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सुप्रीम कोर्ट ने गिरफ्तारी के खिलाफ AAP नेता संजय सिंह की याचिका पर ED से मांगा जवाब

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को जांच एजेंसी प्रवर्तन निदेशालय (ED) द्वारा उनकी गिरफ्तारी और उसके बाद रिमांड के खिलाफ आम आदमी पार्टी नेता संजय सिंह की याचिका पर प्रवर्तन निदेशालय से जवाब मांगा. सिंह ने उनकी याचिका खारिज करने के दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती दी है.

संजय सिंह-फाइल फोटो संजय सिंह-फाइल फोटो
सृष्टि ओझा
  • नई दिल्ली,
  • 20 नवंबर 2023,
  • अपडेटेड 7:26 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को जांच एजेंसी प्रवर्तन निदेशालय (ED) द्वारा उनकी गिरफ्तारी और उसके बाद रिमांड के खिलाफ आम आदमी पार्टी नेता संजय सिंह की याचिका पर प्रवर्तन निदेशालय से जवाब मांगा. सिंह ने उनकी याचिका खारिज करने के दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती दी है. शुरुआत में अदालत ने पूछा कि सिंह ने निचली अदालत में जमानत के लिए याचिका क्यों नहीं दायर की.

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वरिष्ठ अधिवक्ता एएम सिंघवी ने अदालत को बताया कि सिंह के मामले में पीएमएलए अधिनियम की धारा 19 और ईडी को गिरफ्तारी के कारण बताने से संबंधित प्रश्न शामिल हैं. सिंघवी ने कहा, 'यह सबसे गंभीर मामला है. उन्हें गिरफ्तारी का कारण बताना होगा. जिम्मेदारी उन पर है.' 

जस्टिस खन्ना ने कहा, हाई कोर्ट के निष्कर्ष के अनुसार आपको गिरफ्तारी के आधार के 6 पृष्ठ दिए गए थे. आपने जमानत याचिका क्यों नहीं दायर की, मैं समझ नहीं पा रहा हूं. अदालत ने सुझाव दिया कि वह नोटिस जारी करेगी और सिंह को नियमित जमानत के लिए भी आवेदन दायर करने के लिए कहेगी. न्यायमूर्ति खन्ना ने कहा, इसके 2 पहलू हैं. मुझे नहीं लगता कि जमानत याचिका आपको यहां आने के अधिकार से वंचित कर देगी. 

हालांकि सिंघवी ने कहा कि इसका गलत मतलब निकाला जा सकता है और जमानत याचिका हमेशा सुप्रीम कोर्ट के समक्ष सुनवाई के बाद हो सकती है. सिंघवी ने कहा, इस स्तर पर जमानत ही एकमात्र उचित उपाय नहीं है. यह गिरफ्तारी की शक्ति का दुरुपयोग है.

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इस बीच अदालत ने सिंह को कहा कि यदि सलाह दी जाए तो वह नियमित जमानत याचिका भी दायर कर सकते हैं. यदि दायर किया गया है तो हाई कोर्ट के फैसले से प्रभावित हुए बिना योग्यता के आधार पर विचार किया जाएगा. सिंह ने दिल्ली उच्च न्यायालय के उस आदेश को चुनौती दी है जिसने उनकी याचिका खारिज कर दी थी, जिसमें कहा गया था कि आरोपियों के अधिकारों और राज्य के हितों को संतुलित करना उसकी जिम्मेदारी है. उच्च न्यायालय ने कहा कि अदालत सभी मामलों को कानून के चश्मे से देखती है और राजनीतिक संबद्धता या पूर्वाग्रह से प्रभावित नहीं होती है.

उच्च न्यायालय ने कहा था कि वह इस मामले को बिल्कुल भी बिना सबूत वाला नहीं मानता है. इसके अलावा, मामला अभी शुरुआती चरण में है और अदालत को इसमें हस्तक्षेप करने का कोई आधार नहीं मिला है. अदालत ने कहा कि हालांकि वह व्यक्तियों की गरिमा की रक्षा के प्रति उदासीन नहीं है, लेकिन न्यायिक प्रतिबद्धता जांच को रद्द करने तक सीमित नहीं हो सकती है.

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