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दिल्ली में कहीं AQI 500 और किसी इलाके में 1000! जानें रीडिंग में क्यों​ दिखता है ये अंतर

कभी-कभी सीपीसीबी जिस स्थान के लिए एक्यूआई लेवल 500 पॉइंट बताता है, उसी स्थान के लिए इंटरनेशनल वेबसाइटें और अन्य AQI मेजरमेंट प्लेटफॉर्म 1000 पॉइंट रिपोर्ट करते हैं, जिससे जनता हतप्रभ रह जाती है. यह अंतर मुख्य रूप से हवा में प्रदूषकों की पहचान करने की तकनीक, डेटा सोर्स और कम्प्यूटेशनल सिस्टम में अंतर से उत्पन्न होता है.

भारत में प्रदूषण की रीडिंग सीपीसीबी करता है, जबकि विदेशी प्लेटफॉर्म अलग सिस्टम से रीडिंग लेते हैं. (PTI Photo) भारत में प्रदूषण की रीडिंग सीपीसीबी करता है, जबकि विदेशी प्लेटफॉर्म अलग सिस्टम से रीडिंग लेते हैं. (PTI Photo)
कुमार कुणाल
  • नई दिल्ली,
  • 20 नवंबर 2024,
  • अपडेटेड 11:01 AM IST

अक्टूबर और नवंबर महीने में दिल्ली अक्सर खुद को प्रदूषण की घनी धुंध में घिरा हुआ पाती है. ये दो महीने दिल्ली में हवा की गुणवत्ता के संबंध में सबसे चुनौतीपूर्ण होते हैं, क्योंकि वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) अक्सर खतरनाक स्तर पर रहता है. हालांकि, अलग-अगल प्लेटफार्मों पर AQI रीडिंग अलग-अगल दिखाए जाने के कारण दिल्लीवासियों और अधिकारियों के बीच भ्रम बढ़ रहा है. 

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विभिन्न एजेंसियों के लिए अलग-अलग पैरामीटर

AQI एक ऐसा टूल है जो जनता को यह समझने में मदद करता है कि वर्तमान में हवा कितनी प्रदूषित है या इसके कितने प्रदूषित होने का अनुमान है. केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) के पैरामीटर में AQI की अधिकतम सीमा 500 पॉइंट है. एक्यूआई के 500 पॉइंट तक पहुंचने का मतलब है कि प्रदूषण का स्तर गंभीर है और लोगों को अपने घरों के अंदर रहने और शारीरिक गतिविधियों को सीमित करने की सलाह दी जाती है.

यह भी पढ़ें: पॉल्यूशन छंट क्यों नहीं रहा... किसने कर रखा है दिल्ली का डिब्बा बंद? खतरनाक स्तर पर AQI

कभी-कभी सीपीसीबी जिस स्थान के लिए एक्यूआई लेवल 500 पॉइंट बताता है, उसी स्थान के लिए इंटरनेशनल वेबसाइटें और अन्य AQI मेजरमेंट प्लेटफॉर्म 1000 पॉइंट रिपोर्ट करते हैं, जिससे जनता हतप्रभ रह जाती है. यह अंतर मुख्य रूप से हवा में प्रदूषकों की पहचान करने की तकनीक, डेटा सोर्स और कम्प्यूटेशनल सिस्टम में अंतर से उत्पन्न होता है. सीपीसीबी जहां अपने डेटा के लिए सरकारी स्वामित्व वाले स्टेशनों की मॉनिटरिंग पर निर्भर है, वहीं विदेशी वेबसाइटें सैटेलाइट इमेजरी, प्राइवेट सेंसर और पूर्वानुमानित मॉडल से डेटा एकीकृत करती हैं.
   
पीएम2.5, पीएम10, कार्बन मोनोऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड और ग्राउंड-लेवल ओजोन जैसे पोल्यूटेंट कंसंट्रेशन मेट्रिक्स में अंतर, प्रत्येक के लिए अलग-अलग वेटेज के साथ मिलकर,  अलग-अलग AQI गणना का कारण बनते हैं. इसके अलावा, विदेशी प्लेटफॉर्म उपरोक्त पोल्यूटेंट के अलावा दूसरे प्रदूषकों का भी मेजरमेंट करते हैं, जो आमतौर पर सीपीसीबी के डेटा कलेक्शन में शामिल नहीं होते हैं, जिससे AQI का आंकड़ा बढ़ जाता है. 

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यह भी पढ़ें: दिल्ली में प्रदूषण का कहर! सरकारी दफ्तरों की टाइमिंग में बदलाव, खतरनाक स्तर पर AQI

AQI और कंसंट्रेशन में कौन अधिक विश्वसनीय?
  
एक्यूआई मेट्रिक्स की इंटरनेशनल पैरामीटर्स से तुलना करते समय उलझन हो सकती है. उदाहरण के लिए, अमेरिका में सांस लेने लायक हवा में PM2.5 की स्वीकार्य मात्रा 15 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर निर्धारित है, जबकि भारत में यह स्तर 60 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर  है. इसी तरह, पीएम10 के लिए अमेरिकी मानक इसे औसतन 45 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर पर सीमित करता है, जबकि भारत में इसे 100 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर पर संतोषजनक माना जाता है. रिसर्च से पता चलता है कि हवा में PM2.5 का स्तर बढ़ने से स्वास्थ्य पर बहुत हानिकारकि प्रभाव पड़ता है. 10 μg/m³ की वृद्धि मृत्यु का कारण बन सकती है. वायु गुणवत्ता निगरानी के लिए AQI स्कोर के साथ सीधे PM2.5 रीडिंग भी दी जानी चाहिए. 

अमेरिकी दूतावास का डेटा सीपीसीबी से बहुत अधिक क्यों था?
नई दिल्ली के चाणक्यपुरी में वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) ने वैश्विक ध्यान आकर्षित किया है क्योंकि अमेरिकी दूतावास की रिपोर्ट में आस-पास के स्टेशनों के CPCB डेटा की तुलना में उल्लेखनीय रूप से उच्च AQI दिखाया गया है. कई अन्य एप्लिकेशन भी अमेरिका द्वारा उपयोग किए जाने वाले समान मानकों का उपयोग करते हुए CPCB से काफी अलग AQI दिखा रहे थे.

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स्विस कंपनी IQAir के ऐसे ही एक डेटा ने सोमवार को 1500 से अधिक के चौंका देने वाले AQI स्तर का संकेत दिया था. यह डेटा पारंपरिक भारतीय वायु गुणवत्ता माप से आगे निकल गया, जो रीडिंग को 500 तक सीमित करता है, जिससे वायु गुणवत्ता मूल्यांकन विधियों और विभिन्न निगरानी प्रणालियों की सटीकता के बारे में सवाल और चिंताएं पैदा होती हैं.

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