
दिल्ली सरकार के लिए काम कर रहे तीन आईएएस अधिकारियों की याचिका पर दिल्ली हाईकोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है. कोर्ट ने कहा कि कोर्ट के आदेश आने तक दिल्ली विधानसभा द्वारा अधिकारियों के खिलाफ कोई कड़ी कार्रवाई ना की जाए. दिल्ली सरकार में अपनी सेवाएं दे रहे तीन आईएएस अफसरों ने दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका लगाकर कोर्ट से गुहार लगाई है कि विधानसभा के स्पीकर उनके खिलाफ कोई कड़ी कार्रवाई ना करें.
दरअसल, दिल्ली सरकार की तरफ से इन अधिकारियों से लिखित में कुछ सवालों के जवाब मांगे गए थे, लेकिन जब यह जवाब अधिकारियों की ओर से नहीं दिए गए तो 7 जून को विधानसभा स्पीकर राम नरेश गोयल ने इन सभी को 11 जून को विधानसभा की गैलरी में पेश होने का आदेश जारी कर दिया. दिल्ली सरकार के 3 आईएएस अधिकारियों की याचिका पर सुनवाई के दौरान अधिकारियों के वकील ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट में पहले ही ये याचिका लंबित है कि अधिकारी दिल्ली सरकार का आदेश मानें या फिर एलजी का. बता दें कि फिलहाल ये पावर एलजी के पास है.
खासतौर से जब जमीन, कानून व्यवस्था और सर्विस से जुड़े मुद्दे हों तो दिल्ली सरकार के मंत्रियों के आदेश पर तब तक अमल नहीं किया जा सकता जब तक कि इसका अप्रूवल एलजी से न मिला हो. अधिकारियों की तरफ से पेश हुए अमन लेखी ने कहा कि विधानसभा के पास इस तरह की कोई प्रिविलेज ही नहीं है कि वो विधानसभा गैलरी में किसी अधिकारी को बुलाएं. विधानसभा स्पीकर का काम विधानसभा को चलाना होता है. दिल्ली एक्ट अधिकारियों को प्रोटेक्शन देता है जिससे उनके काम में नेता कोई राजनीतिक दबाव नहीं डाल सकता.
अमन लेखी ने कहा कि अगर विधानसभा स्पीकर या फिर सरकार के मंत्री किसी अधिकारी से नाराज हैं तो आज विधानसभा गैलरी में बुलाया है. कल कोर्ट में आने को बोल सकते हैं, लेकिन उनकी इच्छा क्या उन्हें कानूनी रूप से इसकी इजाजत देती है? सुनवाई के दौरान कहा गया कि जब सरकार के पास अधिकारियों को विधानसभा गैलरी में बुलाने का कोई कानूनी और संवैधानिक अधिकार ही नहीं है तो फिर अधिकारी भी आम नागरिक हैं और वो अपना फैसला लेने के लिए स्वतंत्र हैं कि वो जाएं या ना जाएं.
दिल्ली सरकार के वकील ने कहा कि अंशु प्रकाश से मारपीट के मामले से पहले जिन सवालों के जवाब अधिकारियों से दिल्ली सरकार को मिलते थे, उन्ही मुद्दों पर अब अधिकारियों ने जवाब देने बंद कर दिए हैं. लोगों के चुने हुए प्रतिनिधियों और विधानसभा को जनता से जुड़े सवालों के जवाब मिलने चाहिए, ये उनका अधिकार है.