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समान नागरिक संहिता पर केंद्र सरकार को दिल्ली हाईकोर्ट का नोटिस, मांगा जवाब

याचिका में कहा गया है देश में आपसी एकजुटता, भाईचारा और राष्ट्रीय अखंडता को बढावा देने के लिए समान नागरिक संहिता लागू करना जरूरी है.

समान नागरिक संहिता पर दिल्ली हाईकोर्ट का नोटिस समान नागरिक संहिता पर दिल्ली हाईकोर्ट का नोटिस
पूनम शर्मा
  • नई दिल्ली,
  • 31 मई 2019,
  • अपडेटेड 3:02 PM IST

समान नागरिक संहिता यानी यूनिफॉर्म सिविल कोड को लागू करने की मांग को लेकर लगाई गई जनहित याचिका पर दिल्ली हाईकोर्ट ने गृह मंत्रालय और कानून मंत्रालय को नोटिस जारी किया है. केंद्र सरकार को इस याचिका पर 8 जुलाई को होने वाली अगली सुनवाई से पहले नोटिस पर अपना जवाब कोर्ट को देना होगा. दिलचस्प यह भी है कि यह याचिका बीजेपी से जुड़े नेता और पेशे से वकील अश्वनी उपाध्याय की तरफ से लगाई गई है.

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याचिका में कहा गया है देश में आपसी एकजुटता, भाईचारा और राष्ट्रीय अखंडता को बढावा देने के लिए समान नागरिक संहिता लागू करना जरूरी है. याचिकाकर्ता का कहना है कि संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 44 में समान नागरिक आचार संहिता लागू करने की बात कही गई है लेकिन सरकार ने उसे अभी तक नहीं बनाया है. उन्होंने कोर्ट से गुहार लगाई है कि वो केंद्र सरकार को निर्देश दे कि देश के नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता बनाई जाए जिसमें सभी धर्म, जाति व संप्रदाय के लोगों को बराबरी का दर्जा दिया जाए और जो समान रूप से सब पर लागू हो.

अर्जी में यह भी सुझाया गया है कि सरकार उसे विभिन्न समुदायों के शास्त्र और रीति-रिवाजों पर आधारित बने पर्सनल लॉ के ऊपर लागू करे. यानी कि किसी भी धर्म के रीति रिवाज पर्सनल लॉ के आधार पर नहीं बल्कि समान नागरिक संहिता के आधार पर लागू हो. याचिकाकर्ता ने इसे बनाए जाने को लेकर तीन महीने के भीतर एक न्यायिक आयोग या उच्च स्तरीय कमेटी गठित करने की मांग भी की है.

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अश्वनी उपाध्याय ने कोर्ट में लगाई गई अपनी जनहित याचिका में यह भी सुझाव दिया है कि उस कमेटी की जिम्मेवारी होगी कि वो देश व विकसित देशों के विभिन्न धर्म, जाति, पंथ व संप्रदायों के बेहतर धार्मिक व सामाजिक नियम-कानून के साथ-साथ अंतर्राष्ट्रीय परंपराओं को ध्यान में रखकर समान नागरिक आचार संहिता इसके बाद सरकार उसे पूरे देश में लागू करें. याचिकाकर्ता में बताया गया है कि देश में एक गोवा ही राज्य है जहां वर्ष 1965 से समान नागरिक संहिता लागू है. यह नियम वहां के सभी नागरिकों पर भी लागू होता है. इससे संविधान की भावना लागू हो सकेगी.

इसमें कोई दो राय नहीं कि समान संहिता लागू करने का मुद्दा बेहद संवेदनशील है और इसको लेकर सरकार और विपक्ष के बीच में पहले से ही तलवारें खींची हुई है. ऐसे में हाई कोर्ट में लगाई गई इस अर्जी पर केंद्र सरकार का क्या जवाब आता है यह देखना बेहद अहम होगा.

यूनिफॉर्म सिविल कोड का जिक्र भारतीय संविधान के भाग 4 के अनुच्छेद 44 में हैं. इसमें कहा गया है कि यूनिफॉर्म सिविल कोड कानून लागू करना ही हमारा लक्ष्य होगा.

सुप्रीम कोर्ट भी कई बार इसे लागू करने की दिशा में केन्द्र सरकार के विचार जानने की पहल कर चुका है. इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से कई बार कहा है कि देश में अलग अलग पर्सनल लॉ की वजह से भ्रम की स्थिति बनी रहती है. सरकार चाहे तो एक जैसा कानून बनाकर इसे दूर कर सकती है.

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भारत में अधिकांश पर्सनल लॉ धर्म के आधार पर तय किए गए हैं. हिन्दू, सिख, जैन और बौद्ध हिन्दू विधि के अंतर्गत आते हैं. वहीं मुस्लिम और ईसाई धर्म के अपने कानून हैं. मुस्लिमों के कानून शरीयत पर आधारित है. अन्य धार्मिक समुदाओं के कानून भारतीय संसद के संविधान पर ही आधारित हैं.

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