
किराये पर कोख- कुछ साल पहले ये टर्म काफी सुनी जाती थी. इसमें जरूरतमंद महिलाएं 9 महीनों तक किसी और का बच्चा अपने पेट में पालतीं और डिलीवरी के बाद पैसे लेकर लौट जातीं. धीरे-धीरे इस बंदोबस्त की शक्ल बिगड़ती चली गई. विदेशी कपल सरोगेसी टूरिज्म के लिए आने लगे. यहां तक कि भारत को बेबी फैक्टरी कहा जाने गया. तब हजारों ऐसे क्लीनिक थे, जो गरीब महिलाओं की मजबूरी से कमा रहे थे. सरोगेसी के लिए मानव तस्करी तक होने लगी थी. सरकार एक्ट लाई लेकिन ये गोरखधंधा रुका नहीं बल्कि भीतर ही भीतर फल-फूल रहा है.
aajtak.in ने ऑफलाइन और ऑनलाइन दोनों ही तरीकों से इस गड़बड़झाले को टटोला. दिल्ली-एनसीआर के कई फर्टिलिटी सेंटर्स में बात की. कहीं सरोगेट की जरूरत बताते हुए, तो कहीं खुद सरोगेट बनना चाहते हुए. फिर क्या था, पर्दे के पीछे चल रहे इस गोरखधंधे की एक के बाद एक परतें खुलने लगीं.
एक सरोगेट मदर की तलाश मुझे ले गई गुरुग्राम के फर्टिलिटी क्लीनिक. मैंने यहां अपना नाम 'दिव्या' बताया. वहां पहुंचते ही एक फॉर्म भरवाकर डॉक्टर के कमरे में भेज दिया गया.
डॉक्टर से पहले कोऑर्डिनेटर मिली, जो भरोसा दिलाती है कि क्लीनिक जो सरोगेट दिलाता है, उनका सक्सेस रेट काफी अच्छा है. एक सरोगेसी के लिए वो 10 से 15 लड़कियों की स्क्रीनिंग करता है ताकि आप तक स्वस्थ और तंदुरुस्त बच्चा पहुंचा सके.
मेरा सवाल था कि सरोगेट को बच्चे से अटैचमेंट हो जाए और वो देने से मना कर दे तो? तुरंत जवाब आया ‘ऐसा होगा ही नहीं. हम डिलीवरी के साथ ही मां-बच्चे को अलग कर देते हैं. वो उसका चेहरा भी नहीं देख सकती और आपको भी वो पूरी तरह नहीं जानेगी कि घर तक पहुंच जाए'.
नई उम्र की लड़की की आवाज में ठसक और भरा-भरापन, जो तजुर्बे से ही आता है. वही मुझे लगभग हाथ पकड़कर डॉक्टर के कमरे तक छोड़ आती है. मेडिकल हिस्ट्री पूछने के बाद डॉक्टर मुद्दे पर आती है
डॉक्टरः आपको किस तरह की सरोगेट चाहिए?
दिव्याः रिलीजन और कास्ट एक फैक्टर है. हम हिंदू हैं तो...
डॉक्टरः कोई नहीं. सबके अपने प्रेफरेंस होते हैं. मुस्लिम कपल आते हैं जो कहते हैं कि हमें मुस्लिम ही सरोगेट चाहिए. दो एजेंट सिर्फ मुस्लिम सरोगेट सप्लाई करते हैं. एक एजेंट ज्यादातर हिंदू लड़कियां देता है. हेल्दी हो और हिंदू तो आपको चलेगा न....!
दिव्याः हां. चलेगा. लेकिन हाइट-हेल्थ भी ठीक-ठाक हो!
डॉक्टरः वो सब हम देख लेंगे. स्क्रीनिंग करेंगे तब सारी चीजें देखते हैं. कोशिश करते हैं कि क्लाइंट जैसी चाहे, वैसी ही, या उसके आसपास की लड़की मिले. लेकिन असल चीज तो सक्सेसफुल डिलीवरी है.
ये कहते हुए डॉक्टर अपना फोन खोलकर तस्वीरें दिखाने लगती है. ‘ये...ऐसी होती हैं हमारी सरोगेट...हायर करने से पहले सब देख-भाल लेते हैं. किसी को भी नहीं ले आते’.
दिव्याः कहां से आती हैं सरोगेट्स?
डॉक्टरः हरियाणा, बिहार, यूपी. यहां की लड़कियों में रिजल्ट अच्छा रहता है. कई स्टेट्स को हम नहीं लेते.
दिव्याः अच्छा. कितना समय लगेगा प्रोसेस में?
डॉक्टरः आपके राजी होने के बाद से 15 महीने मान लीजिए. मैं आपको सब समझा दूंगी.
दिव्याः और पैसे कितने देने होंगे?
डॉक्टरः टोटल 18 लाख लगेगा डिलीवरी तक.
दिव्याः ये तो बहुत ज्यादा है. 15 में क्लोज कीजिए.
डॉक्टरः कोशिश करती हूं कि डन हो जाए लेकिन फिर डिलीवरी नहीं करा पाऊंगी. उसका एडिशनल देना होगा. एज-पर-एक्चुअल जो भी तब हो. देख लो, मेरे पास कितने कपल आते हैं. बाहर देख रही हो?
डॉक्टर केबिन का दरवाजा खोलकर बाहर दिखाती है ताकि क्लाइंट के भरोसे में और वजन जाए.
दिव्याः बच्चा होने के बाद सरोगेट कहीं हमें देने से मना तो नहीं करेगी?
डॉक्टरः उनके साथ हमारा कॉन्ट्रैक्ट होता है और फिर बेबी को तुरंत एनआईसीयू में रख देते हैं, जहां तक वो नहीं पहुंच पाती. उसे पता नहीं होता कि उसने किसे जन्म दिया है. वैसे भी उसे पैसे चाहिए होते हैं बस.
दिव्याः उस महिला से हमारी मुलाकात कब हो सकती है?
डॉक्टरः हार्टबीट आने पर कर लेना. वहीं अल्ट्रासाउंड रूम में. ईटी (एंब्रियो ट्रांसफर) के समय भी एक बार मिल सकती हो, लेकिन हम कहेंगे कि मत मिलो.
दिव्याः कोई लीगल पचड़ा तो नहीं होगा. कमर्शियल सरोगेसी बैन है, जानने वाली से ही करा सकते हैं, जितना मैं पढ़कर समझ सकी?
डॉक्टरः वो हमपर छोड़ दो. ये बताओ कि कौन सी रिलेटिव बनेगी सरोगेट. अभी मान लो हां कर भी दे और बाद में बच्चा ले जाए तो आप क्या कर लेंगी. बच्चा तो सबको चाहिए. अभी मेरे पास 34 केस हैं.
दिव्याः लेकिन कानून तो इसे गलत कहता है…
डॉक्टरः आप छोड़ दो कानून को. वो हम देख देंगे. सारे डॉक्युमेंट्स आपके नाम पर होंगे. बर्थ सर्टिफिकेट से लेकर बच्चा देने तक पूरा काम हमारा. हमने लाइसेंस ले रखा है. किसी के लिए लाइसेंस दांव पर क्यों लगाएंगे.
दिव्याः फिर भी डॉक्टर...सरोगेट को आप कैसे हमारा रिश्तेदार बताएंगे.
डॉक्टरः हम उसे आपका क्लोज रिलेटिव बता देंगे. वो पेन आप मत लीजिए. हमारी लीगल टीम बैठी है उसके लिए.
दिव्याः हां. लेकिन डरते हैं. हमने तो अडॉप्शन के बारे में भी सोच लिया था.
डॉक्टरः क्यों जाना चाहते हो अडॉप्शन पर. आज से 20 साल बाद रिग्रेट करोगे कि बच्चा अपना खून नहीं. मेरी मानो तो सरोगेट करो.
दिव्याः सक्सेस रेट क्या है.
डॉक्टरः आपकी एज अभी थोड़ी ज्यादा है. डोनर से लेंगे तो वो कम उम्र की होगी. तब गारंटी पक्की. लेकिन उसमें फिर 60 हजार रुपये एक्स्ट्रा जोड़ लीजिए और जुड़वा बच्चे हुए तो दो लाख ऊपर से.
दिव्याः डोनर कौन होगी?
डॉक्टरः ये हम नहीं बता सकते, लेकिन इतना यकीन रखिए कि सरोगेट को डोनर नहीं बनाते ताकि बाद में कोई चक्कर न हो.
दिव्याः क्या हम खुद सरोगेट ला सकते हैं?
डॉक्टरः ले आओ अगर मिल जाए. तब चार्जेस कम हो जाएंगे. 4 से 5 लाख लेकिन हम आईवीएफ करके छोड़ देंगे. फिर कोई गारंटी नहीं कि बच्चा ठीक से होगा या नहीं.
दिव्याः नहीं, उतना रिस्क मैं नहीं ले सकती. अच्छा, डॉक्युमेंट्स में क्या-क्या चाहिए?
डॉक्टरः आधार कार्ड, मैरिज सर्टिफिकेट अगर हो तो. जो भी मेडिकल ट्रीटमेंट लिया हो, उसकी हिस्ट्री.
दिव्याः सरोगेट कोई दिक्कत तो नहीं करेगी डॉक्टर?
डॉक्टरः अरे, उसका क्यों सोच रही हो. ‘शी इज लाइक ए बैग’, जिसमें तुम्हारा सामान रखा है. टाइम होने पर हम उसे निकाल लेंगे.
पूरी बातचीत के बाद ईमेल पर एक पैकेज भी भेजा गया, जिसमें हर एक स्टेप की कीमत लिखी हुई है. ईमेल का सबजेक्ट था- गारंटीड सरोगेसी…
इनसे मुलाकात के बाद हमने साउथ दिल्ली के एक नामी अस्पताल में बात की. दबी हुई आवाज में अपनी जरूरत बताने पर रिसेप्शन पर बैठी महिला का रुटीन लहजे में जवाब आता है- ‘आईवीएफ होता तो तुरंत करा देते. लेकिन ये ‘थोड़ा’ इललीगल है. मैं XYZ सर से बात करती हूं. वही ये काम देखते हैं’.
बाद में वहां से दोबारा फोन आता है. सर कहते हैं- ‘सरोगेसी तो अब होती नहीं यहां, लेकिन आप आइए, बात करते हैं. जब इतने भरोसे से फोन किया है तो कुछ न कुछ तो हो ही जाएगा’.
‘मिलने से पहले फोन पर भी कुछ बता देते तो तसल्ली रहती’. मैं कहती हूं.
‘नहीं मैडम. आप कल सुबह 9 से 6 के बीच कभी भी आ जाइए. मेरे पास तोड़ है. काम हो जाएगा’. ये कहते हुए फोन कट जाता है.
सरोगेसी के लिए ऑनलाइन जो नेटवर्क काम करता है, वही असल में फर्टिलिटी सेंटरों तक सरोगेट पहुंचाता है. इसमें कोऑर्डिनेटर होते हैं, जो खुद को एजेंट कहने से बचेंगे. मुश्किल में मदद करने का मसीहाई भाव लिए ये लोग बात भी उसी तरह से करते हैं.
फेसबुक पर ऐसे ढेरों ग्रुप एक्टिव हैं. फेक पहचान के साथ जुड़कर मैंने अपनी जरूरत दिखाई.
“मुझे एक सरोगेट मां चाहिए. लोकेशन- दिल्ली-एनसीआर. हिंदी-इंग्लिश स्पीकिंग. उम्र- 23 से 30 साल. होस्ट के घर पर रहना होगा. कम्पंसेशन- 8 लाख. फोन नंबर- XYZ”
मैसेज डालते ही फेसबुक मैसेंजर पर बात होने लगी. एक एजेंट दिल्ली से था, जो ग्रुप का टॉप कंट्रीब्यूटर था. उसकी तरफ से भी क्वेरी आई. मैसेंजर से लेकर वॉट्सएप और कॉल पर हुई बातचीत को हम यहां बिना हेरफेर उसी लहजे में लिख रहे हैं.
आपकी लोकेशन क्या है मैडम?
दिल्ली.
दिल्ली में कहां?
साउथ वेस्ट.
आपके पास परमिशन या कोई सर्टिफिकेट है?
