
दिल्ली के उपहार सिनेमा त्रासदी पर आधारित नेटफ्लिक्स की ओटीटी वेब सीरीज 'ट्रायल बाय फायर' की रिलीज पर रोक लगाने की अर्जी पर दिल्ली हाईकोर्ट में सुनवाई हुई. उपहार सिनेमा के मालिक और उस अग्निकांड में सजा याफ्ता सुशील अंसल की तरफ से पेश हुए वकील सिद्धार्थ अग्रवाल ने कहा कि 1997 की उस घटना में 59 लोगों की मौत हो गई थी. इसके अलावा 100 से ज्यादा लोग घायल हुए थे. उसमें सुशील अंसल को सज़ा हुई थी. उसे जेल भी जाना पड़ा था. सजा के आदेश को भी चुनौती दी गई है, जिस पर सुनवाई लंबित है.
अंसल के वकील ने कहा कि कोर्ट किताब के उस भाग को भी देखे जिस पर फ़िल्म बनाई गई है. हाई कोर्ट ने कहा कि 2015 में किताब पब्लिश हुई थी और अब आप राहत की मांग कर रहे हैं? हाई कोर्ट ने टिप्पणी की कि यह कोर्ट के आदेश की आलोचना हो सकती है, लेकिन यह मानहानि का दावा नहीं हो सकता. अंसल के वकील ने कहा कि वेब सीरीज़ में मेरे ऊपर सामूहिक हत्या और हत्या करने का आरोप लगाया गया है. साथ ही ये भी दिखाया गया है कि इसके लिए मैंने कभी माफी भी नहीं मांगी, जबकि सच्चाई इससे काफी अलग है. इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में मैंने माफी भी मांगी थी.
अंसल ने कहा प्रथम दृष्टया सीरीज में मेरे किरदार का गलत चित्रण किया गया है. नेटफ्लिक्स के वकील ने कहा कि पूरी वेब सीरीज़ 2016 में आई किताब के ऊपर आधारित है. सभी चीज़ पब्लिक डोमेन में हैं. 19 सितंबर 2016 को किताब रिलीज़ हुई थी, 18 दिसंबर 2020 को फ़िल्म बनाने की घोषणा हुई. 8 नवंबर 2021 को मामले में सज़ा का एलान हुआ. अंसल की 7 साल की सज़ा और 225 करोड़ का जुर्माना भरने का आदेश दिया गया था.
4 जनवरी को जारी हुआ था ट्रेलर
नेटफ्लिक्स के वकील ने कहा कि 14 दिसंबर 2022 को हमने घोषणा की थी कि 13 जनवरी 2023 को वेब सीरीज़ रिलीज़ की जाएगी, लेकिन रिलीज़ से पहले अंतिम समय में इस पर रोक लगाने की मांग को लेकर याचिका दाखिल की गई है. नेटफ्लिक्स के वकील ने कहा कि 4 जनवरी को ट्रेलर जारी किया गया. उसके बाद भी अंसल ने इस बाबत कोर्ट का रुख नहीं किया. 10 जनवरी को कोर्ट में याचिका दाखिल की गई है. दिल्ली हाईकोर्ट ने सभी पक्षकारों की सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया है.
साल 2016 से बाजार में है किताब
सुनवाई के दौरान प्रकाशक पेंगुइन ने कहा कि किताब तो 2016 में ही बाजारों में आ गई थी. लेखकों को अपने विचार रखने की पूरी छूट है. इससे कोई भी उनको नहीं रोक सकता. नेटफ्लिक्स ने कहा कि पहले 2016 में किताब का प्रकाशन और फिर 2019 में फिल्म निर्माण की घोषणा और 2020 में फिल्माना शुरू कर दिया था. फिल्म वाली सीरीज बन गई. फिर हमने पिछले साल दिसंबर में टीजर भी रिलीज किया था, लेकिन अंसल रिलीज से तीन दिन पहले अदालत पहुंचते हैं. इनकी मंशा शुरू से यही थी कि हम फिल्म निर्माण में पैसा लगा दें, फिर ये आखिरी लम्हे में रिलीज से ऐन पहले अदालत जाकर हमारा प्लान चौपट कर दें.
हाई कोर्ट ने सुरक्षित रखा फैसला
अंसल ने दलील दी कि वेब सीरीज की शुरुआत में ये घोषणा की गई है कि ये काल्पनिक कथा है तो इसमें मेरे नाम का चरित्र दिखाना मेरी निजता का हनन है. एकल जज पीठ के जस्टिस यशवंत वर्मा ने सवाल पूछा कि इन्होंने ये कब कहा कि ये फिल्म पब्लिक रिकॉर्ड पर आधारित है? फिर अंसल ने दलील रखी कि किताब में अदालती सबूतों से छेड़छाड़ को भी विस्तार से लिखा गया है, जबकि ये 25 साल पुराना मामला है. कोर्ट इस किताब और इस पर आधारित फिल्मी वेब सीरीज पर रोक लगाए. कोर्ट ने सुनवाई पूरी करते हुए फैसला सुरक्षित रख लिया.