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दिल्ली की सियासत के लिए सोनिया गांधी की पहली पसंद बन गईं थी शीला दीक्षित

1998 में जब पहली बार शीला दीक्षित मुख्यमंत्री बनीं तो राजनीतिक गलियारों में माना गया कि कुछ दिन ही वो इस पद पर रह पाएंगी और बाद में दिल्ली के ही किसी दिग्गज नेता को सीएम बनाया जाएगा.

लंबे समय तक शीला दीक्षित ने दिल्ली पर किया राज (फोटो-india Today) लंबे समय तक शीला दीक्षित ने दिल्ली पर किया राज (फोटो-india Today)
कुबूल अहमद
  • नई दिल्ली,
  • 21 जुलाई 2019,
  • अपडेटेड 12:59 PM IST

कांग्रेस की दिग्गज नेता और दिल्ली की तीन बार मुख्यमंत्री रही शीला दीक्षित का 81 साल की उम्र में शनिवार को निधन हो गया है. शीला दीक्षित गांधी परिवार की करीबी नेता मानी जाती थी. यही वजह रही थी कि जब सोनिया गांधी ने 1998 में कांग्रेस की कमान संभाली तो शीला दीक्षित को उन्होंने दिल्ली का प्रदेश अध्यक्ष बनाया. उस वक्त कांग्रेस में कई बड़े नेता थे लेकिन बावजूद इसके सोनिया गांधी की पहली पसंद शीला दीक्षित बनीं.

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बता दें दिल्ली में विधानसभा चुनाव 1993 में हुए और बीजेपी की सरकार बनी. बीजेपी ने पांच साल के कार्यकाल में तीन मुख्यमंत्री बनाने पड़ गए. ऐसे में 1998 के विधानसभा चुनाव से पहले दिल्ली के पंजाबी और ब्राह्मण मतदाताओं को साधने के लिए सोनिया गांधी ने शीला दीक्षित पर दांव लगाया. इसके पीछे वजह ये थी कि शीला मूलत: पंजाबी थी और उनकी शादी ब्राह्मण परिवार में हुई थी.

शीला दीक्षित ने प्रदेश कांग्रेस की कमान संभाली और दिल्ली में संगठन को एक्टिव किया. शीला दीक्षित ने कांग्रेस को बीजेपी की दिल्ली सरकार के विकल्प के तौर पर पेश किया. साथ ही उन्होंने अपने आपको दिल्ली की तत्कालीन मुख्यमंत्री सुषमा स्वराज के विकल्प के तौर पर भी अपने आपको स्थापित किया.

शीला दीक्षित ने उस वक्त की बीजेपी सरकार के खिलाफ जनता के असंतोष को भी आवाज दी और इस तरह से 1998 में बीजेपी को सत्ता से बाहर करके कांग्रेस सत्ता में आ गई. इसके बाद सोनिया गांधी ने दिल्ली के मुख्यमंत्री के लिए शीला दीक्षित के नाम पर मुहर लगाई.

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1998 में जब पहली बार शीला दीक्षित मुख्यमंत्री बनीं तो राजनीतिक गलियारों में माना गया था कि कुछ दिन ही वो इस पद पर रह पाएंगी और बाद में दिल्ली के ही किसी दिग्गज नेता को सीएम बनाया जाएगा. हालांकि कुछ दिन बाद ही उनके  खिलाफ बगावत के सुर भी उठने लगे थे.

कांग्रेस के दिग्गजों में दलित चेहरे के तौर पर चौधरी प्रेम सिंह थे तो जाट नेता सज्जन कुमार की बाहरी दिल्ली में जबरदस्त पकड़ थी. इसी तरह से जगदीश टाइटलर, जयप्रकाश अग्रवाल, सुभाष चोपड़ा, रामबाबू शर्मा का भी अपना-अपना राजनीतिक आधार था. इसी के चलते माना जा रहा था कि दिल्ली के कांग्रेसी दिग्गज शीला दीक्षित के सियासी किले को धराशायी कर उनकी जगह इनमें से कोई ले सकता है.

शीला दीक्षित को सत्ता से बेदखल करने के बगावती सुर भी उठे. कई कांग्रेसी नेता नाराज भी हुए, लेकिन शीला दीक्षित ने अपने राजनीतिक कौशल और राजनीतिक मोर्चे से अलग टीम खड़ी कर अपने खिलाफ उठने वाले सुर को दबा दिया. इसके पीछे कांग्रेस आलाकमान सोनिया गांधी का भरोसा जो उनके साथ था. यही वजह रही कि शीला दीक्षित एक के बाद लगातार तीन बार दिल्ली की मुख्यमंत्री बनीं और कोई उन्हें मात न दे सका.

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