Advertisement

दिल्ली: बीजेपी-AAP के घमासान में नए मेयर को होगा नुकसान, महज 60 दिन के लिए ही मिलेगी कुर्सी

दिल्ली नगर निगम के सदन में 6 जनवरी को आम आदमी पार्टी और बीजेपी पार्षदों के बीच हाथापाई से मेयर का चुनाव अब 30 जनवरी को हो सकता है. हंगामे का सबसे ज्यादा खामियाजा नए चुने जाने वाले मेयर को होना है. दिसंबर में चुनाव कराए जाने के चलते पहले ही कार्यकाल कम मिल रहा था और हंगामा ने तो उसे भी कम कर दिया है.

शैली ओबेरॉय और रेखा गुप्ता शैली ओबेरॉय और रेखा गुप्ता
कुबूल अहमद
  • नई दिल्ली ,
  • 12 जनवरी 2023,
  • अपडेटेड 2:49 PM IST

दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) में बीजेपी और आम आदमी पार्टी के पार्षदों के बीच घमासान के चलते महापौर और उपमहापौर का चुनाव 30 जनवरी को हो सकता है. एमसीडी के सदन में 6 जनवरी को हुए हंगामे का सबसे ज्यादा नुकसान नए चुने जाने वाले मेयर को होना है. उपराज्यपाल वीके सक्सेना अगर एमसीडी के सदन की बैठक के प्रस्ताव पर मुहर लगा देते हैं तो मेयर के लिए 30 जनवरी को चुनाव होंगे. ऐसे में नई मेयर को सबसे कम कार्यकाल मिलेगा और महज 60 दिन ही अपनी कुर्सी पर रह सकेंगी. 

Advertisement

उपराज्यपाल वीके सक्सेना ने 6 जनवरी को मेयर, उपमेयर और स्टैडिंग कमेटी के सदस्यों के लिए चुनाव की तरीख तय की थी, लेकिन उस दिन सदन में जमकर हंगामा हुआ. मनोनीत सदस्यों को लेकर आम आदमी पार्टी और बीजेपी पार्षदों की आपस में हाथापाई  हुई, जिसके बाद मेयर चुनाव टाल दिए गए. ऐसे में एमसीडी ने अब 30 जनवरी को सदन की अगली बैठक बुलाकर चुनाव करवाने का प्रस्ताव दिल्ली के उपराज्यपाल को भेजा है. प्रस्ताव पर अगर मुहर लग जाती है तो फिर 30 जनवरी को चुनाव होंगे. 

नई मेयर का कार्यकाल सिर्फ 60 दिन
दिल्ली नगर निगम का सत्र हर साल 1 अप्रैल से शुरू होकर 31 मार्च को खत्म होता है. इसलिए इस बार नई मेयर को सबसे कम कार्यकाल मिलेगा. आम आदमी पार्टी की शैली ओबेराय और बीजेपी की रेखा गुप्ता में से जो भी 30 जनवरी को मेयर चुनी जाएंगी, उसका कार्यकाल 31 मार्च 2023 को समाप्त हो जाएगा. इस तरह से सिर्फ 60 दिन के लिए यानी दो महीने ही मेयर की कुर्सी मिल सकेगी. 

Advertisement

दरअसल, डीएमसी एक्ट की धारा दो (67) के अनुसार एमसीडी का अप्रैल के प्रथम दिन से वर्ष शुरू होता है और इस तरह 31 मार्च को वर्ष समाप्त हो जाता है. लिहाजा अप्रैल में दूसरे महापौर का चुनाव होगा. इस तरह से कार्यकाल और छोटा होता चला जाएगा. शपथ में देरी से दिल्ली वालों के हित किस तरह से प्रभावित हो रहे हैं, उसका ताजा उदाहरण नगर निगम का आगामी बजट है, जिस पर आशंका के बादल मंडरा रहे हैं कि अनुमानित बजट की चर्चा सदन में हो पाएगी भी या नहीं?

