
दिल्ली एक बार फिर प्रदूषण की चपेट में है और प्रदूषण के लिए ज़िम्मेदार पीएम 2.5 और पीएम 10 खतरनाक स्तर पर पहुंच गए हैं. ऐसे में सवाल है कि आखिर दिल्ली के प्रदूषण का समाधान क्या है. क्योंकि सरकार जो एक्शन प्लान बनाती है, वो फाइलों से बाहर नहीं निकल पाता. ऐसे में ज़रूरी है कि प्रदूषण के जो भी कारण हैं, उनके समाधान की दिशा में काम किया जाए.
दिल्ली में प्रदूषण की एक बड़ी वजह हरियाणा और पंजाब के खेतों में जलने वाली पराली है. हर साल पराली नहीं जलाने की अपील होती है, लेकिन कोई असर नहीं होता. क्योंकि किसानों के पास पराली को हटाने का कोई आसान और सस्ता तरीका नहीं है. साथ ही सरकार के पास भी कोई ठोस तरीका नहीं है, जो किसानों को मुहैया करा सकें.
इस समस्या से निपटने के लिए दिल्ली सरकार साउथ कोरिया से सबक सीख सकती है. साउथ कोरिया की राजधानी सीओल भी प्रदूषण के चपेट में आता है. हालांकि यहां प्रदूषण की वजह चीन से आने वाली यैलो डस्ट होती है. ऐसे में साउथ कोरिया की सरकार प्रदूषण से निपटने के लिए टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल ज्यादा करती है. कोरिया ने अपने शहरों में ही पैदा होने वाले प्रदूषण को जड़ से खत्म करने का प्लान बहुत पहले बना लिया था.
जब हमारी टीम साउथ कोरिया के अलग-अलग इलाकों में पहुंची, तो खेतों में रखे सफेद ब्लॉक जगह-जगह नज़र आए. दरअसल खेतों में फसल काटे जाने के बाद जो अवशेष बचता है, उसे मशीन के जरिए एक ढेर में बदल दिया जाता है और फिर कम्प्रेस करके एक सफेद ब्लॉक की शक्ल में पैक कर दिया जाता है. इससे फसल के बचे हुए हिस्से का आकार कम हो जाता है और इसे ट्रांसपोर्ट करके खेतों से हटाना आसान होता है. यही नहीं इन ब्लाक्स को प्रोसेसिंग यूनिट में ले जाकर इससे जानवारों के लिए चारा बनाया जाता है. इसके बाद भी अगर पराली बचती है तो उसका इस्तेमाल प्लाईवुड इंडस्ट्री और गत्ते बनाने वाली फैक्ट्रियों के लिए कच्चे माल के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है.
खेतों में काम कर रहे एक किसान के मुताबिक ये पूरा काम मशीनों के ज़रिए होता है. अगर ऐसा न किया जाए तो खेतों से इस बचे हुए अवशेष को हटाना मुश्किल होता है. ज़ाहिर है टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल से पंजाब हरियाणा के खेतों में जमा होने वाली पराली को भी जानवरों के चारे के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है, बल्कि प्रोसेसिंग के जरिए इसे दूसरी संबंधित इंडस्ट्री के लिए कच्चे माल के तौर पर भी इस्तेमाल किया जा सकता है. लेकिन इसके लिए पहल सरकार को करनी होगी, साथ ही टेक्नोलॉजी विकसित करने के सथ ही किसानों में जागरुकता लानी भी ज़रूरी है.