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दिल्ली में पेड़ काटने से पर्यावरण को होगा भारी नुकसान, भरपाई में लगेंगे 20-30 साल

बहरहाल मामला हाईकोर्ट में जाने से और हाईकोर्ट की ओर से स्टे लगाए जाने से दिल्ली वालों को बड़ी राहत मिली है, लेकिन एक सवाल फिर से पैदा हो रहा है कि क्या पेड़ काटना बेहद जरूरी है, क्या बगैर पेड़ काटे परिसर नहीं बनाए जा सकते और क्या इन काटे गए पेड़ों के बदले जो पेड़ लगाए जाएंगे, वे पर्यावरण के नुकसान की भरपाई कर पाएंगे.

सांकेतिक तस्वीर सांकेतिक तस्वीर
अंकित यादव
  • नई दिल्ली,
  • 25 जून 2018,
  • अपडेटेड 11:27 PM IST

दिल्ली में आवासीय योजना के लिए हजारों पेड़ काटने की योजना बनाई गई थी, सालों पुराने पेड़ काटने से दिल्ली के पर्यावरण को भारी नुकसान होगा, विशेषज्ञ कहते हैं कि पुराने वृक्षों को काटने की भरपाई में कई साल लग जाएंगे.

जैसे ही यह खबर दिल्ली में लोगों तक पहुंची कि दिल्ली में आवासीय परिसर बनाने के लिए हजारों पेड़ काट दिए जाएंगे तो दिल्ली वाले परेशान हो उठे, वो सड़क पर उतर आए और लगातार विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया, यहां तक कि पेड़ों से 'चिपको आंदोलन' भी चलाया जा रहा है जिसमें बच्चे, महिलाएं या फिर संस्थाएं हर कोई अपना समर्थन दे रहा है.

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बहरहाल मामला हाईकोर्ट में जाने से और हाईकोर्ट की ओर से स्टे लगाए जाने से दिल्ली वालों को बड़ी राहत मिली है, लेकिन एक सवाल फिर से पैदा हो रहा है कि क्या पेड़ काटना बेहद जरूरी है, क्या बगैर पेड़ काटे परिसर नहीं बनाए जा सकते और क्या इन काटे गए पेड़ों के बदले जो पेड़ लगाए जाएंगे, वे पर्यावरण के नुकसान की भरपाई कर पाएंगे.

इन सवालों का जवाब जानने के लिए आज तक पहुंच दिल्ली में इन सभी मामलों के एक्सपर्ट्स के पास.

20 से 30 साल लगेंगे भरपाई मेंः विशेषज्ञ

दिल्ली के स्कूल ऑफ प्लानिंग एंड आर्किटेक्चर सीनियर प्रोफेसर डॉक्टर सेवाराम कहते हैं, 'यह सच है कि डेवलपमेंट के लिए कई बार पेड़ काटे जाते हैं, लेकिन सबसे पहले यह देखना होगा कि क्या इसके बगैर कोई दूसरा रास्ता नहीं निकल रहा.'

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उन्होंने कहा, 'जिन पेड़ों को काटा जा रहा है, वह 20 से 30 साल पुराने हैं और कई पेड़ तो 50 साल से भी ज्यादा पुराने हैं, ऐसे में भले ही उनके बदले नए पेड़ लगा दिए जाएं लेकिन जितना पर्यावरण को योगदान वे पुराने पेड़ देते थे, नए पेड़ों को देने में इतना वक्त लगेगा.'

डॉक्टर सेवाराम कहते हैं कि पुराने पेड़ों की वजह से एक पर्यावरण चक्र बना हुआ है, ऐसे में नए पेड़ उस चक्र को बनाने में 20 से 30 वर्ष का वक्त लेंगे.

वर्टिकल डेवलपमेंट एकमात्र रास्ता नहीं

टाउन प्लानर और सीनियर प्रोफेसर डॉक्टर सेवाराम कहते हैं कि भले ही सरकार यह तर्क देती हो कि वर्टिकल डेवलपमेंट से कम जगह में ज्यादा लोगों को रहने की जगह मिल जाएगी, लेकिन सरकार को यह सोचना चाहिए कि वर्टिकल डेवलपमेंट के साथ-साथ उतनी ही जगह हरियाली के लिए भी छोड़नी होती है क्योंकि दिल्ली के कई इलाकों में जब री डेवलपमेंट प्लान लागू हुआ तब ढांचे तो बहुत बड़े-बड़े तैयार कर लिए गए लेकिन हरियाली को नजरअंदाज कर दिया गया और जिसका असर अब हम दिल्ली वाले भुगत रहे हैं.

पहले से ही मिल रही प्रदूषित हवा

पहले से ही दिल्ली वालों को प्रदूषित हवा मिल रही है. दिल्ली में प्रदूषण का स्तर हमेशा ही सामान्य से कई गुना अधिक रहता है. हवाओं में पीएम 2.5 और पीएम 10 दोनों ही अपनी तय सीमा से कहीं अधिक घूम रहे होते हैं, जो आम लोगों के स्वास्थ्य के साथ नुकसान पहुंचाते हैं.

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ऐसे में जहां दिल्ली को और अधिक हरियाली की जरूरत है तो वहीं पेड़ काटने जैसे कदम उठाने से रोकना बेहद जरूरी हो गया है. एक्सपर्ट मानते हैं कि दिल्ली वालों को पहले से ही स्वच्छता नहीं मिल रही है ऐसे में ऐसे फैसले दिल्ली वालों के साथ मजाक ही है.

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