कुछ नहीं है. मैं इसी के पैसे खर्च करूंगी. 10 लाख तक दे सकती हूं.
अरे मैडम, 10 तो सरोगेट ले लेगी. 5 से 6 लाख आईवीएफ क्लीनिक लेगा. लीगल कंसल्टेशन के लगेंगे 3 से 4 लाख.
तो आपका मतलब है, बजट 20 से ऊपर चला जाएगा?
हां, बिल्कुल. आप अपने एरिया के क्लीनिक्स में पता कर लो. वो 25 से 30 लेंगे. इससे कम में नहीं मानेंगे.
आप कितना लेंगे, बेस्ट प्राइस क्या है?
20 लाख लेंगे. आप एक बार डिस्ट्रिक्ट सेंटर आ जाओ. वहां आराम से डिस्कस करेंगे अगर कुछ कम-ज्यादा हो सके. वैसे चांस कम है.
ठीक है. आ जाती हूं लेकिन उससे पहले फोन पर बात करना चाहूंगी ताकि प्रोसेस समझ आ जाए.
फोन तो नहीं, आप वॉट्सएप कॉल कीजिए. ये मेरा नंबर....आप अपना नंबर दे दीजिए ताकि मैं फोन उठाऊं.
इस शख्स से दो बार फोन पर बात हुई.
आपको सरोगेट कहां की, कैसी चाहिए? हमारे पास वैरायटी है लेकिन आपको पैसे देने होंगे.
जहां की भी हो, फिट रहे.
हां वो तो होगी ही. हम टेस्ट कराएंगे, उसके बाद ही मेडिकल प्रोसिजर होगा.
तो आप हमें सरोगेट से मिलवाएंगे न?
नहीं. आप दूर-दूर से देख लीजिए. हम सजेस्ट करेंगे कि मिलिए मत उससे.
क्यों लेकिन? हम तो मिलना चाहते हैं. मेरी जिन जगहों पर बात हो रही है, वे हार्टबीट आने पर मिलवाएंगे, ऐसा कहा है.
आपकी मर्जी. आप मिल लीजिए. हार्टबीट के अल्ट्रासाउंड में. लेकिन फिर भी मैं कहूंगा कि दूर ही रहो उससे. आपको बच्चा चाहिए, वो मिल जाएगा.
समझ रही हूं लेकिन इस जर्नी में हम भी साथ रहना चाहते हैं.
ऐसा है मैडम कि कई बार लफड़ा हो जाता है. सरोगेट गरीब होती है. पेरेंट्स से मिलती है. समझ जाए पैसे वाले हैं तो ब्लैकमेल करेगी. बच्चा देने से मना भी कर सकती है. फिर आप क्या करोगे?
ऐसा होता है क्या?
एक नहीं, कई बारी हो चुका. पेरेंट्स को इसलिए हम दूर ही रहने कहते हैं उनसे.
फिर कैसे डिसाइड होगा कि बच्चा हमारा है? आप तो एक दिन कोई भी बच्चा दे देंगे. डीएनए टेस्ट होगा क्या? हमें देने से पहले.
ऐसा तो नहीं होता है. कभी किसी ने नहीं कहा. आपको भरोसा रखना होगा. चलिए. आईवीएफ में आप भी आ जाइए. लेकिन सरोगेट का सलेक्शन हम खुद करेंगे. आपको सिर्फ पिक्चर भेज देंगे.
और लीगल के लिए क्या चाहिए होगा सर?
फिलहाल कुछ नहीं. वो हम देख लेंगे.
लेकिन ये प्रोसेस कैसे होती है? क्या कागज चाहिए? अगर आप थोड़ा बता सकें.
ऐसे तो सरोगेसी बोर्ड में प्रोसेस लंबी है, जिसके लिए आप एलिजिबल भी नहीं. आपको क्लोज रिलेटिव या किसी जानने वाली को सरोगेट बनाना होगा, जिसे पैसे नहीं चाहिए हों. लेकिन ऐसा कुछ तो होता नहीं. अंदर-अंदर सब सैटल कर लेते हैं. हम इस पचड़े में जाएंगे ही नहीं.
तब क्या करेंगे?
हम मेडिकल से बात ही नहीं करेंगे. चारों पार्टियां मान जाएं तो हम सरोगेट में बच्चा ट्रांसफर करवा देंगे और नौ महीने बाद वो आपका.
चार पार्टियां कौन-कौन, सर?
आप, मैं, सरोगेट और क्लीनिक, जहां ये सब होगा.
काम कब तक शुरू हो सकता है?
आप टोकन अमाउंट भेजेंगी तो मैं आपको सरोगेट्स की पिक्चर भेज दूंगा. पसंद आ जाए तो हम उसे दिल्ली बुलाएंगे. इसमें 15 से 20 दिन तो लगेंगे. फिर काम स्पीड पकड़ लेगा.
पैसे कैसे दे सकती हूं, ऑनलाइन चलेगा?
नहीं-नहीं. कैश ही दीजिएगा. यूपीआई एकाध बार कर लेंगे जब क्लीनिक में आईवीएफ हो, वो भी एक लाख से ज्यादा शो नहीं करेंगे.
इतना कैश अरेंज करना मुश्किल होगा.
नहीं मैडम, ऑनलाइन या चेक हम नहीं लेंगे.
चलिए, वो मैं कर लूंगी. आप एग्रीमेंट तो बनवाएंगे- सारी पार्टियों के बीच?
बन जाएगा लेकिन कोई फायदा है नहीं. हम खुद इललीगल तरीके से जा रहे हैं. अगर कहीं भी फंसे तो भी कोर्ट नहीं जा सकते.
तो सर, लीगल तरीके से ले जाइए न, हम लोग तैयार हैं?
आपको कोई पहचान वाली मिलेगी जो फ्री में बच्चा पाल ले? कमर्शियल बैन है. कौन करेगा तब ये काम? कागज भी बनवाएं तो वहां भी पैसे खिलाने होंगे.
आवाज से इस बार भारी झुंझलाहट…
अच्छा. आपको मुझसे कौन से डॉक्युमेंट्स चाहिए?
अभी कुछ नहीं. आधार चाहिए होगा बस. लेकिन एक बात पहले से क्लियर कर दूं- मैं आपको कोई भी कागज नहीं दूंगा. ऐसा न हो कि दो-तीन महीने बाद आप सरोगेट से जुड़ा कोई कागज या आईडी-फाईडी मांगने लग जाएं. काम क्लीन होगा लेकिन डॉक्युमेंट्स आपको नहीं दूंगा. रही बात बच्चे के बर्थ सर्टिफिकेट की, तो वो दो तरह का हो सकता है- होम डिलीवरी या हॉस्पिटल डिलीवरी.
ये क्या होता है?
होम डिलीवरी में दिखाएंगे कि बच्चे की डिलीवरी घर पर हुई है. हम लोग इसे प्रेफर करते हैं. हॉस्पिटल डिलीवरी में चार्ज बढ़ जाएगा.
मतलब बच्चे का जन्म घर पर कराएंगे?
अरे नहीं. डिलीवरी अस्पताल में ही होगी लेकिन बर्थ सर्टिफिकेट बनवाते हुए थोड़ा हेरफेर कर लेते हैं ताकि दो-चार पैसे बच जाएं क्लाइंट के.
गैरकानूनी काम करता ये शख्स बीच-बीच कुछ ऐसे इशारे दे देता था कि क्लाइंट का उसपर सहज भी भरोसा जाग जाए.
फोन रखते हुए मुझे भी समझाइश देता है- ‘बच्चे के लिए पैसों की कोई कीमत नहीं, मैं समझता हूं लेकिन आप किसी से भी डील करें तो एकदम से सारे पैसे मत दे दीजिएगा, इंस्टॉलमेंट में करिएगा. चाहे मुझसे काम करवाएं, या न करवाएं’.
कमर्शियल सरोगेसी पर बैन लगाने की एक वजह ये भी थी कि विदेशी जोड़े देश को बेबी फैक्टरी की तरह देखने लगे थे. यहां दूसरे देशों की तुलना में सरोगेसी की कीमत 6 से 10 गुना तक कम थी इसलिए वे यहां आते, सरोगेट हायर करते और बच्चा लेकर लौट जाते थे. भारी कीमत दे रहे विदेशियों की डिमांड को पूरा करने के लिए सरोगेट मांओं की तस्करी तक होने लगी.
आज से ठीक 10 साल पहले एक रैकेट पकड़ा गया था जो झारखंड की 13-14 साल की आदिवासी बच्चियों को भी सरोगेट बना रहा था. एक लड़की को 6 बार सरोगेट मशीन की तरह इस्तेमाल किया गया. लड़की घरेलू काम के बहाने से दिल्ली लाई गई थी, जहां उसे सरोगेट बना दिया गया. इसी राज्य की एक और बच्ची ने 10 बच्चों को जन्म दिया था.
हाल ही में सेंट्रल ब्यूरो ऑफ इनवेस्टिगेशन (सीबीआई) ने संदेह जताया कि कई आईवीएफ क्लीनिक सरोगेट लाकर बच्चों की खरीद-बिक्री कर रहे हैं. वे सीधे ये काम नहीं करते, बल्कि उनके कोऑर्डिनेटर होते हैं जो निःसंतान कपल की जानकारी एजेंट को देते हैं. यहां से सारा खेल शुरू हो जाता है.
मैंने भी एक एजेंट को यह दिखाया कि मैं ब्रिटिश पासपोर्ट होल्डर हूं, जिसे भारत की सरोगेट चाहिए. पढ़िए, उससे हुई बातचीत...
आप कहां हो अभी?
दिल्ली.
तो सरोगेट को अपने साथ ब्रिटेन लेकर जाओगे?
हां. अगर यहां काम न बन सके तो वहां ले जाऊंगी.
किस टाइप की चाहिए. लड़कियां हमारे पास हैं?
कम उम्र. हिंदू. देखने-भालने में ठीक.
हम बात कर ही रहे थे कि मैसेंजर पर एक फोटो आती है, जिसमें एक महिला, एक बच्चे और पुरुष के साथ किसी मॉल में दिख रही है. कुल मिलाकर एक फैमिली पिक्चर.
ये तो अच्छे घर की लग रही हैं. सरोगेसी के लिए राजी हैं?
आप अच्छे पैसे दोगे तो करेगी. आप बताओ कि ब्रिटेन में क्या दोगी? एक बंदा मिला था डॉक्टर. वो 40 लाख देने को तैयार था लेकिन बेहूदी सी बात कर दी उसने. वीडियो कॉल पर बॉडी चेकअप के लिए बोलने लगा. तो मना कर दिया हमने.
ओके. लेकिन कॉन्ट्रैक्ट से पहले आपको उसके सारे मेडिकल टेस्ट कराने होंगे?
हां. वो तो हॉस्पिटल में होगा. वीडियो कॉल पर क्या होता है.
लड़की के पास पासपोर्ट है?
नहीं. हम 15 दिन में बनवा देंगे. आप टोकन अमाउंट दे दीजिए.
लेकिन आपने तो अभी एक ही फोटो भेजी है. ऑप्शन दीजिए.
ठीक है भेज रहा हूं. आप सलेक्ट करके बताइएगा….
इसके बाद कई तस्वीरें और आती हैं. साथ में एक-दो फोन भी जो सरोगेट्स के हैं. कुल मिलाकर पर्दे के पीछे ये गोरखधंधा पूरे संगठित ढंग से चल और फलफूल रहा है. एजेंट से लेकर डॉक्टर और बड़े अस्पताल तक सबका रोल, फीस फिक्स है. जबकि भारत में सरोगेसी को लेकर नियम बिल्कुल स्पष्ट हैं. (नीचे ग्राफिक्स देखें)
(यहां तक आपने पढ़ा कि देश में कैसे कमर्शियल सरोगेसी बैन होने के बावजूद धड़ल्ले से चल रही है और पैसे देने के लिए तैयार होते ही आपकी पसंद के हिसाब से सरोगेट मदर उपलब्ध कराई रही है. कल- अगली किस्त में पढ़िए कि निःसंतान जोड़े और एजेंट कैसे किसी महिला के इच्छा जताते ही उसे सरोगेट बनने के लिए लाखों रुपये देने को तैयार हो जाते हैं.)