केंद्र सरकार ने नेशनल टास्क फोर्स की तीनों रिपोर्ट को शामिल किया है. सुप्रीम कोर्ट को सौंपा गया केंद्र सरकार का हलफनामा कोई राजनीतिक दस्तावेज नहीं बल्कि कोर्ट की ओर से बनाए गए टास्क फोर्स की रिपोर्ट का हवाला है. 

Advertisement

क्यों बनाई गई ऑक्सीजन पर ऑडिट रिपोर्ट?

7 मई को सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस धनंजय वी चंद्रचूड़ और जस्टिस एमआर शाह की पीठ ने स्वत: संज्ञान मामले की सुनवाई के दौरान स्वास्थ्य और प्रशासन की जानी मानी हस्तियों को मिलकर बारह विशेषज्ञों की नेशनल टास्क फोर्स बनाई. इसी सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों को ऑक्सीजन की जरूरत, उपलब्धता और वितरण पर कमेटी बनाने का निर्देश दिया था.

पीठ ने दिल्ली के लिए अपनी ओर से लगे हाथ ऑडिट कमेटी बना ही दी. इसमें एम्स दिल्ली के निदेशक डॉ रणदीप गुलेरिया और मैक्स हेल्थकेयर के डॉ संदीप बुद्धिराजा और केंद्र और दिल्ली सरकार के संयुक्त सचिव या इससे ऊपर दर्जे के एक-एक अधिकारी को शामिल करने का आदेश दिया. टास्क फोर्स की कार्य अवधि छह महीने तय की और रिपोर्ट तलब की.

Advertisement

ये रिपोर्ट उसी कवायद का हिस्सा है, जिसमें टास्क फोर्स ने दिल्ली के लिए बनी ऑक्सीजन ऑडिट को लेकर अंतरिम रिपोर्ट के साथ-साथ टास्क फोर्स की एक्शन टेकेन यानी कार्रवाई रिपोर्ट और सिफारिशें भी शामिल हैं. टास्क फोर्स ने अपनी सिफारिशों में भविष्य की चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए देश भर में ऑक्सीजन का रणनीतिक बफर स्टॉक बनाने और मेंटेन करने को कहा है. कुछ उसी तर्ज पर जैसे पेट्रोलियम उत्पादों का बफर स्टॉक रखा जाता है.

रिपोर्ट में दिल्ली को लेकर क्या कहा गया?

रिपोर्ट ये भी कहती है कि शुरुआती जांच के दौरान ये खुलासा हुआ कि दिल्ली सरकार जितनी ऑक्सीजन की मांग कर रही थी, उतनी ऑक्सीजन के भंडारण का इंतजाम सरकारी तंत्र के पास नहीं था. टैंकर अगर खाली करने होते तो सरकार के पास उसे डंप करने का कोई इंतजाम ही नहीं था, निजी अस्पतालों ने भी उन मरीजों के लिए ऑक्सजीन की मांग रख दी थी जिनको उस समय ऑक्सीजन सपोर्ट की जरूरत नहीं थी.

सरकार की इस बिना तार्किक और व्यावहारिक मांग की वजह से बारह से ज्यादा राज्यों के मरीजों को ऑक्सीजन की किल्लत का खामियाजा भुगतना पड़ा, क्योंकि देश भर में मेडिकल ऑक्सीजन के उत्पादन और वितरण का बड़ा हिस्सा दिल्ली को सप्लाई होता रहा. रिपोर्ट ये भी कहती है कि कई निजी अस्पतालों के प्रबंधन को ऑक्सीजन माप के मानक किलो लीटर और मीट्रिक टन के बीच अंतर के बारे में जानकारी नहीं थी. इसी वजह से ये गलतफहमी हुई होगी.

Advertisement

बीजेपी ने मांगा केजरीवाल का इस्तीफा

अब इस रिपोर्ट के बाद से ही इस पर राजनीति तेज हो गई है. बीजेपी ने इसे बड़ा मुद्दा बना लिया है और लगातार केजरीवाल सरकार की नीयत पर सवाल खड़े किए जा रहे हैं. दिल्ली बीजेपी अध्यक्ष आदेश गुप्ता ने तो एक कदम आगे बढ़कर यहां तक कह दिया है कि सीएम अरविंद केजरीवाल को इस्तीफा दे देना चाहिए. बयान में कहा गया है कि कोरोना संकट में ऑक्सीजन की सरकार निर्मित कमी से मारे जाने वाले लोगों की वास्तव में हत्या हुई है जिसके लिए केजरीवाल सरकार पूरी तरह जिम्मेदार है. इसलिए केजरीवाल को इस्तीफा देना चाहिए. ऑक्सीजन ऑडिट मुद्दे पर उच्चतम न्यायालय की रिपोर्ट के बाद केजरीवाल, उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया और स्वास्थ्य मंत्री सत्येन्द्र जैन के खिलाफ हत्या और आपराधिक षडयंत्र के मामलों में मुकदमें दर्ज होने चाहिए. 

 

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement