
बंदरों और आवारा कुत्तों की बढ़ती संख्या पर दिल्ली हाईकोर्ट ने सख्ती भरा रुख अपनाते हुए केंद्र सरकार को फटकार लगाई है. एक याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने गुरुवार को कहा कि क्या हमें बंदरों से कहना चाहिए कि जब तक सरकार उनकी नसबंदी का तरीका नहीं ढूंढ लेती तब तक वे प्रजनन न करें और लोगों को काटना बंद कर दें.
दरअसल, मामले की सुनवाई के दौरान जब सरकार के वकील ने बताया कि नसबंदी के लिए यूएस से इम्यून- कॉन्ट्रासेप्शन वैक्सीन तो आयात कर ली गई है. लेकिन अभी उसके ट्रायल की मंजूरी लेनी बाकी है और बिना मंजूरी मिले उसे इस्तेमाल नहीं किया जा सकता.
दिल्ली हाईकोर्ट को बताया गया कि आयात की गई वैक्सीन का इस्तेमाल मुख्य रूप से घोड़ों की नसबंदी के लिए किया जाता था लेकिन देश में कहीं पर भी इसका इस्तेमाल बंदरों पर नहीं अभी तक नहीं किया गया है.
इस पर कोर्ट ने नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि यह मुद्दा साल 2011 से कोर्ट में चल रहा है और केंद्र सरकार अभी तक नसबंदी का लागू करने का तरीका विकसित नहीं कर पाई है.
कोर्ट ने इस काम के लिए गठित की गई कमेटी को तुंरत मीटिंग करने और इस समस्या पर काम करने के लिए टाइमलाइन तय करने का निर्देश दिया है.
कोर्ट ने कहा कि एनजीओ वाइल्डलाइफ एसओएस और वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (डब्ल्यूआईआई) का एक-एक सदस्य इस पैनल का हिस्सा होगा, जो बंदरों की नसबंदी के लिए एक प्रस्तावित प्रोजेक्ट तैयार करके जल्द से जल्द इसे केंद्र के पास भेजेंगे.
डब्ल्यूआईआई का काम ये सुनिश्चित करना होगा कि इसके लिए तीन दिनों के भीतर सभी जरूरी मंजूरी हासिल कर ली जाएं. फिर केंद्र इन आवेदनों पर चार हफ्तों के भीतर अपनी प्रक्रिया पूरी कर करें. कोर्ट अब मामले में अगली सुनवाई 31 मई को करेगा.