Advertisement

कोर्ट में इंटरनेट कनेक्टिविटी को लेकर याचिका, सरकार-MTNL को दिया गया ये निर्देश

कोर्ट में इंटरनेट कनेक्टिविटी को बेहतर करने के लिए लगाई गई एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली सरकार और एमटीएनएल को इस मामले में याचिकाकर्ता द्वारा दिए गए सुझावों पर विचार करने के निर्देश दिए है.

सांकेतिक तस्वीर सांकेतिक तस्वीर
पूनम शर्मा
  • नई दिल्ली,
  • 14 अक्टूबर 2020,
  • अपडेटेड 1:59 PM IST
  • वकील सत्यनारायण शर्मा ने लगाई याचिका
  • कोर्ट परिसर में ऑप्टिकल फाइबर डालने की मांग

दिल्ली की जिला अदालतों समेत दिल्ली हाईकोर्ट में इंटरनेट कनेक्टिविटी को बेहतर करने के लिए लगाई गई एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली सरकार और एमटीएनएल को इस मामले में याचिकाकर्ता द्वारा दिए गए सुझावों पर विचार करने के निर्देश दिए है.

इस याचिका में खासतौर से इस बात का जिक्र किया गया है कि मार्च में हुए लॉकडाउन के बाद लगातार कोरोना के मामले सामने आने के कारण अधिकतर मामलों की सुनवाई कोर्ट में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए ही हो रही है, लेकिन अक्सर सुनवाई के दौरान इंटरनेट कनेक्टिविटी के खराब होने के कारण कई बार महत्वपूर्ण मामलों की सुनवाई को भी टालना पड़ जाता है. 

Advertisement

ऐसे में दिल्ली की सभी जिला अदालतों और दिल्ली हाईकोर्ट में इंटरनेट कनेक्टिविटी की समस्या को हल करने के लिए ऑप्टिकल फाइबर लाइन कोर्ट कॉम्प्लेक्स में डलवाई जाए. 

देखें: आजतक LIVE TV

याचिका लगाने वाले वकील सत्यनारायण शर्मा ने वकीलों की समस्याओं को रखते हुए कोर्ट को बताया कि 70 फीसदी जिला अदालतों के वकील अपने चैंबर में ही बैठकर वर्चुअल सुनवाई में हिस्सा ले रहे हैं, लेकिन वीडियो कनेक्टिविटी के खराब होने के कारण कभी वीडियो तो कभी ऑडियो डिसकनेक्ट हो जाती है. कई बार इससे कोर्ट का बहुमूल्य समय भी नष्ट हो जाता है. 

याचिकाकर्ता ने आजतक से बातचीत करते हुए बताया कि विदेशों में वर्चुअल सुनवाई के लिए इंटरनेट की स्पीड 500mbps रखी गयी है,जबकि हमारे यहां पर यह स्पीड 100mbps ही है. फिलहाल दिल्ली के किसी भी कोर्ट मे साइबर लाइन नहीं डली हुई है. 

Advertisement

याचिकाकर्ता ने बताया कि ज्यादातर कोर्ट परिसर के बाहर ऑप्टीकल फाइबर लाइन डाली हुई है,लेकिन यह लाइन कोर्ट परिसर के अंदर तभी डाली जा सकती है जब तक कोर्ट की बिल्डिंग मेंटीनेंस कमेटी इसकी इजाजत कंपनियों को नहीं देंगी, तब तक ऑप्टिकल फाइबर लाइन कोर्ट रूम और वकीलों के चैंबर तक नहीं डाली जा सकती है.

याचिकाकर्ता का तर्क था कि ऑप्टिकल फाइबर लाइन कोर्ट परिसर में अंदर तक डालने के लिए सरकार या कोर्ट को इसमें अपना पैसा भी खर्च करने की जरूरत नहीं पड़ेगी. क्योंकि टेलीकॉम कंपनियां अपने नेटवर्क को और बड़ा करने के लिए यह सब कुछ अपने खर्चे पर ही करने को तैयार हो जाएंगी. 

याचिकाकर्ता का कहना है कि अगर कोरोना के बढ़ते मामलों के चलते दोबारा कभी लॉकडाउन जैसी स्थिति का सामना करना पड़ता है तो भी इंटरनेट कनेक्टिविटी बेहतर होने के कारण इसका असर न्यायिक प्रक्रिया पर नहीं पड़ेगा और सुचारू रूप से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से मामलों की सुनवाई कोर्ट में होती रहेगी.

 

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement