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दिल्ली के सरकारी स्कूलों में एक्स्ट्रा क्लासरूम बनाए जाने पर अब सवालिया निशान लगने शुरू हो गए हैं. वहीं इसे लेकर दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल एक बार फिर आमने-सामने आ सकते हैं. सतर्कता विभाग ने अपनी एक रिपोर्ट में इन क्लासरूम के निर्माण में कई अनियमिताएं होने की बात कही थी, अब इसी रिपोर्ट के आधार पर एलजी ने मुख्य सचिव से भी एक रिपोर्ट मांगी है.
सतर्कता विभाग ने 17 फरवरी 2022 को अपनी रिपोर्ट में कहा था कि एक्स्ट्रा क्लासरूम बनाने की इन परियोजनाओं में कई अनियमिताएं की गई हैं. वहीं कई प्रोसीजरल चूक भी की गईं. विभाग ने इस मामले में आगे और जांच करने की सिफारिश की थी, लेकिन इस मामले में करीब 2.5 साल की देरी हो चुकी है, ऐसे में अब दिल्ली के उपराज्यपाल विनय कुमार सक्सेना ने इस पूरे मामले पर चीफ सेक्रेटरी से एक रिपोर्ट मांगी है.
एलजी ने कार्रवाई में देरी पर उठाए सवाल
सतर्कता विभाग की रिपोर्ट पर आगे कार्रवाई करने में लापरवाही पर एलजी ने चिंता व्यक्त की है, साथ ही देरी को मामले की लीपापोती करने का प्रयास करार दिया. मामले की लीपापोती करप्शन की ओर इंगित करती है, जबकि इसमें CVC मैनुअल के भी कई प्रावधानों का उल्लंघन हुआ है.
उपराज्यपाल के सचिवालय को सतर्कता विभाग की ओर से एक शिकायत मिली थी. इसमें CVC की ओर से किए गए संवाद की भी एक कॉपी शामिल रही.
सतर्कता विभाग की रिपोर्ट में हैं ये आरोप
सतर्कता विभाग ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि CVC को 25 जुलाई 2019 को दिल्ली के सरकारी स्कूलों में अतिरिक्त क्लासरूम बनाने में अनियमिताओं और लागत से अधिक खर्च की शिकायत मिली थी. निर्माण की लागत में 90% तक का इजाफा हुआ, जबकि इसके लिए अलग से कोई टेंडर नहीं निकाला गया. दिल्ली सरकार ने बिना किसी टेंडर के लागत बढ़ने के नाम पर 500 करोड़ रुपये तक आवंटित कर दिए. क्लासरूम के कंस्ट्रक्शंस को क्लासरूम के बराबर का दर्जा दे दिया गया. GFR और CPWD के वर्क मैनुअल का खुला उल्लंघन हुआ. निर्माण की क्वालिटी खराब रही, जबकि कई जगह काम भी अधूरा रहा. सीवीसी ने अपनी 17 फरवरी 2020 वाली रिपोर्ट में ये सारी बातें कही.
लागत बढ़ी, बने कम क्लासरूम
रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि इन क्लासरूम की लागत में 326.25 करोड़ रुपये तक की बढ़ोतरी हुई. ये टेंडर में बताई गई लागत से 53% अधिक है. बढ़ी लागत के हिसाब से कुल 6133 क्लासरूम तैयार किए जाने थे, लेकिन सिर्फ 4027 क्लासरूम ही तैयार किए गए. ये क्लासरूम 194 स्कूलों की जगह 141 स्कूलों में ही तैयार हुए. इतना ही नहीं 194 स्कूलों में 1214 टॉयलेट बनाए गए, जबकि जरूरत सिर्फ 160 की थी. इस पर 37 करोड़ रुपये अलग से खर्च किए गए. एक क्लासरूम की अनुमानित लागत 33 लाख रुपये रखी गई. पीडब्ल्यूडी ने 29 रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम बनाए जाने का दावा किया जबकि निरीक्षण के दौरान केवल दो रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम पाए गए.