एमसीडी सदन की बैठक में हंगामा और अप्रैल से पहले होने का राजनीतिक खामियाजा महिला पार्षदों को भुगतना पड़ेगा, क्योंकि उनके लिए पहले वर्ष महापौर का पद आरक्षित है. अगले चार साल के दौरान महिला पार्षद को मेयर पद का उम्मीदवार बनाने का मामला सियासी दल पर निर्भर रहेगा, लेकिन चार साल तक महिला के लिए आरक्षण नहीं मिल सके. दिसंबर में चुनाव होने की वजह से मेयर के चुनाव पर असर पड़ रहा है और सदन में हंगामा होने के चलते मेयर का कार्यकाल तीन महीने से घटकर अब 60 दिन ही रह गया है. 

नगर निगम मामलों के जानकार जगदीश ममगाई का कहना है कि कमिश्नर वाले बजट को सदन में पास ना होने की स्थिति में महापौर की शक्ति वाले विशेष अधिकारी अश्विनी कुमार ही पास कर देंगे. लेकिन अधिकारियों के बजट पर दिल्ली के चुने हुए 250 पार्षद चर्चा करके पास कराएं, तभी जनता के हित वाला काम होगा. इतना ही नहीं नए मेयर का कार्यकाल भी बहुत कम होगा, जो एमसीडी के इतिहास में सबसे कम होगा. 

Advertisement

क्यों चुनी गई 30 जनवरी की तारीख? 
26 जनवरी के चलते दिल्ली पुलिस सुरक्षा और परेड के इंतजामों में व्यस्त होने की वजह से मेयर और डिप्टीमेयर चुनाव के लिए जरूरी सुरक्षा इंतजाम नहीं कर सकती. अगर चुनाव 27 जनवरी को नहीं हो सकता तो 28 और 29 तारीख को छुट्टी है. लिहाजा 30 जनवरी की तारीख रखी गई है. ऐसे में देखना है कि 30 जनवरी को मेयर के चुनाव सफलतापूर्वक होते हैं या फिर कहीं सदन हंगामे के भेंट चढ़ती है. 

25 साल पहले ऐसी ही स्थिति आई थी
साल 1997 में भी ऐसी ही स्थिति पैदा हो गई थी, जब एमसीडी के चुनाव फरवरी महीने में कराए गए थे. ऐसे में चुनाव के बाद एमसीडी के सदन के गठन की कवायद आरंभ कर दी गई. हालांकि, उस दौरान डीएमसी एक्ट के चलते जानकारों ने बताया था कि एमसीडी का वर्ष 31 मार्च को खत्म होता है. इसके कारण पहले साल महिला महापौर का कार्यकाल एक माह बाद ही समाप्त हो जाएगा. इन्हीं कारणों के चलते एमसीडी के सदन की पहली बैठक 1997 में अप्रैल में आयोजित की गई और उस बैठक में ही महापौर का चुनाव कराया गया था.1997 में फरवरी में चुने गए पार्षद एक महीन से अधिक समय तक खाली रहे थे, लेकिन इस बार ऐसा नहीं हो सका है.

Advertisement

बता दें, दिल्ली एमसीडी में कुल 250 पार्षद हैं. आम आदमी पार्टी के पास 134 पार्षद हैं तो बीजेपी के पास 104 पार्षद और कांग्रेस के पास नौ सदस्य व निर्दलीय 3 सदस्य हैं. सदन की व्यवस्था के अनुसार, कांग्रेस और निर्दलीय आम आदमी पार्टी को समर्थन नहीं करते हैं तो विपक्ष में बैठेंगे. 273 वोटर मेयर के चुनाव के लिए वोटिंग करेंगे. ये साफ हो गया है कि 137 बहुमत का आंकड़ा मिलने वाली राजनीतिक पार्टी का ही मेयर होगा. आप के 134 पार्षद, 3 राज्यसभा सांसद भी 'आप' से ही हैं. ऐसे में देखना है कि मेयर कौन चुना जाता है?

 

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement