
दिल्ली की एक अदालत ने 2020 में हुए दंगों के दौरान एक व्यक्ति को गोली मारने के आरोप में गिरफ्तार दो लोगों को बरी कर दिया. इस मामले में फैसला सुनाते हुए अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अमिताभ रावत ने रूसी लेखक फ्योडोर दोस्तोवस्की की प्रसिद्ध पंक्तियां "क्राइम एंड पनिशमेंट" का हवाला दिया.
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अमिताभ रावत ने कहा, 'सौ खरगोशों से आप एक घोड़ा नहीं बना सकते, सौ संदेह एक प्रमाण नहीं बन सकता है.' इस टिप्पणी के साथ ही कोर्ट ने दोनों आरोपियों को हत्या के प्रयास और शस्त्र अधिनियम के आरोप से बरी कर दिया.
क्या है मामला
बाबू और इमरान पर पिछले साल 25 फरवरी को मौजपुर में हुए दंगों में हिस्सा लेने का आरोप लगाया गया था और दंगों के आरोपों से घिरे इन दोनों पर एक एफआईआर में गोली चलाने का आरोप था. हालांकि, कोर्ट ने पाया कि कथित पीड़ित ने एक फर्जी पता और मोबाइल नंबर दिया था और उसने किसी भी पुलिस अधिकारी को कभी कोई बयान नहीं दिया था.
अपने आदेश में कोर्ट ने कहा, 'जब तक पुलिस अस्पताल पहुंची, कथित पीड़ित राहुल गायब हो गया था, राहुल ने कोई प्रारंभिक बयान दिया और फिर गायब हो गया, पुलिस ने राहुल को कभी नहीं देखा. किसके द्वारा और कहां गोली मारी गई? इसका कोई सबूत नहीं है. गोली चलने को लेकर भी कोई सबूत नहीं मिला है.'
कोर्ट ने कहा, ' इस मामले में पुलिस के पास सबूत के रूप में कॉन्स्टेबल पुष्कर हैं, लेकिन उसने भी गोली चलाने या गोली लगने वाले को नहीं देखा है. अभियोजन पक्ष ने तर्क दिया कि दोनों दंगाई भीड़ का हिस्सा थे और संदेह है कि दोनों फायरिंग के लिए जम्मेदार थे. चार्जशीट में हत्या के प्रयास या आर्म्स एक्ट के कोई सबूत नहीं दिए गए हैं.'
अदालत ने बाबू और इमरान को धारा 307 (हत्या का प्रयास) और शस्त्र अधिनियम के तहत अवैध हथियार रखने के आरोप से बरी कर दिया, लेकिन दंगा के आरोपों के लिए दोनों को मुकदमे का सामना करना पड़ेगा.